भारत के किस राज्य में सबसे पहले स्थापित हुआ था High Court? जानिए
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) के पास देश का नागरिक तब जाता है जब उसके पास और कोई विकल्प नहीं बचता है। सुप्रीम कोर्ट में जाने से पहले हर राज्य में उच्च न्यायालय (High Court) है जिसका दरवाजा लोग न्याय के लिए, आमतौर पर पहले खटखटाते हैं। देश में हाईकोर्ट की स्थापना से पहले एक 'सुप्रीम कोर्ट' स्थापित किया गया था। उच्च न्यायालय की स्थापना से पहले लोगों को न्याय कैसे मिलता था और देश का पहला उच्च न्यायालय कब, किस राज्य में और किस कानून के तहत स्थापित किया गया था, आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के बाद भारत सीधे 'रूले ऑफ क्राउन' के आधीन आ गया। इंग्लैंड के राज्य द्वारा 'विनियमन अधिनियम, 1776' (The Regulating Act 1776) के ऐलान के बाद कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of Judicature at Calcutta) की स्थापना हुई।
कब हुई Supreme Court की पहली सिटिंग? क्या थी इस कार्यवाही की खास बातें
Also Read
- TASMAC Corruption Case: फिल्म निर्माता आकाश भास्करन को मद्रास हाई कोर्ट से राहत, ईडी ने वापस लिया नोटिस, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स लौटाने पर जताई सहमति
- 'अप्रैल आखिर तक Bombay HC की नई इमारत के लिए पूरी जमीन सौंप दी जाएगी', महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया
- क्या कंज्यूमर फोरम को गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार है? लोन पर ट्रैक्टर खरीदने के मामले में Calcutta HC ने बताया
कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय को 'कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड' माना गया जिसके पास सभी तरह की शिकायतों को सुनने और उनपर फैसला सुनाने की पूरी शक्ति और अधिकार था। जिस तरह कलकत्ता में उच्चतम न्यायालय स्थापित किया गया, उसी तरह 1800 में मद्रास में और 1823 में बंबई में भी सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हो गई।
देश का पहला उच्च न्यायालय
न्याय व्यवस्था को और बेहतर और सुगम बनाने के लिए 'भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861' (The Indian High Courts Act, 1861) अधिनियमित किया गया। इस अधिनियम का शीर्षक 'भारत में उच्च न्यायालय स्थापित करने हेतु अधिनियम' (An Act For Establishing High Courts Of Judicature in India) था और इसमें कुल मिलाकर 19 धराएं थीं। 'भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861' ने प्रेसीडेंसी में सर्वोच्च न्यायालय और सदर अदालत को समाप्त कर दिया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861' के तहत जारी 14 मई, 1862 के 'लेटर्स पेटेंट' (Letters Patent) द्वारा ब्रिटिश भारत का पहला उच्च न्यायालय- 'हाईकोर्ट ऑफ जुडिकेचर ऐट फोर्ट विलियम' (High Court of Judicature at Fort William) कलकत्ता में स्थापित हुआ। इसे 'कलकत्ता उच्च न्यायालय' (High Court of Calcutta) भी कहा जाता है।
कलकत्ता उच्च न्यायालय की स्थापना हेतु लेटर्स पेटेंट 14 मई, 1861 का है लेकिन यह हाईकोर्ट आधिकारिक तौर पर पहली बार 1 जुलाई, 1862 को खुला था; सर बार्न्स पीकॉक (Sir Barnes Peacock) उच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश थे। बता दें कि न्यायाधीश रोमेश चंद्र मित्रा (Justice Romesh Chandra Mitra) इस न्यायालय के पहले भारतीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थे और न्यायाधीश फनी भूषण चक्रवर्ती (Justice Phani Bhushan Chakravartti) पहले पर्मानेंट मुख्य न्यायाधीश थे।
कलकत्ता हाईकोर्ट का क्षेत्राधिकार
मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction) का प्रयोग करते समय, कलकत्ता उच्च न्यायालय के पास उन मुकदमों पर विचार करने की शक्ति थी जिनमें कार्रवाई का कारण कलकत्ता की स्थानीय सीमा के भीतर उत्पन्न हुआ था, या यदि मुकदमा शुरू होने के समय, प्रतिवादी कलकत्ता की स्थानीय सीमा के भीतर निवास करता था या लाभ के लिए व्यवसाय या काम करता था।
हाईकोर्ट उन मुकदमों में फैसला सुना सकता था जिनकी कीमत कम से कम 100 रुपये थी और साथ ही, कलकत्ता उच्च न्यायालय के पास मूल आपराधिक क्षेत्राधिकार (Original Criminal Jurisdiction) भी था जिसके तहत तो उन लोगों से जुड़े मामलों की सुनवाई कर सकते थे जो कलकत्ता के प्रेसिडेंसी शहरों में रहते थे।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कलकत्ता हाईकोर्ट के पास अपने अधीन किसी भी न्यायालय की स्थानीय सीमा के अंदर रहने वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराधों की सुनवाई करने का भी असाधारण क्षेत्राधिकार (Extraordinary Jurisdiction) था।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के आधीन आने वाले न्यायालयों ने जो आपराधिक और सिविल मामलों में निर्णय लिए हैं, उनपर इसका अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction) था। इतना ही नहीं, कलकत्ता हाईकोर्ट के पास अधिवक्ताओं को नामांकित और स्वीकार करने और उनके लिए आवश्यक योग्यताएं निर्धारित करने का भी अधिकार था।
आपराधिक अपीलों में उच्च न्यायालय का फैसला अंतिम फैसला माना जाता है जिसे चुनौती देने का कोई विकल्प नहीं था। हालांकि सिविल मामलों में ऐसा नहीं होता था, कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को प्रिवी काउंसिल (Privy Council) में तब चुनौती दी जा सकती थी जब विवाद की कीमत दस हजार रुपये या उससे ज्यादा हो या तब जब खुद हाईकोर्ट अपील के लिए मामले को प्रमाणित करे।
Calcutta HC के बाद हुई इन HCs की स्थापना
बता दें कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के साथ 'भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861' के अंतर्गत, 26 जून, 1862 के लेटेर्स पेटेंट के जरिए बंबई और मद्रास में भी उच्च न्यायालय स्थापित किये गए।
मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) का मद्रास शहर पर मूल क्षेत्राधिकार है और पूरे राज्य पर अपीलीय क्षेत्राधिकार, असाधारण मूल क्षेत्राधिकार (Extraordinary Original Jurisdiction), सिविल और आपराधिक क्षेत्राधिकार और रिट इशू करने के लिए विशेष मूल क्षेत्राधिकार (Special Original Jurisdiction) है। इस कोर्ट के पहले भारतीय जज, न्यायाधीश टी मुथूस्वामी अय्यर (Justice T Muthuswami Iyer) थे।
बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) का उद्घाटन 14 अगस्त, 1862 को हुआ था और इस न्यायालय के पास मूल और अपीलीय क्षेत्राधिकार, दोंनो थे। बंबई उच्च न्यायालय के 'लेटर्स पेटेंट' में कोर्ट के लिए 15 न्यायाधीशों का प्रावधान था लेकिन साठ साल तक बंबई हाईकोर्ट ने सिर्फ सात जजों के साथ काम किया। बता दें कि 'हाईकोर्ट चार्टर' ने बंबई उच्च न्यायालय को अधिकार दिया कि सिविल हो या आपराधिक, हर मामले में उनका फैसला अंतिम फैसला होगा; सिवाय उन मामलों के जिनमें प्रिवी काउंसिल के पास अपील के लिए जाया जा सकता है।