अंतरराज्यीय मामलों में आरोपी के खिलाफ कैसे कार्रवाई करेगी पुलिस, दिल्ली हाईकोर्ट की जारी गाइडलाइन से जानें
Guidelines To Police For Inter-State Arrest: हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस के लिए दिशानिर्देश जारी की है. हाईकोर्ट के इन दिशानिर्देशों का पुलिस को तब पालन करना पड़ेगा, जब वे एक राज्य से दूसरे राज्य या अन्य केन्द्र शासित प्रदेश में किसी आरोपी को पकड़ने के लिए जाएगी. इन निर्देशों में जांच सौंपे जाने के बाद दूसरे राज्य में गए पुलिस अधिकारी को पूरी लिखित रिपोर्ट तैयार करनी पड़ेगी, जाने के लिए अपने स्थानीय एसएचओ (SHO) से इजाजत लेनी होगी. दिल्ली हाईकोर्ट ने ये दिशानिर्देश को पालन करने पर विशिष्ट जोड़ दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस अधिकारी ऐसा करने में असफल रहते हैं तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई या अदालत की अवमानना का मामला शुरू किया जाएगा.
दिशानिर्देश विस्तार से बताने से पहले आपको इस घटना की जानकारी दे दें: मामला अंतरधार्मिक विवाह का है, जिसमें मुस्लिम लड़की ने हिंदू धर्म स्वीकार कर हिंदू लड़के से हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार शादी की. लड़की के पिता को खबर हुई, उन्होंने गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस जेएनयू परिसर (दिल्ली) में रह रहे कपल्स के पास पहुंची. लड़के को पकड़कर अपने थाने ले गई. लड़की, परिजनों को सौंप दी गई. अब लड़के ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से लड़की को प्रस्तुत करने की मांग दिल्ली हाईकोर्ट से की, दिल्ली हाईकोर्ट ने कपल को राहत दी. अंतरराज्यीय कार्रवाई में पुलिस द्वारा प्रोटोकॉल की अनदेखी से अदालत ने नाराजगी जताई.
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की डिवीजन बेंच ने दिल्ली पुलिस को जस्टिस एसपी गर्ग कमेटी द्वारा दी गई सिफारिशों को लागू करने को कहा है. अदालत ने इसी मामले में ये कमेटी गठित की थी, जिन्होंने अंतर राज्यीय मामलों में पुलिस की गिरफ्तारी करने को लेकर प्रोटोकॉल तैयार किए हैं.
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रिटायर्ड जस्टिस एसपी गर्ग की अध्यक्षता वाली समिति ने अंतर-राज्यीय गिरफ्तारियों की स्थिति में पुलिस द्वारा अपनाए जाने वाले प्रोटोकॉल के संबंध में निम्नलिखित विस्तृत सुझाव दिए, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस को लागू करने को कहा है;
- पुलिस अधिकारी (I.O) को केस सौंपे जाने के बाद, जांच करने के लिए राज्य/संघ राज्य क्षेत्र से बाहर जाने के लिए अपने सीनियर अधिकारी से लिखित में या फोन पर इजाजत लेनी होगी.
- किसी मामले में जब पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी करने का फैसला करता है, तो उसे तथ्यों को बताना चाहिए और लिखित रूप में कारण दर्ज करने चाहिए, जिससे यह संतुष्टि हो कि जांच के लिहाज से गिरफ्तारी जरूरी है. सबसे पहले, उसे सीआरपीसी की धारा 78 और 79 के तहत गिरफ्तारी/तलाशी वारंट पाने के लिए क्षेत्राधिकार मजिस्ट्रेट से संपर्क करना चाहिए, सिवाय उन आपातकालीन मामलों के जब लगने वाले समय के परिणामस्वरूप अभियुक्त के भागने या आपत्तिजनक सबूतों के गायब होने की संभावना हो या गिरफ्तारी/तलाशी वारंट प्राप्त करने से उद्देश्य विफल हो जाए.
- अगर पुलिस बिना वारंट लिए दूसरे राज्य में जाती है तो उस पुलिस अधिकारी को उन कारणों को लिखित तौर पर बताना चाहिए कि गिरफ्तारी/तलाशी वारंट प्राप्त किए बिना दूसरे राज्य में जाने के लिए क्या मजबूरी थी.
- राज्य से बाहर जाने से पहले पुलिस अधिकारी को अपने पुलिस स्टेशन की दैनिक डायरी में इस बात की पूरी डिटेल लिखनी चाहिए, जिसमें उसके साथ जाने वाले पुलिस अधिकारियों और निजी व्यक्तियों के नाम, वाहन संख्या, यात्रा का उद्देश्य, जाने वाले स्थान का नाम, जाने का समय और तारीख आदि की जानकारी होनी चाहिए.
- यदि संभावित गिरफ़्तार व्यक्ति महिला है, तो टीम में एक महिला पुलिस अधिकारी को शामिल किया जाना चाहिए. पुलिस अधिकारियों को अपने साथ पहचान पत्र लेकर जाना आवश्यक है. टीम में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों को वर्दी पहननी चाहिए; जिसपर उनके स्पष्ट पहचान और नाम टैग होने चाहिए, जिसमें उनका पदनाम भी हो.
- दूसरे राज्य में जाने से पहले, पुलिस अधिकारी को उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र में उन्हें जांच करनी है. उसे अपने साथ शिकायत/एफआईआर और अन्य दस्तावेजों की उस राज्य की भाषा में अनुवादित प्रतियां ले जानी चाहिए जहां वह जाना चाहता है.
- गंतव्य पर पहुंचने के बाद, सबसे पहले उसे सहायता और सहयोग प्राप्त करने के लिए अपने उद्देश्य के बारे में संबंधित पुलिस स्टेशन को सूचित करना चाहिए. संबंधित एसएचओ को उसे सभी कानूनी सहायता प्रदान करनी चाहिए. इस बात को उक्त पुलिस स्टेशन में दर्ज की जानी चाहिए.
- वापस लौटते समय पुलिस अधिकारी को स्थानीय पुलिस स्टेशन जाना चाहिए और दैनिक डायरी में एक प्रविष्टि दर्ज करानी चाहिए जिसमें राज्य से बाहर ले जाए जा रहे व्यक्ति का नाम और पता; बरामद की गई वस्तुएं, यदि कोई हों, का उल्लेख होना चाहिए. इसमें शिकायतकर्ता का नाम भी दर्शाया जाना चाहिए.
- गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बाद ट्रांजिट रिमांड प्राप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए, जब तक कि स्थिति की अनिवार्यताएं अन्यथा अपेक्षित न हों और व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 56 और 57 के अधिदेश का उल्लंघन किए बिना मामले के क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जा सकता है.
- जिस मजिस्ट्रेट के सामने गिरफ्तार व्यक्ति को पेश किया जाता है, उसे मामले के तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए और उसे यंत्रवत रूप से ट्रांजिट रिमांड नहीं देना चाहिए. उसे खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि केस डायरी में प्रविष्टियों के रूप में ऐसी सामग्री मौजूद है जो ट्रांजिट रिमांड की प्रार्थना को उचित ठहराती है. किसी अभियुक्त या आरोपी को रिमांड पर भेजने का निर्देश देना एक न्यायिक निर्णय है.
- धारा 41सी के अनुसार, प्रत्येक जिले में एक कंट्रोल रूम स्थापित किए जाने चाहिए, जहां गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के नाम, पता तथा गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारियों के पदनाम लिखे जाने जाने चाहिए. राज्य स्तर पर बने कंट्रोल रूम में दूसरे राज्य में गिरफ्तार कर भेजे गए व्यक्तियों का जानकारी एकत्र कर रखनी चाहिए.
- पुलिस अधिकारी को घटनास्थल पर की गई सभी कार्यवाही को रिकॉर्ड करना चाहिए और एक 'गिरफ्तारी ज्ञापन' तैयार करना चाहिए जिसमें गिरफ्तारी का समय, तारीख और उस रिश्तेदार/मित्र का नाम लिखा हो जिसे गिरफ्तारी की सूचना दी गई है. इसमें गिरफ्तारी के कारणों का जिक्र होना चाहिए.
- चूंकि गिरफ्तार व्यक्ति को उसके राज्य से बाहर किसी ऐसे स्थान पर ले जाया जाना है, जहां उसका कोई परिचित न हो, इसलिए उसे अपने साथ अपने परिवार के सदस्य/परिचित को ले जाने की अनुमति दी जा सकती है (यदि संभव हो तो), ताकि वह क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने तक उसके साथ रहे. ऐसा परिवार का सदस्य उसके लिए कानूनी सहायता की व्यवस्था कर सकेगा.
- गिरफ्तार व्यक्ति को यथाशीघ्र क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट (लोकल मजिस्ट्रेट) के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, किसी भी मामले में, यात्रा के समय को छोड़कर गिरफ्तारी की तारीख से 24 घंटे से अधिक नहीं, ताकि ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी और उसकी हिरासत, यदि आवश्यक हो, न्यायिक आदेश द्वारा उचित ठहराया जा सके. सीआरपीसी की धारा 57 के तहत निर्धारित 24 घंटे की अवधि वह अधिकतम समय है जिसके बाद किसी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता.
- पुलिस स्टेशन पहुंचने पर, पुलिस अधिकारी को रिकॉर्ड में आगमन प्रविष्टि करनी चाहिए और उसके द्वारा की गई जांच, गिरफ्तार किए गए व्यक्ति और बरामद की गई वस्तुओं को दर्ज करना चाहिए. साथ ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों/संबंधित एसएचओ को भी तुरंत इसकी सूचना देनी चाहिए. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत रूप से इस जांच की निगरानी करेंगे.
- हिरासत के दौरान शारीरिक यातना की संभावना से बचने के लिए गिरफ्तारी के तुरंत बाद मेडिकल जांच कराई जानी चाहिए.
- जांच अधिकारी को एक पूर्ण और व्यापक केस डायरी रखनी होगी जिसमें उसके द्वारा की गई जांच का उल्लेख हो.
- परिवहन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन की लॉग बुक रखी जानी चाहिए और उस पर हस्ताक्षर किए जाने चाहिए. जांच अधिकारी को यह बताना चाहिए कि वाहन सरकारी था या निजी; उसके चालक का नाम और यह कैसे और किसके द्वारा व्यवस्थित किया गया था.जहाँ तक संभव हो परिवहन के लिए केवल सरकारी वाहन का ही उपयोग किया जाना चाहिए.
- गृह मंत्रालय/केंद्र सरकार/पुलिस आयुक्त को पुलिस अधिकारियों को सभी उपयुक्त सहायता प्रदान करने के लिए उचित दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिए। नियमों/दिशा-निर्देशों का पालन न करने पर पुलिस अधिकारी पर विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ न्यायालय की अवमानना का भी आरोप लग सकता है.
- सरकारी वकील को ट्रांजिट रिमांड प्राप्त करने के समय अपने राज्य में आने वाले पुलिस अधिकारी को आवश्यक सहायता प्रदान करनी चाहिए.
- दोषी पुलिस अधिकारी को सार्वजनिक कानून के तहत तथा कठोर दायित्व के तहत मुआवजा देने का निर्देश दिया जा सकता है.
मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को दोनों को 50,000 रूपये देने को कहा है. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार के पुलिस महानिदेशक को व्यक्तिगत तौर पर चिट्ठी लिखकर कपल से माफी मांगने को कहा है.