क्या एक Adopted Child का अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार है? जानें क्या कहता है कानून
नई दिल्ली: देश में ऐसे कई सारे कपल्स हैं जिनके अपने खुद के बच्चे नहीं हैं और उन्होंने देश के कानून को फॉलो करते हुए, बच्चों को गोद लिया है। माता-पिता अपने इन गोद लिए बच्चों को बहुत प्यार देते हैं और अपने खुद के बच्चों की तरह मानते हैं; इन अडॉप्टेड बच्चों के प्रॉपर्टी राइट्स क्या हैं, एक गोद लिए हुए बच्चे का क्या अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार है? आइए इन सवालों का जवाब भारत के किस कानून के तहत मिल सकता है...
भारत में Adoption को लेकर कानून
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956' (The Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956) के तहत कोई भी हिंदू पुरुष जिसकी दिमागी हालत ठीक है और जो एक बालिग है, वो किसी भी हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख समुदाय के लड़के या लड़की को गोद ले सकता है। यदि इस पुरुष की शादी हो चुकी है तो गोद लेने के लिए उसकी पत्नी की रजामंदी भी जरूरी है।
इस अधिनियम के तहत एक अकेली महिला या फिर वो जिसकी शादी टूट चुकी है, पति का देहांत हो चुका है या फिर अदालत ने पति को अक्षम कार दिया है, एक बेटे या बेटी को गोद ले सकती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दत्तक ग्रहण का संचालन महिला एवं बाल मंत्रालय (The Ministry of Women and Children) के अधीन केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority) द्वारा किया जाता है और इसके लिए कुछ शर्तों का पालन करना होता है।
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क्या है Adopted Child का अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार?
अब आइए जानते हैं कि क्या एक अडॉप्टेड बच्चा अपने माता-पिता की संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा कर सकता है या नहीं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू धर्म में संपत्ति हस्तांतरण हेतु 'हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956' (The Hindu Succession Act, 1956) है। इस अधिनियम में प्रॉपर्टी ट्रांसफर के सिलसिले में 'बेटे' (Son) को परिभाषित नहीं किया गया है और इसलिए अडॉप्टेड बच्चों का भी अपनी माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार है।
इसके बावजूद इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि सिर्फ किसी बच्चे का पालन-पोषण करना इस बात का सबूत नहीं है कि उसे गोद लिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने 'राम दास बनाम गंडियाबाई' (Ram Das v. Gandiabai) मामले में यह कहा था कि क्योंकि पिता ने अपने बेटे का खर्चा उठाया था, इससे दत्तक ग्रहण साबित नहीं होता है। इसलिए, बेटे का उसके असली पिता की संपत्ति पर अधिकार था।
इसी तरह का एक मामला 'प्रफुल्ला बाला मुखर्जी बनाम सतीश चंद्र मुखर्जी' (Prafulla Bala Mukherjee v. Satish Chandra Mukherjee) था जिसमें यह बात कही गई है कि सिर्फ साथ रहना यह प्रूव नहीं करता है कि माता-पिता और बच्चे को अडॉप्शन की कड़ी ने जोड़ रखा है। इस मामले में एक मां ने अपने बेटे की संपत्ति पर अपना अधिकार मांगा था और जबकि उनका दत्तक पुत्र उन्हें मां कहता था, उसने संपत्ति अपनी असली मां के नाम की थी और इसलिए उन्हें कोई हक नहीं मिला।
'हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956' के तहत जैसे ही एक बच्चे को कोई गोद लेता है, वो बच्चे का परिवार बन जाता है और उसकी असली फैमिली से उसका रिश्ता खत्म हो जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि बच्चे का अपने दत्तक परिवार की संपत्ति पर अधिकार है, असली परिवार की संपत्ति पर नहीं। इस सबके बावजूद, मौजूदा मामलों का उदाहरण देखकर यह कहा जा सकता है कि बेशक अडॉप्टेड बच्चे का अपने नए परिवार की संपत्ति पर हक होता है लेकिन कहीं न कहीं यह अलग-अलग घटनाओं पर निर्भर करता है।