'महिलाओं ने कानून को बनाया हथियार', IPC की धारा 376 के तहत दर्ज शिकायत... सच्चाई या महज दुरुपयोग?
नई दिल्ली: महिलाओं के प्रति होने वाली अस्वीकार्य घटनाओं और अपराधों की सूची कोई छोटी नहीं है; देश के सभी शहरों और गांवों में महिलाओं को असुरक्षित महसूस होता है और इसी के चलते देश में कई कानून ऐसे बनाए गए हैं, जो उनकी सुरक्षा हेतु इस्तेमाल किये जाते हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 भी ऐसा ही एक कानून है जो महिलाओं के साथ बलात्कार करने वालों को सजा दिलाता है।
इस कानून के अंतर्गत लगभग हर दिन मामले दर्ज होते हैं, कार्यवाही होती है और सजा भी दी जाती है; लेकिन क्या इस धारा के तहत दायर होने वाली हर शिकायत, दर्ज होने वाला हर मुकदमा सच होता है? महिला की सुरक्षा के लिए बने इस कानून का कई बार महिलाओं द्वारा ही दुरुपयोग हुआ है। जैसा उत्तराखंड उच्च न्यायालय का कहना है, क्या वाकई कुछ महिलाओं ने इस कानून को हथियार बना लिया है और इसका दुरुपयोग कर रही हैं?
भारतीय दंड संहिता की धारा 376
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (Section 376 of The Indian Penal Code) 'बलात्कार हेतु सजा' (Punishment for Rape) का उल्लेख करता है। यहां स्पष्ट किया गया है कि किन स्थितियों में शख्स के खिलाफ इस धारा के तहत कार्यवाही होगी और दोषी करार दिए जाने के बाद उसे क्या सजा सुनाई जाएगी।
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आईपीसी की धारा 376 के तहत यदि:
- कोई पुलिस अधिकारी अपने पुलिस स्टेशन में, किसी अन्य स्टेशन के परिसर में या कस्टडी में ली गई किसी महिला के साथ रेप करता है,
- कोई लोक सेवक कस्टडी में ली गई महिला के साथ या किसी ऐसी महिला के साथ, जो अन्य लोक सेवक की कस्टडी में हो, रेप करता है,
- कोई सैन्य अधिकारी जो उस क्षेत्र में किसी का बलात्कार करता हो जहां उसे केंद्र या राज्य सरकार द्वारा भेजा गया हो,
- किसी जेल का या उसके प्रबंधन में शामिल अधिकारी, कोई रिमांड होम या कानून द्वारा स्थापित अन्य कस्टडी का कर्मचारी या किसी महिला या बच्चों के संस्थान में काम करने वाला शख्स ऐसी जगह पर रेप करता है,
- किसी अस्पताल या वहां के प्रबंधन का कर्मचारी उसी अस्पताल में किसी महिला का बलात्कार करता है,
- कोई रिश्तेदार, अभिभावक, अध्यापक या कोई ऐसा जो एक महिला के लिए जिम्मेदार हो, उस महिला का रेप करता है,
- सांप्रदायिक झगड़ों के बीच कोई बलात्कार करे,
- किसी गर्भवती महिला का कोई यह जानते हुए रेप करे कि वो मां बनने वाली है,
- ऐसी महिला का कोई बलात्कार करता है जो रजामंदी नहीं दे सकती,
- कोई, जिसका एक महिला पर नियंत्रण या अधिकार हो, उसी के साथ रेप करता है,
- एक शख्स ऐसी महिला पर रेप करे जो मानसिक या शारीरिक रूप से विकृत हो,
- कोई बलात्कार करते समय महिला को गंभीर रूप से चोटिल कर दे या उसकी ज़िंदगी को खतरे में डाले,
- एक शख्स एक ही महिला का बार-बार बलात्कार करे...
उसे कम से कम दस साल की जेल की सजा सुनाई जाएगी जो बढ़ाकर आजीवन कारावास में भी बदली जा सकती है; आजीवन कारावास यानी उस शख्स की जितनी प्राकृतिक ज़िंदगी बची होगी, वो सलाखों के पीछे कटेगी। इतना ही नहीं, दोषी पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
आईपीसी की इस धारा का हो रहा है दुरुपयोग?
पिछले कुछ समय में अलग-अलग उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में ऐसे कई मामले आए हैं जिनमें महिला ने पुरुष पर आईपीसी की धारा 376 मामला दर्ज तो किया है लेकिन यह आरोप सही नहीं है। रजामंदी से बनाए गए शारीरिक संबंधों (Consensual Sex) के बावजूद रिश्ते के खत्म होने के बाद पुरुष पर महिला ने 'यौन शोषण' या 'बलात्कार' का आरोप लगाया है; कुछ मामलों में शादी का वादा करके उसे पूरा न करने पर भी इस धारा के तहत शिकायत दर्ज की गई है जबकि यहाँ भी शारीरिक संबंध दोनों की रजामंदी से बने थे।
कोई कानून जो किसी के लिए एक नई ज़िंदगी हो सकता है, इस तरह के मामलों में निर्दोष की ज़िंदगी को खराब भी कर सकता है। 'बलात्कार' और 'यौन शोषण' बेहद गंभीर अपराध हैं और इनके खिलाफ बने कानून का इस तरह मजाक नहीं बनाया जा सकता है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह मुद्दा क्यों उठाया और क्या कहा है, आइए जानते हैं।
'कुछ महिलाओं ने इस कानून को बनाया हथियार!
उत्तराखंड उच्च न्यायालय (Uttarakhand High Court) ने हाल ही में एक महिला की याचिका को रद्द किया जिसमें महिला ने एक पुरुष के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत शिकायत दर्ज की थी। शिकायतकर्ता का कहना है कि मनोज कुमार आर्य नाम का एक शख्स उनके साथ 2005 से रिश्ते में था और दोनों के बीच आपसी रजामंदी के बाद शारीरिक संबंध भी स्थापित हुए थे।
दोनों ने एक दूसरे को यह वादा किया था कि वो तब शादी करेंगे जब उनमें से किसी एक नौकरी मिल जाएगी। इसी शादी के वादे के आधार पर दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने थे जो तब भी जारी रहे जब पुरुष ने किसी अन्य महिला से शादी कर ली थी।
कोर्ट का यह कहना है कि शिकायतकर्ता जानती थीं कि प्रतिवादी की शादी हो चुकी है और इसके बाद भी उन्होंने शारीरिक संबंध बनाए; ऐसे में यौन शोषण या बलात्कार का आरोप पुरुष पर नहीं लगाया जा सकता है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश शरद कुमार शर्मा ने याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि पंद्रह साल तक शिकायतकर्ता आरोपी के साथ रिश्ते में रही और उसकी शादी होने के बाद भी, सब जानते हुए, शिकायतकर्ता ने अपनी मर्जी से शारीरिक संबंध बनाए। ऐसे में पुरुष के खिलाफ किसी भी हाल में आईपीसी की धारा 376 के तहत रेप का आरोप लगाना गलत है। रजामंदी से बने शारीरिक संबंधों को रेप का नाम नहीं दिया जा सकता है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय का यह मानना है कि आज के युग में आईपीसी की धारा 376 का महिलाओं द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है; उनके और उनके पार्टनर के रिश्ते में जब दरार आने लगती है तो कई महिलायें इस कानून के तहत आने वाले अपराध को अपना हथियार बना लेती हैं। जहां ज्यादातर मामले असली हैं, वहीं इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है कि महिलायें इस धारा का बहुत दुरुपयोग भी कर रही हैं।