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स्वतंत्रता के बाद कब और किसे दी गई थी पहली Death Penalty? देश में क्या हैं मृत्युदंड को लेकर कानून

First Death Penalty in India

भारत में कुछ ऐसे अपराध हैं, जिनकी सजा डेथ पेनल्टी है। भारत में मृत्युदंड को लेकर क्या कानून और संवैधानिक प्रावधान हैं और देश में, स्वतंत्रता के बाद, सबसे पहले कब और किसको मृत्युदंड दिया गया था, आइए जानते हैं...

Written By Ananya Srivastava | Published : August 3, 2023 6:14 PM IST

नई दिल्ली: कई दशकों से दुनियाभर में यह डिबेट चल रही है कि गंभीर से गंभीर अपराध के लिए आजीवन करवास (Capital Punishment) की सजा ज्यादा बेहतर है या फिर मृत्युदंड (Death Penalty) की। इस डिबेट पर अलग-अलग देशों के अलग-अलग मत रहे हैं, जहां कुछ ने अपने देश में मृत्युदंड को खत्म कर दिया है, वहीं भारत जैसे कई ऐसे भी देश हैं ऐसे कई मामले हैं, जिनमें मृत्युदंड दिया जाता है।

स्वतंत्र भारत में सबसे पहले किसे और कब मृत्युदंड दिया गया था और देश में डेथ पेनल्टी को लेकर कानून क्या है, इसके बारे में विस्तार से समझते हैं...

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भारत में किसे और कब सबसे पहले दिया गया था मृत्युदंड?

तमाम रिपोर्ट्स के अनुसार स्वतंत्र भारत में पहली डेथ पेनल्टीरघुराज सिंह (Raghuraj Singh) नाम के एक व्यक्ति को मिली थी जिसे 'राशा' (Rasha) के नाम से जाना जाता था। बता दें कि 'राशा' को जबलपुर सेंट्रल जेल (Jabalpur Central Jail) में फांसी दे दी गई थी।

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महात्मा गांधी के हत्यारे नाथुराम गोडसे (Nathuram Godse) को पंजाब उच्च न्यायालय (Punjab High Court) द्वारा 8 नवंबर, 1949 को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी और फिर 15 नवंबर, 1949 के दिन उन्हें अंबाला सेंट्रल जेल (Ambala Central Jail) में फांसी दे दी गई थी।

भारत में Death Penalty को लेकर कानून

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 368 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों (High Courts) को मृत्युदंड की सजा यानी डेथ पेनल्टी को कन्फर्म करने का अधिकार मिलता है। देश में डेथ पेनल्टी सिर्फ सबसे गंभीर अपराध के लिए दी जाती है जो देश के 'सबसे दुर्लभ मामलों' (Rarest Cases) की श्रेणी में आते हैं।

'जगमोहन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 1972' (Jagmohan vs State of UP, 1972) वो पहला मामला था जिसमें भारत में मृत्युदंड (Capital Punishment) की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया था। इसके बाद 'बच्चन सिंह बम पंजाब राज्य, 1980' (Bachan Singh vs State of Punjab, 1980) मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह बात स्थापित की थी कि मृत्युदंड की सजा सिर्फ सबसे दुर्लभ मामलों में दी जाएगी।

1983 के 'मिट्ठू बनाम पंजाब राज्य' (Mithu vs State of Punjab, 1983) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 303 (Section 303 of The Indian Penal Code) को रद्द कर दिया था क्योंकि उसके अनुसार अपराधियों को मृत्युदंड देना अनिवार्य था।

भारत में कैसे दिया जाता है मृत्युदंड

भारत में मृत्युदंड की सजा आमतौर पर दो तरह से दी जाती है- फांसी से और गोली मारकर। अब तक जितने भी लोगों को मृत्युदंड दिया गया है, उन्हें फांसी पर लटकाकर ही दिया गया है। बता दें कि 'सेना अधिनियम' (The Army Act) और 'वायु सेना अधिनियम' (The Air Force Act) के प्रावधानों के अनुसार अपराधी को गोली मारकर भी मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।

आपको बता दें कि 'वायु सेना अधिनियम, 1950' की धारा 34 के तहत कोई भी व्यक्ति अगर कुछ गैर-कानूनी करता है या कोई ऐसी हरकत करता है जो कानून के विरुद्ध हो, उसका कोर्ट-मार्शल (Court Martial) किया जा सकता है।