उच्च न्यायालय ने टीएमसी नेता अनुब्रत को अवैध हिरासत से जुड़ी याचिका वापस लेने की अनुमति दी
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता अनुब्रत मंडल को अपनी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका वापस लेने की अनुमति दी। याचिका में मंडल ने दावा किया है कि पश्चिम बंगाल में मवेशी तस्करी से जुड़े धन शोधन के एक मामले में उन्हें जेल में हिरासत में रखा जाना अवैध है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को मंडल के वकील से कहा कि उनकी याचिका स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है और उन्हें कानून में उपयुक्त कार्यवाही शुरू करने की छूट दी जाती है। पीठ में न्यायमूर्ति गौरंग कंठ भी शामिल हैं।
इससे पहले, टीएमसी नेता के वकील ने दलील दी कि उन्हें (मंडल को) न्यायिक हिरासत में रखने का कोई वैध न्यायिक आदेश नहीं है। उल्लेखनीय है कि अवैध हिरासत में रखे गये एक व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जाती है।
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अगली सुनवाई 12 जुलाई को
उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में, निचली अदालत के आदेश की वैधता को चुनौती देने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका नहीं, बल्कि अपील दायर की जा सकती है। अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील मुदित जैन से कहा, यदि कुछ गलत है तो सिर्फ अपील की जा सकती है।हमें यह याचिका खारिज करनी होगी।
अधिवक्ता मुदित जैन के जरिये दायर अपनी याचिका में, पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी के बीरभूम जिला इकाई प्रमुख ने कहा कि जब आठ मई को उन्हें निचली अदालत में पेश किया गया था, तब उन्हें न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा गया था, बल्कि तिहाड़ जेल ले जाया गया था।
उन्होंने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख 12 जुलाई तय की गई है, जो उनकी कथित न्यायिक हिरासत को एक बार में अधिकतम 15 दिन के लिए भेजे जाने की वैध सीमा से आगे है।
याचिका के अनुसार
कानून के प्रावधान के अनुसार, एक आरोपी को अदालत द्वारा एक आदेश पारित किये जाने पर ही न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है और इसके अभाव में इस तरह के एक आरोपी की हिरासत अवैध एवं कानून की अनुमति के बगैर है।
याचिका में इसलिए तिहाड़ जेल में अवैध हिरासत से मंडल को रिहा करने का अनुरोध किया गया है। मंडल को मामले में पिछले साल 11 अगस्त को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पिछले साल 17 नवंबर को गिरफ्तार किया था।