न्यायिक कार्य सरकार को नहीं सौंपे गए हैं! Bulldozer Justice पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, मकान गिराने को लेकर भी गाइडलाइन जारी
बुलडोजर जस्टिस पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि न्यायिक कार्य न्यायपालिका को सौंपे गए हैं. कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने हमने अपराधिक कानूनों और शक्तियों के बंटवारे पर विचार करते हुए पाया कि दोषी व्यक्तियों के मकान अदालत के आदेश के बिना नहीं गिराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन को लेकर दिशानिर्देश (Guideline on Bulldozer Action) जारी करते हुए कहा कि इनका उल्लंघन करनेवाले अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना (Contempt of Court) का मुकदमा चलाया जाएगा. बता दें कि बुलडोजर जस्टिस (Bulldozer Justice) पर रोक लगाने को जमीयत-उलेमा ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर राज्य सरकारों द्वारा त्वरित कार्रवाई कर बुलडोजर से पीड़ितों का घर गिराने की कार्रवाइयों पर रोक लगाने की मांग की थी.
न्यायिक कार्य अदालत को सौंपे गए हैं!
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने बुलडोजर जस्टिस के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई की. जस्टिस बीआर गवई ने कवि प्रदीप की एक कविता, घर एक सपना है जो कभी ना टूटे, सुना कर ऑर्डर पढ़ना शुरू किया.
जस्टिस बीआर गवई कि हर किसी का सपना होता है कि उसका आशियाना कभी न छिना जाए. हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आशियाना छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप है. हमने लोगों के मौलिक अधिकारों के बारे में विचार किया है. मौलिक अधिकार राज्य सरकार की मनमानी कार्रवाई से संरक्षण प्रदान करते है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक आम आदमी का घर बेहद लगन मेहनत, कड़ी तपस्या से बनता है और क्षण भर में उसे ढहा देना लोकतांत्रिक नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को साफ हिदायत दी है कि
- मात्र FIR हो जाने से ही किसी का घर का नहीं गिराया जा सकता है.
- यदि कोई व्यक्ति जघन्य अपराध में दोषी पाया जाता है तो भी राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसका घर नहीं गिराया जा सकता है.
- नियम-कानून के पालन बिना सरकार किसी का घर मनमाने ढंग से नहीं गिरा सकती है.
जस्टिस बीआर गवई ने कहा,
क्या अपराध करने के आरोपी या दोषी ठहराए गए व्यक्तियों की संपत्ति को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना गिराया जा सकता है... हमने आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता के मुद्दों पर विचार किया है और आरोपी के मामले में पूर्वाग्रह नहीं किया जा सकता... हमने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर भी विचार किया है.
पीठ ने बुलडोजर एक्शन की त्वरित कार्रवाई पर रोक लगा दी है.सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों अवैध निर्माण या किसी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर दिशानिर्देश जारी किया है. फैसले में स्पष्ट कहा गया कि अगर अधिकारी अदालत की दिशानिर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो उनके खिलाफ अदालत की अवमानना (Contempt of Court) का मुकदमा चलाया जाएगा. साथ ही मुआवजे की भारपाई की मांग भी की जाएगी.
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन लेने से पहले अपनाई जानेवाली प्रक्रिया को लेकर दिशानिर्देश जारी किया है.
- बिना किसी कारण बताओ नोटिस के कोई मकान नहीं गिराया जाना चाहिए। कम से कम 15 दिनों का वक़्त दिया जाना चाहिए.
- नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा जाना चाहिए. मकान के बाहर भी इसको चस्पा किया जाना चाहिए.
- मकान मालिक को भेजे गए नोटिस की एक कॉपी office of Collector या District Magistrate को भेजा जाना चाहिए.
- नोटिस में साफ साफ जिक्र होना चाहिए कि कैसे नियमों का उल्लंघन हुआ है.
- ऑथोरिटी को मकान मालिक को सुनवाई के मौका देना चाहिए.
- डिमोलिशन की प्रकिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए.
- डिमोलिशन रिपोर्ट को डिजिटल पोर्टल पर डाला जाना चाहिए