Chief Election Commissioner की नियुक्ति कैसे होती हैं? जानिये क्या है भारतीय संविधान में प्राविधान
नई दिल्ली: लोकतंत्र में लोगों का भरोसा चुनावी प्रक्रिया पर बना रहे इसकी जिम्मेदारी मुख्य निर्वाचन आयुक्त के कन्धों पर होतीं है. ऐसा तभी संभव हो सकता है जब चुनाव आयोग का कामकाज उन्हें विश्वसनीय लगे. क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के कारण चुनाव की प्रक्रिया इस राजनीतिक व्यवस्था को कायम रखने हेतु लगातार व्यस्त रहती है। साथ ही,भारत निर्वाचन आयोग यानी चुनाव आयोग (Election Commission of India) भारतीय संविधान के तहत संसद और राज्यों के विधान सभा और विधान मंडल तथा राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन की पूरी प्रक्रिया का संचालन और नियंत्रण भी संभालता है।
भारतीय संविधान के अनुसार चुनाव आयोग (Election Commission of India) एक स्थायी संवैधानिक एवं स्वतंत्र संस्था है, जिसकी स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। आयोग अपने कार्यों का पालन, नियमित बैठकों के आयोजन और दस्तावेजों के परिचालन द्वारा भी करता है। आयोग द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी निर्वाचन आयुक्तों के पास समान अधिकार होते हैं।
शुरुआती दौर में आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त का पद था। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner) और दो निर्वाचन आयुक्त के पद हैं। आपके मन में यह सवाल जरूर उठेगा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त का चयन कौन और कैसे करता है? तो आइये जानते है इसके बारे में विस्तार से ।
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मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की शक्तियां
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324(2) के तहत, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। राष्ट्रपति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने की शक्तियां दी गई हैं। इनका कार्यकाल 6 वर्ष, या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के पद का दर्जा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश स्तर का होता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को उनके सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर ही वेतन और अनुलाभ (perquisites) भी मिलते हैं। हालांकि, आयोग और आयुक्तों के निर्णयों को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में उचित याचिका द्वारा चुनौती दी जा सकती है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाना हो तो?
वैसे तो अपने कार्य क्षेत्र में फैसलों को लेकर निर्वाचन आयुक्त सरकारी या राजनीतिक दखल से मुक्त होते हैं। किसी भी असामान्य परिस्थिति में अगर मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की नौबत आ जाए तो केवल भारतीय संसद के द्वारा महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के माध्यम से ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद से हटाया जा सकता है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों को उनके पद से हटाने कि प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 (5) में बताया गया है जिसमें कहा गया है कि निष्कासन के लिए सदन के कुल संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक के सर्मथन से उपस्थित और मतदान करने वाले 2/3 सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्कता होती है ।
विशेष बात ये है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने के लिए संविधान महााभियोग शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है ।
संविधान का अनुच्छेद 243
राज्य में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। राज्यपाल, जब राज्य चुनाव आयोग द्वारा ऐसा अनुरोध किया जाता है, तो राज्य चुनाव आयोग को ऐसे कर्मचारी दिये जाते हैं जो खंड (1) द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग को दिये गये कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक हो सकते हैं ।
संविधान के तहत, स्थानीय स्वशासन संस्थानों की स्थापना राज्यों की जिम्मेदारी है। राज्य चुनाव आयुक्त के पास एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा, वेतन और भत्ता होता है और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके और समान आधारों को छोड़कर उसे पद से नहीं हटाया जा सकता है।