क्या Domestic Workers की सुरक्षा के लिए देश में हैं कोई कानूनी प्रावधान? जानिये
नई दिल्ली: लगभग हर घर में, साफ-सफाई, खाना बनाने इत्यादि कामों के लिए कुछ ऐसे लोगों को नौकरी पर रखा जाता है जो इन कामों में हमारी मदद करते हैं, हाथ बँटाते हैं। ये डोमेस्टिक हेल्प कई बार एक से ज्यादा घरों में काम करते हैं और यही इनकी कमाई का जरिया है। हमारे देश के ज्यादातर घरों में काम करने वाले इन लोगों की सुरक्षा और रख-रखाव के लिए क्या देश में कोई कानून या प्रावधान हैं? आइए इस बारे में जानते हैं.
हाल ही में एक मामला सामने आया था जिसमें द्वारका में रहने वाली एक महिला पायलट ने अपने घर में काम करने वाली एक लड़की को ठीक से काम न करने पर मारा था। यह मामला सामने तब आया जब महिला पायलट और उनके पति को उनकी सोसाइटी के लोगों ने पीटा! इस मामले से ध्यान इस ओर भी जाता है कि देश में इस तरह के डोमेस्टिक हेल्प की सुरक्षा के लिए क्या कोई कानून है?
डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए विधायिका की कोशिश
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विधायिका ने कई बार देश में डोमेस्टिक वर्कर्स की सेवाओं के विनियमन के लिए राष्ट्रीय कानून बनाने की कोशिश की है लेकिन हर बार, किन्हीं कारणों से इन्हें पारित नहीं किया जा सका।
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'घरेलू कामगार (सेवा की शर्तें) विधेयक, 1959' (Domestic Worker (Conditions of Service) Bill, 1959') और 'घरेलू कर्मचारी (सेवा की शर्तें) विधेयक, 1989' (House Workers (Conditions of Service) Bill, 1989) वो पहले दो विधेयक हैं जिन्हें दुर्भाग्यवश पारित नहीं किया जा सका।
इसके बाद 2004 में 'हाउजमेड्स एंड डोमेस्टिक वर्कर्स (सेवा की शर्तें और कल्याण) विधेयक, 2004' (Housemaids and Domestic Workers (Conditions of Service and Welfare Bill), 2004) को राज्यसभा में एक निजी मेम्बर के बिल (Private Member's Bill) के रूप में इंट्रोड्यूस किया गया लेकिन यह भी पारित नहीं किया जा सका।
फिर लगभग पांच साल बाद हार्ट सरकार ने डोमेस्टिक वर्कर्स के लिए एक 'टास्क फोर्स' का गठन किया जिन्हें इनके अधिकारों से जुड़े एक नीतिगत ढांचे के लिए अनुशंसा करने का काम सौंपा गया। घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय नीति के मसौदे में मौजूदा श्रम कानूनों में संशोधन की सिफारिश करते हुए, इन कामगारों द्वारा किए जाने वाले घरेलू कामों को 'वैध श्रम बाजार गतिविधि' की पहचान देने की कोशिश की गई है।
इससे घरेलू श्रमिकों को उन श्रम अधिकारों का लाभ मिल सके जो अन्य श्रमिकों को प्राप्त हैं।
न्यायपालिका का योगदान
देश में, क्योंकि कोई ठोस कानून नहीं हैं जिनमें विशेष रूप से डोमेस्टिक वर्कर्स की परेशानियों का समाधान हो, न्यायपालिका ने अपनी ओर से भी इनकी सुरक्षा और अधिकारों के संरक्षण हेतु कुछ कदम उठाए हैं।
'बचपन बचाओ बनाम भारत संघ' (Bachpan Bachao Vs Union of India) मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee) और दिल्ली महिला आयोग (Delhi Commission for Women) को कुछ दिशानिर्देश रेकमेंड किए हैं। इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य डोमेस्टिक वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है लेकिन यह सिर्फ उन महिलाओं और बच्चों के लिए हैं जो दिल्ली में रहते और काम करते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) ने 'श्रमजीवी महिला समिति बनाम दिल्ली राज्य' (Shramjeevi Mahila Samiti Vs State of NCT of Delhi) मामले में केंद्र को निर्देश दिया था कि वो ऐसे राज्यों को कोई ग्रांट्स न दें जिन्होंने 'असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008' के तहत डोमेस्टिक वर्कर्स को पंजीकरण शुरू नहीं किया है।
Unorganised Workers Social Security Act, 2008
'असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008' (Unorganised Workers Social Security Act, 2008) के तहत उन सभी वर्कर्स' की सुरक्षा और रख-रखाव हेतु प्रावधान हैं जो 'असंगठित लेबर' का हिस्सा हैं; इसमें घर के कामों में हाथ बँटाने वाली डोमेस्टिक हेल्प भी शामिल है। इस श्रेणी में आने वाले सभी वर्कर्स को इस अधिनियम के तहत एक स्मार्ट आइडेंटिटी कार्ड और एक युनीक नंबर देने का प्रावधान है।
इस अधिनियम का उद्देश्य इन डोमेस्टिक वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा, उनके स्वास्थ्य और अन्य परेशानियों से संरक्षित रखना है। इस अधिनियम के तहत प्रावधानों को सुचारु रूप से लागू किया जा सके, इसके लिए अधिनियम में एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड और एक राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड की स्थापना की बात कही गई है। यह बोर्ड इन वर्कर्स के लिए योजनाओं को बनाते हैं।