पूजा स्थलों को अपवित्र करना, धार्मिक संवेदनशीलता को ठेस पहुंचाने पर मिलती है यह सजा, जानिए
नई दिल्ली: हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 25-30 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गई है. संविधान नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता (Freedom of Conscience) और अपने धर्म का स्वतंत्रता से पालन करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है. इसके साथ ही समाज में शांति और धार्मिक सद्भाव बनाए रखने में इस प्रावधान की अहम भूमिका है.
हमारा देश विभिन्न धर्मों, विचारधाराओं और विश्वासों का एक समूह है, जहां लोग इस तरह की मान्यताओं को बहुत गरिमा और गर्व के साथ रखते हैं, लेकिन कई बार ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं, जहां कुछ उपद्रवी दूसरे धर्म के पूजा स्थलों को चोट पहुंचाते हैं या अपवित्र करते हैं.
संविधान के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों का यह दायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि जो लोग अन्य लोगों के बीच शांति को भंग करने का प्रयास करते हैं और उनकी धार्मिक संवेदनशीलता को चोट पहुंचाते हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए. इसी को ध्यान में रखते हुए देश के कानून में इन मामलों से निपटने के लिए कई प्रावधान बनाए गए हैं.
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IPC की धारा 295
IPC 295 के अनुसार, जो भी कोई व्यक्ति, किसी भी धर्म के पूजा स्थल या कोई वस्तु जिसे एक वर्ग के लोग पवित्र मानते हैं, उनको नष्ट करता है, या नुकसान पहुंचाता है, या किसी भी तरह से अपवित्र करता है और इसके पीछे उसका इरादा किसी वर्ग के लोगों के धर्म का अपमान करने का होता है या उसे पता है कि ऐसे कृत्यों को लोग अपने धर्म का अपमान मान सकते हैं, तो ऐसे लोगों के खिलाफ इस धारा के तहत सख्त कार्रवाई की जाने के प्रावधान है.
इस धारा में दो तरह के अपराध को परिभाषित किया गया है.
1. किसी भी वर्ग के लोगों की पवित्र धार्मिक वस्तु, जैसे कि मूर्ति, मकबरा, या पारसी मंदिरों में आग का कुआं, आदि को नष्ट करना या अपवित्र करना.
2. दूसरा, किसी भी धार्मिक स्थल जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च (Church), गुरुद्वारे आदि को अपवित्र करना या उन्हें नुकसान पहुंचाना शामिल है.
अभियोजन पर दबाव
दोनों ही स्थिति में अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी द्वारा ऐसे कार्य करने का इरादा किसी वर्ग के धर्म का अपमान करना था, या उसे इस बात का ज्ञान था कि ऐसे कार्य को किसी भी वर्ग द्वारा उनके धर्म का अपमान माना जा सकता है.
सजा
इस तरह के मामलों में दोषी पाए जाने पर अपराधी को दो साल तक जेल की सजा या जुर्माने या दोनों ही सजा से दंडित किया जा सकता है.
अपराध की श्रेणी
इस धारा के अंतर्गत परिभाषित अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, जिसमें बिना वारंट (Warrant) के अपराधी को गिरफ्तार किया जा सकता है. साथ ही इस तरह के अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.