एसिड हमले के पीड़ित को इलाज से इंकार नहीं कर सकते अस्पताल- जानिये सजा के प्रावधान
नई दिल्ली: एसिड हमला (Acid Attack) भयानक अपराधों में से एक है जिसके नाम से ही दिल दहल जाता है. तेजाब हमले के कारण, पीड़ित व्यक्ति विकृत हो जाता है और उसे अपना शेष जीवन समाज में भेदभाव का सामना करते हुए गुजारना पड़ता है. इस तरह के आपराधिक हमले किसी व्यक्ति के न केवल शरीर को प्रभावित करते हैं बल्कि उसके सामाजिक, आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक जीवन को हमेशा के लिए असामान्य कर देते हैं.
कुछ मामले में तो परिवार का भी साथ छूट जाता है, परिणामस्वरूप पीड़िता को भौतिक शरीर की पीड़ा के आलावा और भी कई परिणाम सहने पड़ते हैं. और कई बार तो पीड़ित जान ही गवा देता है.
ऐसा ही एक एसिड हमला जो वर्ष 2013 में घटित हुआ जिसे देश शायद ही भुला पाएगा. 2 मई, 2013 को प्रीति राठी नाम की एक 23 वर्षीय युवती, जो कि कोलाबा स्थित INS मुंबई में नर्स की नौकरी करने के लिए मुंबई आई थी, पर एक अज्ञात युवक ने Acid फेंका जब वह बांद्रा टर्मिनस पर उतरी थी.
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पुलिस ने मामले की जांच के दौरान हमलावर की पहचान पंवार बताई. राठी ने 1 जून, 2013 को दम तोड़ दिया जिससे देशभर में शोक की लहर फैल गई .
वर्ष 2013, इस हमले के होने तक एसिड हमलों को अलग अपराध के रूप में नहीं माना जाता था और ना ही इसके लिए कोई अलग सजा का प्रावधान था. लेकिन इस घटना के बाद, सरकार ने कई कठोर कदम उठाए जिनमें एसिड हमलों से निपटने वाले विशेष प्रावधानों को शामिल किया गया.
उसके बाद 2015 में, केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने सभी राज्यों को एसिड हमलों के मामलों में अदालती प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक सिफारिश भी जारी की .
एसिड अटैक पर कानून
2013 की घटना के बाद, एसिड अटैक को अलग अपराध के रूप में, उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत प्रावधान किए गए. इसके अलावा, एसिड अटैक मामले में प्राथमिकी या किसी भी सबूत को दर्ज करने से इनकार करना या इलाज से इनकार करने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है.
2013 के अधिनियम 13 यानी आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के बाद, एसिड हमलों को IPC की एक अलग धारा 326 A और धारा 326 B को शामिल किया गया ताकि एसिड हमलों को नियंत्रित किया जा सके. धारा 326 A और 326 B दोनों लिंग तटस्थ (Gender neutral) वर्ग में शामिल किये गए
IPC की धारा 326 A
इस धारा में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से, इस ज्ञान के साथ एसिड को फेंकता या प्रशासित करता है कि वह किसी को चोट पहुंचाएगा या इरादा चोट पहुंचाने का रखता हो, तो वह इस धारा के दायरे में अपराधी माना जाएगा. इस धारा के अनुसार एसिड वो कोई भी पदार्थ हो सकता है जिसमें 'अम्लीय (Acidic)' या 'संक्षारक' गुण होते हैं, जो किसी निशान, विकृति, अस्थायी या स्थायी अक्षमता, या शारीरिक चोट का कारण बन सकते हैं.
इसके अलावा, यह धारा तब प्रभावी होती है जब एसिड हमले के शिकार व्यक्ति को स्थायी या आंशिक रूप से कोई नुकसान हुआ हो. यह अप्रासंगिक है अगर चिकित्सा उपचार के कारण होने वाली क्षति को परिवर्तित किया जा सकता है.
एसिड हमला करने वाले व्यक्ति के लिए निर्धारित सजा कम से कम दस साल की कैद है जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही वह जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा. जुर्माने की राशि पीड़ित के इलाज के लिए चिकित्सा खर्च के बराबर होनी चाहिए और जुर्माना सीधे पीड़ित को दिया जाएगा. इस धारा के तहत यह अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है.
IPC की धारा 326 B
इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को स्थायी या आंशिक क्षति, विकृति, विकलांगता आदि पहुचाने के इरादे से यदि कोई स्वेच्छा से एसिड फेंकने का प्रयास करता है, और प्रयास विफल हो जाता है या इच्छित पीड़ित को कोई नुकसान नहीं होता तो भी प्रयास करने वाले व्यक्ति को कानून के तहत सजा हो सकती है.
इस धारा के तहत एसिड हमले के प्रयास के लिए निर्धारित सजा कम से कम पांच साल की कैद है, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. धारा 326 A में बताएं अपराध की तरह ही एसिड हमले का प्रयास भी संज्ञेय, गैर-जमानती अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है.
उपचार से इंकार पर सजा
2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने एसिड हमलों का संज्ञान लेते हुए संक्षारक पदार्थों की बिक्री के नियमन पर एक आदेश पारित किया. इसके अलावा, पीड़ित को इलाज से इंकार करने या पुलिस अधिकारी द्वारा प्राथमिकी दर्ज नहीं करने या साक्ष्य दर्ज करने से इनकार करने पर सजा का भी प्रावधान किया गया है.
सार्वजनिक और निजी दोनों अस्पतालों द्वारा उपचार से इनकार करने पर एक वर्ष तक के कारावास की सजा है और एक पुलिस अधिकारी द्वारा कर्तव्य की अवहेलना करने पर दो साल तक के कारावास की सजा है.
एसिड बिक्री पर कानून
एसिड हमलों को रोकने के लिए 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से एसिड की बिक्री को रेगुलेट करने के लिए कानून बनाने का आदेश भी दिया. आदेश के आधार पर, गृह मंत्रालय (MHA) ने सभी राज्यों को एसिड की बिक्री को विनियमित करने और ज़हर अधिनियम, 1919 के तहत मॉडल ज़हर कब्जा और विक्रय नियम, 2013 तैयार करने की एक सलाह जारी की.
इस मॉडल के अनुसार, एसिड बिक्री के डेटा का रखरखाव, आयु प्रतिबंध और दस्तावेज़ीकरण, एसिड स्टॉक की जब्ती, रिकॉर्ड कीपिंग, और जवाबदेही को अनिवार्य किया गया है.