Indian Patents Act के तहत क्या है Bolar Provision, क्यों रहा है ये बहस का विषय?
नई दिल्ली:भारतीय पेटेंट्स अधिनियम, 1970 (The Indian Patents Act, 1970) के तहत उन आविष्कारों के लिए पेटेंट अधिकार दिए जाते हैं जो एक नई और आविष्कारशील प्रक्रिया, प्रोडक्ट या लेख को कवर करते हैं जिनसे नवीनता और आविष्कारशील कदमों की पेटेंट पात्रता आवश्यकताएं पूरी हों और जो औद्योगिक अनुप्रयोग में सक्षम हों।
'पेटेंट' (Patent) एक विशेष, एक्स्क्लूसिव अधिकार है जो उस आविष्कार को दिया जाता है जिसमें कुछ नया करने की, किसी चीज को ऐसे ढंग से करने की जो पहले कभी न हुई हो या किसी समस्या का ऐसा समाधान निकालने की जो पहले न ढूंढा गया हो, क्षमता हो। इस अधिकार की एक सीमित अवधि होती है और देश में यह अवधि पेटेंट की तिथि से शुरू होती है और आने वाले बीस साल तक चलती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पेटेंट अधिनियम को अब तक कुल मिलाकर चार बार संशोधित किया जा चुका है और साल 2005 में जब इसमें संशोधन हुआ था तो 'बोलर प्रावधान' शामिल किया गया था। यह 'बोलर प्रावधान' क्या है, इसकी क्या आवश्यकता है और इसे लेकर बहस क्यों होती आई है, आइए सबकुछ जानते हैं.
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Bolar Provision
आपको बता दें कि आमतौर पर अगर किसी व्यक्ति के पास अपने आविष्कार का पेटेंट अधिकार होता है तो वो अपनी खोज को इस तरह संरक्षित करके रख सकता है कि उसपर सिर्फ आविष्कारक का एकाधिकार हो। इस सामान्य नियम के कुछ अपवाद भी होते हैं जिनके तहत एक थर्ड पार्टी पेटेंट किए गए आविष्कारों को बेच सकती है, उसका उपयोग कर सकती है या फिर उसे संशोधित कर सकती है; यह पेटेंट धारक के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
यही अपवाद (Exception) 'बोलर प्रावधान' (Bolar Provision) है, जो भारतीय पेटेंट्स अधिनियम, 1970 में 2005 में हुए संशोधन के तहत, धारा 107A में शामिल किया गया था। इस प्रावधान के तहत किसी नई आविष्कृत दवा या किसी आविष्कार को कानूनी परिणामों के डर के बिना किसी तीसरे पक्ष (जेनरिक ड्रग मैन्युफैक्चरर्स) द्वारा आगे के विकास या अनुसंधान उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया या बेचा जा सकता है।
क्या है Indian Patents Act का Section 107A?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस अधिनियम की धारा 107A के अंतर्गत यह कहा गया है कि-
- बोलर प्रावधान के तहत यदि कोई व्यक्ति एक ऐसे आविष्कार को बनाता है, उसका निर्माण करता है या फिर उसे बेचने या आयात हेतु इस्तेमाल करता है लेकिन वो इस आविष्कार का पेटेंटेड मालिक नहीं है, तो उसपर इसके लिए कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी, इसे पेटेंट अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
- किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे शख्स से पेटेंट उत्पादों का आयात को, जो उसका उत्पादन करने और बेचने या वितरित करने के लिए कानून के तहत विधिवत अधिकृत है, पेटेंट अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
- इस इस धारा के तहत यह भी स्पष्ट किया गया है कि यदि समाज को किसी दवाई की आवश्यकता है और उसको लेकर जांच और प्रयोग होना जरूरी है, तो एक तीसरा पक्ष बिना पेटेंटेड ओनर की अनुमति के, पेटेंट पीरियड के दौरान ऐसा कर सकता है; यह प्रावधान फार्मास्यूटिकल और एग्रोकेमिकल प्रोडक्ट्स के लिए है।
- बोलर प्रावधान में तीसरा पक्ष बेशक पेटेंटेड प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर सकता है लेकिन उसके लिए भी कुछ शर्तों का पालन करना होगा। बिना किसी समझौते के, तीसरे पक्ष को उस आविष्कार के अधिकार ट्रांसफर नहीं किये जाएंगे और पेटेंटेड ओनर तीसरी पार्टी पर अपने हिसाब से कुछ शर्तें और प्रतिबंध लगा सकता है।
क्यों बना हुआ है ये बहस का विषय?
जब से यह प्रावधान लागू किया गया है, यह बहस का एक विषय बना हुआ है। जो लोग इस प्रावधान के पक्ष में हैं, उनका ऐसा मानना है कि बोलर प्रावधान जेनरिक ड्रग मैन्युफैक्चरर्स को जल्दी मार्केट में एंट्री दिलाकर न सिर्फ प्रतियोगिता और नवीनता को बढ़ावा देता है बल्कि इससे आम जनता को समय से, कम कीमत पर अच्छी और जरूरी दवाइयां मिल जाती हैं।
वहीं ऐसे भी कई लोग हैं जो बोलर प्रावधान से नाखुश हैं और इसका विरोध करते हैं। उनका यह कहना है कि इस प्रावधान ने पेटेंट होल्डर्स के अधिकारों को कमजोर कर दिया है क्योंकि इसके तहत जेनरिक मैन्युफैक्चरर्स उनके उत्पादों की नकल कर सकते हैं और पेटेंट के एक्सपायर होने से पहले ही इसे कम कीमत पर बेच सकते हैं। इससे लोग हतोत्साहित भी हो सकते हैं क्योंकि उनके आर्थिक फ़ायदों का दायरा कम हो जाता है।
इन विरोधाभासी विचारों के बावजूद देश में इस प्रावधान को एक्सेप्ट किया गया है और सस्ती दवाइयों को समय से पहुंचाने में बहुत बढ़ावा मिला है।