जब्त संपत्ति का निपटारा अदालत कैसे करती है? इसे लेकर CrPC में क्या प्रावधान है?
Confiscated Property In Criminal Cases: बहुत से ऐसे आपराधिक मामले होते हैं जिसमें अपराधी के साथ-साथ उसकी संपत्ति को भी जब्त किया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कानून उन संपत्तियों का क्या करती है. इस प्रश्न का जवाब दण्ड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 451 और धारा 452 में दिया गया है.
कानून उस संपत्ति के साथ जिस प्रक्रिया को अपनाती है उसे संपत्ति का निपटान करना कहते हैं. संपत्ति शब्द ऐसे सभी दस्तावेजों या लेखों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं और दस्तावेजी प्रदर्शन (Documentary Exhibit) या भौतिक वस्तुओं (Material Object) के रूप में चिह्नित होते हैं.
पुलिस जब भी किसी आपराधिक मामले की जांच करती है तो कई तरह की चीजें बरामद करती है. वह बेहद महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि उनका साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
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CrPC की धारा 451
धारा 451 में यह बताया गया है कि जब कोई संपत्ति, किसी दण्ड न्यायालय के समक्ष किसी जांच या विचारण के दौरान पेश की जाती है तब वह न्यायालय उस जांच या विचारण के समाप्त होने तक ऐसी संपत्ति की उचित अभिरक्षा के लिए ऐसा आदेश दे सकता है जैसा वह ठीक समझे और यदि कोई ऐसी संपत्ति है जो देख रेख के अभाव में तेजी से नष्ट हो रही है, तो न्यायालय, ऐसे साक्ष्य को दर्ज करने के बाद, जैसा वह आवश्यक समझे, इसे बेचने या अन्यथा निपटाने का आदेश दे सकता है.
मनोज कुमार शर्मा बनाम साधन रॉय (1993)
इस मामले में, किराया खरीद समझौते (हायर परचेज एग्रीमेंट) के तहत खरीदे गए एक ट्रक को जब्त कर लिया गया क्योंकि विक्रेता किस्त (इंस्टॉलमेंट) का भुगतान नहीं कर रहा था और उसने ट्रक को तीसरे पक्ष को हस्तांतरित कर दिया था. यह माना गया कि वित्तदाता (फाइनेंसर) असली मालिक होने के नाते जब्त ट्रक की अभिरक्षा का हकदार है और जिस व्यक्ति के नाम पर वाहन पंजीकृत है, उसे अभिरक्षा देना अविवेकपूर्ण होगा.
इस धारा के तहत “संपत्ति” के अन्तर्गत निम्नलिखित चीजें आती हैं:
- किसी भी तरह की संपत्ति या दस्तावेज जो न्यायालय के समक्ष पेश की जाती है या जो उसकी अभिरक्षा में है,
- कोई भी संपत्ति जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो किसी अपराध को अंजाम देने में इस्तेमाल होने का शक हो.
CrPC की धारा 452
1.यह धारा अदालत द्वारा सुनवाई खत्म होने पर संपत्ति के व्ययन (Disposal) के आदेश से संबंधित है.
जब किसी दण्ड न्यायालय में जांच या विचारण समाप्त हो जाता है तब न्यायालय उस संपत्ति या दस्तावेज को, जो उसके समक्ष पेश की गई है, या उसकी अभिरक्षा में है अथवा जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो किसी अपराध के करने में प्रयुक्त की गई है, नष्ट करके, अधिकृत करके या किसी ऐसे व्यक्ति को परिदान करके, जो उस पर कब्जा करने का हकदार होने का दावा करता है, या किसी अन्य प्रकार से उसका व्ययन करने के लिए आदेश दे सकेगा जैसा वह ठीक समझे.
2. किसी संपत्ति के कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले किसी व्यक्ति को उस संपत्ति के परिदान के लिए उपधारा (1) के अधीन आदेश किसी शर्त के बिना या इस शर्त पर दिया जा सकता है कि वह न्यायालय को समाधानप्रद रूप में यह वचनबंध करते हुए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे कि यदि उपधारा (1) के अधीन किया गया आदेश अपील या पुनरीक्षण में उपांतरित या अपास्त कर दिया गया तो वह उस संपत्ति को ऐसे न्यायालय को वापस कर देगा.
3. एक सत्र न्यायालय उप-धारा (1) के तहत खुद आदेश देने के बजाय, संपत्ति को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को सौंपने का निर्देश दे सकता है, जो धारा 457, 458 और 459 में प्रदान किए गए तरीके से इससे निपटेगा.
4. सिवाय जहां ठीक से पशुधन है या शीघ्र और प्राकृतिक क्षय के अधीन है, या जहां उपधारा (2) के अनुसरण में एक बांड निष्पादित किया गया है, उप-धारा (1) के तहत किए गए आदेश को दो महीने तक पूरा नहीं किया जाएगा, या जब कोई अपील प्रस्तुत की जाती है, जब तक कि ऐसी अपील का निपटारा नहीं किया जाता है.
5. उस संपत्ति की दशा में, जिसके बारे में अपराध किया गया प्रतीत होता है, इस धारा में “संपत्ति” पद के अन्तर्गत न केवल ऐसी संपत्ति है जो मूलतः किसी पक्षकार के कब्जे या नियंत्रण में रह चुकी है, इसके अलावा ऐसी कोई संपत्ति जिसमें या जिसके लिए उस संपत्ति का संपरिवर्तन या विनिमय किया गया है और ऐसे संपरिवर्तन या विनिमय से, चाहे अव्यवहित रूप से चाहे अन्यथा, अर्जित कोई चीज भी है.