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अदालत में किस तरह Criminal Case दायर किया जाता है? जानें पूरी प्रक्रिया

How to File a Criminal Case in India

आपको अगर किसी आपराधिक मामले को रिपोर्ट करना हो, उसके लिए अदालत में मुकदमा दर्ज करना है तो उसकी प्रक्रिया क्या है, आइए विस्तार से जानते हैं...

Written By Ananya Srivastava | Published : July 24, 2023 11:44 AM IST

नई दिल्ली: भारत में अगर एक शख्स अदालत में कोई मुकदमा दर्ज करता है, तो वो मूलतः दो प्रकार के होते हैं- आपराधिक मामले (Criminal Suit) और सिविल मामले (Civil Suit)। सिविल मामले तो पैसों या संपत्ति से जुड़े झगड़ों को लेकर होते हैं, आपराधिक मामले, जैसा इनका नाम है, अलग-अलग अपराधों को रिपोर्ट करने के लिए दायर किये जाते हैं।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी अपराध को रिपोर्ट करने हेतु अगर आपको कोई शिकायत दर्ज करनी है या मुकदमा दायर करना है तो उसकी प्रक्रिया 'आपराधिक प्रक्रिया संहिता' (Code of Criminal Procedure) में उल्लेखित है। भारत में आप किस तरह एक आपराधिक मामला दर्ज कर सकते हैं, शिकायत दायर कर सकते हैं, इसकी प्रक्रिया समझते हैं...

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कोर्ट में Civil Case कैसे दायर किया जाता है, जानिए पूरी प्रक्रिया

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आपराधिक मामला दर्ज करने का पहला कदम

आपको समझना होगा कि किसी भी आपराधिक मामले की शिकायत दर्ज करने से पहले आपको यह पता लगाना है कि जिस अपराध को आप रिपोर्ट करना चाहते हैं, वो किस श्रेणी में आता है। अपराध मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं- संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) और असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence)।

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जहां संज्ञेय अपराध गंभीर होते हैं, इनमें रेप, मर्डर, चोरी और अपहरण जैसी घटनाएं शामिल होती हैं; अगर आप संज्ञेय अपराध में पुलिस आरोपी को बिना किसी वॉरेंट के गिरफ्तार कर सकती है। वहीं असंज्ञेय अपराध जैसे मानहानि, चीटिंग इत्यादि में पुलिस को आरोपी को अरेस्ट करने के लिए एक वॉरेंट की जरूरत होती है।

संज्ञेय अपराध के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया

  • संज्ञेय अपराध के खिलाफ वो शख्स शिकायत दर्ज कर सकता है जिसके साथ अपराध हुआ है और वो भी शिकायत दर्ज कर सकता है जिसे अपराध के बारे में पता हो। सबसे पहले आपको अपराध के खिलाफ अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर एफआईआर (FIR) दर्ज करानी होगी।
  • पुलिस स्टेशन में जो भी आपकी एफआईआर दर्ज कर रहा है, उसे राज्य सरकार द्वारा दिए दिशानिर्देशों के अनुसार आपकी शिकायत को लिखित रूप में दर्ज करना होगा। प्रक्रिया पूरी होने के बाद अधिकारी को शिकायत के सभी बिंदुओं को पढ़कर शिकायतकर्ता को सुनाने होंगे और फिर आपके हस्ताक्षर लेने होंगे। इसकी एक कॉपी आपको भी दी जाएगी।
  • यदि किसी महिला के साथ बलात्कार, शारीरिक शोषण, ऐसिड अटैक आदि जैसा कोई अपराध हुआ है, तो शिकायत सिर्फ एक महिला अधिकारी दर्ज कर सकती हैं; कानून में ऐसी शिकायतकर्ता की सुरक्षा हेतु भी प्रावधान हैं।
  • अगर ऐसी स्थिति होती है जिसमें पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज करने में आना-कानी करते हैं तो शिकायतकर्ता सीधा पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) के पास अपनी शिकायत लेकर जा सकते हैं। एसपी शिकायत से अगर संतुष्ट होंगे तो वो खुद जांच करेंगे या फिर किसी अधिकारी को जांच का आदेश देंगे।
  • बता दें कि पुलिस अधिकारी यह कहकर भी शिकायत दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकते हैं कि वो अपराध उनके पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार अगर कोई ऐसा अपराध है जो उस पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकार में नहीं आता, तो पुलिस अधिकारी एक 'जीरो एफआईआर' (Zero FIR) दर्ज करेंगे और फिर उस शिकायत को निर्धारित पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर कर देंगे।
  • संज्ञेय अपराध पर जांच पुलिस बिना मैजिस्ट्रेट के निर्देश के शुरू कर सकते हैं। यदि जांच ठीक तरह से नहीं की जा रही है, तो शिकायतकर्ता मैजिस्ट्रेट को एप्लिकेशन भेज सकते हैं।

असंज्ञेय अपराध के खिलाफ कैसे करें कम्प्लेंट

  • अगर आपको किसी असंज्ञेय अपराध के खिलाफ शिकायत दर्ज करनी है तो उसके लिए भी सबसे पहले आपको एक एफआईआर लिखवानी होगी जिसकी प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है, जैसी संज्ञेय अपराध हेतु एफआईआर दर्ज कारवाई जाती है।
  • एक संज्ञेय अपराध में अपने आप जांच करने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं है; वो इसमें अपने हिसाब से कोई गिरफ़्तारी भी नहीं कर सकते हैं। बता दें कि मैजिस्ट्रेट जब पुलिस को जांच का निर्देश देंगे, तब भी मामले में जांच और आगे चलकर गिरफ़्तारी होगी जिसके लिए वॉरेंट होना जरूरी है।
  • पुलिस अधिकारी अगर शिकायतकर्ता की शिकायत को मैजिस्ट्रेट के समक्ष दायर नहीं करते हैं, तो शिकायतकर्ता उस पुलिस स्टेशन में फॉलोअप लेटर्स भेज सकते हैं। शिकायतकर्ता चाहें तो वो मैजिस्ट्रेट के पास एक निजी शिकायत (Private Complaint) भी अलग से दर्ज कर सकते हैं।

सीधे मैजिस्ट्रेट से भी की जा सकती है अपराध की शिकायत

  • आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक शिकायतकर्ता सीधे उपयुक्त मजिस्ट्रेट से भी संपर्क कर सकता है जिसके क्षेत्राधिकार में उक्त अपराध आता हो। मैजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता और मौजूद गवाहों का शपथ के तहत परीक्षण करेंगे और उनके बयानों को लिखित रूप में दर्ज करवाकर उनके उसपर हस्ताक्षर भी लेंगे।
  • इन बयानों से अगर मैजिस्ट्रेट को यह स्पष्ट हो जाता है कि अपराध हुआ है तो वो आरोपी के खिलाफ प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दे देंगे; आम बोलचाल की भाषा में यह एक नोटिस है जिसमें आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित रहने का निर्देश दिया जाता है। कई मामलों में आरोपी को नोटिस जारी करने से पहले मैजिस्ट्रेट आगे की जांच का निर्देश दे सकते हैं।

शिकायत दर्ज होने के बाद की प्रक्रिया

  • शिकायत के दर्ज होने के बाद पुलिस अधिकारी जांच करते हैं और अगर केस बनता नजर आता है तो उस मामले में के चार्जशीट (Chargesheet) दायर की जाती है। जांच के दौरान पुलिस अधिकारी जरूरी गवाहों के बयानों को रिकॉर्ड करते हैं और जरूरी दस्तावेजी सबूत भी इकट्ठा करते हैं।
  • शिकायतकर्ता भी पुलिस स्टेशन जाकर अपना बयान दर्ज करता है और वो कुछ ऐसे गवाहों के नाम भी सजेस्ट कर सकता है जिनके पास मामले से जुड़ी अहम जानकारी होगी।
  • जांच के पूरे होने के बाद पुलिस अधिकारी मैजिस्ट्रेट के समक्ष एक सी-समरी रिपोर्ट (C-Summary Report) जारी कर सकते हैं अगर उनकी यह राय होती है कि अपराध नहीं बनता है या विवाद सिविल नेचर का है।
  • अगर अपराध बनता नजर आ रहा होता है तो पुलिस मैजिस्ट्रेट के समक्ष एक चार्जशीट दायर करती है और फिर मुकदमा लड़ा जाता है। कोर्ट में ट्रायल के दौरान शिकायतकर्ता को एक बार अदालत में बुलाया जाता है जहां उनका बयान सबूत के तौर पर रिकॉर्ड किया जाता है।