झूठी गवाही देना अपराध है, जानिए IPC की धाराएं 191 और 192 क्या कहतीं हैं
नई दिल्ली: बचपन से ही हमें सिखाया जाता है कि झूठ बोलना गलत बात है. इसी सिद्धांत पर टिकी है हमारी न्याय व्यवस्था. अगर कोई कानून के सामने झूठ बोलता है या झूठी गवाही देता है, या फिर कोई झूठा साक्ष्य पेश करता है या तो वह अपराधी माना जाएगा. जिसके बारे में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) 1860 के धारा (Section) 191 और धारा 192 में.
मिथ्या साक्ष्य (False Evidence) देना
आईपीसी की धारा 191 के तहत ये बताया गया है कि झूठा साक्ष्य देना भी एक अपराध है.
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इस धारा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति शपथ लेकर अदालत में या पुलिस के सामने या सरकार के सामने कोई ऐसी गवाही देगा जो मिथ्या (झूठ) हो या झूठ होने का उसे ज्ञान हो, या विश्वास हो कि यह वह जो बोल रहा है उसमें कोई सच्चाई नहीं है या फिर अपने बयानों पर सच होने का भरोसा ना होते हुए भी वह मिथ्या साक्ष्य देता है तो वह अपराध माना जाएगा.
स्पष्टीकरण 1- कोई कथन चाहे वह मौखिक हो, या अन्यथा किया गया हो, इस धारा के अंतर्गत आएगा.
स्पष्टीकरण 2- अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि उसे उस बात पर विश्वास है जिस पर उसे विश्वास नहीं है, या फिर ये कहना कि वह उस बात को जानता है बल्कि वह नहीं जानता, वह भी इस धारा के तहत मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी पाया जाएगा.
इस धारा के तहत दिए गए उदाहरण
क) ख ने यह दावा किया कि य ने उसका एक हजार रुपए ले लिए. इस दावे का समर्थन करते हुए शपथ लेकर क झूठ कहता है कि उसने भी सुना है कि य ने पैसे लिए है. तो यहां क ने मिथ्या साक्ष्य दिया है.
ख) क सच बोलने का शपथ लेता है और कहता है कि यह हस्ताक्षर य का ही है. जबकि उसे विश्वास है कि यह हस्ताक्षर य का नहीं है. क वह कथन करता है जिसका मिथ्या होना वह जानता है, और इसलिए मिथ्या साक्ष्य देता है.
ग) य के हस्तलेख का साधारण स्वरूप को जानते हुए क यह कथन करता है
पेश किए गए हस्ताक्षर के संबंध में उसे विश्वास है कि यह य का ही हस्ताक्षर है, क ऐसा विश्वास सद्भावनापूर्वक करता है, यहां क का कथन अपने विश्वास के संबंध में हैं और उसके विश्वास के अनुसार यह सत्य है तो भले ही य का वह हस्ताक्षर ना हो, फिर भी यह माना जाएगा कि क ने मिथ्या साक्ष्य नहीं दिया है.
घ) क शपथ लेता है कि वह जो कहेगा वह सत्य होगा, इसके बाद वो ये गवाह देता है कि वह यह जानता है कि य किसी विशिष्ट दिन पर एक विशिष्ट स्थान पर मौजूद था, जबकि वह उस विषय में कुछ भी नहीं जानत. क मिथ्या साक्ष्य देता है, चाहे बतलाए हुए दिन और जगह पर य मौजूद रहा हो या नहीं
ड.) क एक दुभाषिया या अनुवादक किसी कथन या दस्तावेज के, जिसका भाषांतरण या अनुवाद करने के लिए उसने शपथ ली है, इसके बाद भी वह कोई झूठा भाषांतरण या अनुवाद पेश करता है या प्रमाणित करता है, तो क ने मिथ्या साक्ष्य पेश किया है
मिथ्या साक्ष्य गढ़ना
धारा 192 के अंतर्गत झूठे सबूत को बनाने के विषय में बताया गया है. जिसके तहत जो कोई भी कोई झूठा सबूत बनाता है या ऐसी परिस्थिति बनाता है यह जानता हुए कि आगे चलकर कोई केस हो सकता है, और जब मामले की सुनवाई हो रहा हो तो लोक सेवक या अदालत फैसला उसके पक्ष में सुनाए, जैसे की किसी किताब में या अभिलेख या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के तहत झूठ प्रविष्टि करता है. तो वह अपराध माना जाएगा.
धारा में बताए गए उदाहरण
क) क ने य के बॉक्स में कुछ गहने रख दिए इस उद्देश्य के साथ की जब य पर चोरी का आरोप लगेगा तो यह सबूत बन जाएगा. तो यहां पर क ने मिथ्या साक्ष्य का गठन किया है.
ख) क अपनी दुकान की बही में कुछ झूठ लिखता है ताकि वह न्यायालय में इसे साक्ष्य के रूप में पेश कर सके. तो क ने यहां मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है.
ग) य को एक आपराधिक षड्यंत्र के लिए दोषी साबित करने के आशय से क य की हैंडराइटिंग में आपराधिक षड्यंत्र के बारे में किसी अपराधी का नाम लेकर पत्र लिखता है और उस पत्र को क वहां रख देता है यह जानते हुए कि पुलिस वहां तलाशी जरुर लेगी, यहां क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है.