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लोक सेवकों से सम्बंधित मामलों के लिए संविधान में विशेष व्यवस्था है, जानिये अनुच्छेद 323A के बारे में

Central Administrative Tribunal CAT as given under Article 323A of The Constitution of India

न्यायपालिका अपना काम अच्छी तरह, बिना किसी रुकावट के कर सके, इसके लिए अधिकरणों (Tribunals) की स्थापना की गई है और काम को बांटने का प्रयास किया गया है। लोक सेवा से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323A के तहत क्या प्रावधान है, आइए जानते हैं

Written By My Lord Team | Published : June 22, 2023 10:39 AM IST

अनन्या श्रीवास्तव

देश के सभी नागरिकों के पास यह अधिकार है कि यदि उनके साथ कोई नाइंसाफी होती है, तो वो न्याय की मांग कर सकते हैं। न्याय पाने के लिए देश में न्यायपालिका है जिसके द्वारा आपको आपका हक दिलवाती है। न्यायतंत्र सहजता से काम कर सके और सभी लोगों के अधिकारों को संरक्षित रख सके, इसके लिए न्यायिक शक्ति को कुछ प्रशासनिक प्राधिकारियों के हाथों में भी सौंप दिया गया है।

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इसी के चलते देश में अधिकरणों यानी ट्राइब्यूनल्स (Tribunals in India) को सेटअप किया गया है। लोक सेवकों से सम्बंधित मामलों के लिए किस तरह के अधिकरण की बात की गई है और इसके बारे में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323A (Article 323A of The Constitution of India) में क्या कहा गया है, आइए जानते हैं.

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सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 323A के तहत, 1985 में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Central Administrative Tribunal) की स्थापना की गई थी। कैट (CAT) एक वैधानिक निकाय है जिसे संविधान के 42वें संशोधन के तहत बनाया गया था। लोक सेवकों से सम्बंधित विवादों, शिकायतों और मामलों के लिए स्थापित इस निकाय को अनुच्छेद 323A के अनुसार, सिर्फ संसद द्वारा स्थापित किया जा सकता है।

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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 323A

भारत के संविधान के अनुच्छेद 323A में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना की बात कही गई है और स्पष्ट किया गया है कि संसद को कानून के अनुसार, किस तरह एक प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना करनी है।

  •  कानून के आधार पर संसद केंद्र के लिए एक प्रशासनिक अधिकरण स्थापित किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर हर राज्य के लिए या जिस राज्य को जरूरत है, उसक लिए भी इस अधिकरण को सेटअप किया जा सकता है।
  • इस अनुच्छेद के तहत, संसद द्वारा केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के क्षेत्राधिकार, शक्ति और अधिकारों के स्पष्टीकरण की भी बात की गई है।
  • साथ ही, एक प्रक्रिया भी तैयार करनी जरूरी है जिसके आधार पर यह प्रशासनिक प्राधिकरण काम करेगा जिसमें परिसीमन (Limitation) और साक्ष्य के नियम (Rules of Evidence) के प्रावधान शामिल होंगे।
  • संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत, केवल सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार में प्रशासनिक अधिकरण के मामले शामिल होंगे, किसी अन्य अदालत को यह अधिकार नहीं मिलेगा।
  • इस अनुच्छेद के तहत, यदि कोई ऐसे मामले हैं जो अदालत में लंबित हैं और उन्हें इस तरह के प्रशासनिक अधिकरण संभाल सकते हैं, तो ये ममले तुरंत इन्हें ट्रांसफर कर दिए जाएंगे।
  • संविधान के अनुच्छेद 371D के क्लॉज (3) के तहत यदि देश के राष्ट्रपति कोई फैसला लेते हैं, तो प्रशासनिक अधिकरण उस फैसले को रद्द या संशोधित (Repeal or Amend) कर सकता है।

केंदीय प्रशासनिक अधिकरण

बता दें कि प्रशासनिक अधिनियम, 1985 (The Administrative Act, 1985) की धारा 4 के तहत एक केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और न्यायिक और प्रशासनिक सदस्य होने चाहिए जिन्हें देश के राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद नियुक्त करते हैं।

केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की देश में 17 पीठ और 21 परिपथ पीठ (Circuit Benches) होती हैं और केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के पास खुद की अवमानना के खिलाफ एक्शन लेने का वही अधिकार है जो एक उच्च न्यायालय का होता है।

बता दें कि केंद्रीय प्रशासनिक अधिकान सिर्फ लोक सेवा से जुड़े मामलों के बारे में है; बाकी मामलों के लिए संविधान के अनुच्छेद 323B के तहत अधिकरणों की स्थापना की बात की गई है।