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भारतीय न्याय संहिता 2023 (धारा 4 से 10): सजा के विभिन्न प्रकार, जुर्माना नहीं भरने और सामुदायिक सेवा से मना करने पर क्या होगी सजा

भारतीय न्याय संहिता की धारा 11: एकांत कारावास की सजा और उसकी सीमा

बीएनएस 2023 की चैप्टर 4 ना केवल सजा, बल्कि सजा के प्रकार, जुर्माना और जुर्माना तय करने की परिस्थिति, साथ ही जुर्माना नही भर पाने की स्थिति में क्या सजा होगी, इस बात का जिक्र करती है.

Written By Satyam Kumar | Published : August 7, 2024 5:30 PM IST

BNS 2023: नए कानून में सजा को दंडात्मक प्रकृति की जगह सुधारात्मक बनाने का प्रयास किया गया है. भारतीय न्याय संहिता के चैप्टर में सजा के भिन्न प्रकारों में सामुदायिक सेवा (Community Service) को शामिल किया जाना इस बात पुष्टि करती है. बीएनएस की चैप्टर 4 में सजा में कारावास व जुर्माने का जिक्र किया गया है. कारावास कैसी और किस तरह की हो सकती है, जुर्माना नहीं जमा करने पर क्या होगा, साथ ही सामुदायिक सेवा को सजा के तौर पर स्वीकार करने पर क्या सजा देने का प्रावधान है आदि के बारे में चर्चा की गई है.

भारतीय न्याय संहिता 2023 के सेक्शन 4 में सजा (Of Punishments)

न्याय संहिता की धारा सजा निम्नलिखित तरीके अपराधियों को सजा देने की बात कहती है. बीएनएस की धारा 4 के तहत अपराधियों को दिए जाने वाले विभिन्न दंड दिए जा सकते हैं वे हैं -

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  1.  मृत्युदंड;
  2. आजीवन कारावास;
  3. कारावास, जो दो प्रकार का होता है, अर्थात् - (1) कठोर, अर्थात् कठिन श्रम; (2) साधारण;
  4. संपत्ति की जब्ती;
  5. जुर्माना;
  6. सामुदायिक सेवा (सामुदायिक सेवा को बीएनएस में ही पहली बार शामिल किया गया है. IPC में इसका कोई जिक्र नहीं था.)

बीएनएस की धारा 5: सजा को परिवर्तित करने के सरकार के अधीन निर्णय 

5. संबंधित सरकार, अपराधी की सहमति के बिना, इस संहिता के तहत किसी भी सजा को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474 के अनुसार किसी अन्य सजा में परिवर्तित कर सकती है.

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व्याख्या: इस धारा के प्रयोजनों के लिए “संबंधित सरकार” पद का अर्थ है,

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(a) वैसे मामलों में जिसमें मृत्युदंड की सजा मिली हो या किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है जिस तक संघ की कार्यपालिका शक्ति विस्तारित होती है, केंद्रीय सरकार; और

(b) वैसे मामलों में जहां दंड (चाहे मृत्यु दंडादेश हो या नहीं) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है जिस तक राज्य की कार्यपालिका शक्ति विस्तारित होती है, उस राज्य की सरकार जिसके अंतर्गत अपराधी को दंडादेश दिया गया है.

दंड की अवधि के अंश दंड (कारावास के कुछ मामलों में) पूर्णतः या आंशिक रूप से कठोर या साधारण हो सकता है.

बीएनएस की धारा 6: सजा की अवधि का हिस्सा (Fractions Of Terms Of Punishment)

दण्ड की अवधि के अंशों की गणना करते समय, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के समतुल्य माना जाएगा, जब तक कि अन्यथा प्रावधान न किया गया हो.

सजा (कारावास के मामलों में) पूरी तरह या आंशिक रूप से कठोर या सामान्य हो सकती है

बीएनएस की धारा 7: प्रत्येक मामले में जिसमें कोई अपराधी किसी भी भांति के कारावास मिला है, ऐसे अपराधी को सजा  देने वाला न्यायालय अपने आर्डर में यह निर्देश देने के लिए सक्षम होगा कि ऐसा कारावास पूर्णतः कठोर हो, या ऐसा कारावास पूर्णतः सामान्य होगा, या ऐसे कारावास का एक भाग कठोर होगा और शेष सामान्य होगा.

समझने के लिए: कठोर कारावास से अर्थ लगाया जा सकता है कि सजा सश्रम होगी या दोषी को एकांत कारावास (Solitary Confinement) मिलेगी. साथ ही अगर कारावास किसी टाइम पीरियड के लिए है तो अदालत ये भी तय करेगी कि उसका कितना समय उसे कठोर या सामान्य होगा.

BNS की धारा 8: जुर्माने की राशि या जुर्माना नहीं भर पाने की स्थिति में

बीएनएस की धारा 8(1): (1) जहां जुर्माने की कोई राशि नहीं बताई गई है, वहां जुर्माने की वह राशि, जिसका भुगतान अपराधी को करना होगा, असीमित होगी, किन्तु अत्यधिक नहीं होगी (which offender is liable is unlimited, but shall not excessive).

बीएनएस की धारा 8(2): किसी अपराध के सभी मामले में

2 (a)  कारावास के साथ-साथ जुर्माने से भी दंडनीय, जिसमें अपराधी को जुर्माने से दण्डित किया जाएगा, चाहे कारावास सहित हो या रहित;

2(b) कारावास या जुर्माने से, या केवल जुर्माने से दंडनीय, जिसमें अपराधी को जुर्माने से दण्डित किया जाएगा,

ऐसे अपराधी को सजा सुनाने वाला अदालत सजा में यह निर्देश देने के लिए सक्षम होगा कि, जुर्माना न चुकाने की दशा में, अपराधी को एक निश्चित अवधि के लिए कारावास भोगना पड़ेगा,

बीएनएस की धारा 8(3): वह अवधि जिसके लिए अदालत अपराधी को जुर्माना अदा न करने की स्थिति में जेल की सजा का निर्देश देता है, जेल की सजा उस अवधि के एक-चौथाई से अधिक नहीं होगी जो अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम अवधि है, यदि अपराध कारावास के साथ-साथ जुर्माने से भी दंडनीय हो.

(कारावास का अर्थ जेल भी होता है.)

बीएनएस की धारा 8(4): जुर्माना नहीं भरने या सामुदायिक सेवा न करने पर अदालत द्वारा दिया गया  कारावास किसी भी प्रकार का हो सकता है, जिससे अपराधी को उस अपराध के लिए दण्डित किया जा सकता था.

बीएनएस की धारा 8(5): यदि अपराध जुर्माने या सामुदायिक सेवा से दण्डनीय है, तो जुर्माना न देने या सामुदायिक सेवा न देने पर न्यायालय द्वारा दिया गया कारावास सामान्य होगा.  वह अवधि जिसके लिए अदालत जुर्माना नहीं भरने  या सामुदायिक सेवा नहीं करने पर अपराधी को कारावास में रखने का निर्देश देता है, निम्नलिखित से अधिक नहीं होगी,—

(a) दो महीने, जब जुर्माने की राशि पांच हजार रुपए से अधिक न हो;

(b) चार महीने, जब जुर्माने की राशि दस हजार रुपए से अधिक न हो; और

(c) किसी अन्य मामले में एक वर्ष.

बीएनएस की धारा 8(6): कारावास के दौरान जुर्माने का भुगतान

8 (6) (a):  जुर्माना अदा न करने पर लगाया गया कारावास तब समाप्त हो जाएगा जब जुर्माना अदा कर दिया जाएगा या विधि प्रक्रिया द्वारा वसूल कर लिया जाएगा (Levied by process of Law);

अर्थ: जुर्माना न चुकाने पर कारावास की सजा तब समाप्त हो जाएगी है जब जुर्माना कानूनी तरीके से चुका दिया जाता है या वसूल कर लिया जाता है.

8(6) (b): यदि, भुगतान में चूक के लिए नियत कारावास की अवधि की समाप्ति से पूर्व, जुर्माने का ऐसा अनुपात चुका दिया जाए या वसूल कर लिया जाए, जिससे  भुगतान में चूक के कारण भोगी गई कारावास की अवधि, अभी तक अदा न किए गए जुर्माने के भाग के आनुपातिक से कम न हो, तो कारावास समाप्त हो जाएगा.

अर्थ:  यदि जुर्माने का एक भाग कारावास की अवधि समाप्त होने से पहले चुका दिया जाता है, जिससे कि शेष न चुकाया गया जुर्माना कारावास की अवधि के समानुपाती हो, तो कारावास समाप्त हो जाएगा.

उदाहरण

A को एक हजार रुपये का जुर्माना और भुगतान न करने पर चार महीने के कारावास की सजा सुनाई जाती है. यहां, यदि कारावास के एक महीने की समाप्ति से पहले जुर्माने के सात सौ पचास रुपए चुका दिए जाएं या वसूल किए जाएं, तो A को पहला महीना समाप्त होते ही मुक्त कर दिया जाएगा.  यदि पहले महीने की समाप्ति के समय या A के कारावास में रहने के दौरान किसी भी बाद के समय सात सौ पचास रुपए चुका दिए जाएं या वसूल किए जाएं, तो A को तुरंत रिहा कर दिया जाएगा.

यदि कारावास के दो महीने की समाप्ति से पहले जुर्माने के पांच सौ रुपए चुका दिए जाएं या वसूल किए जाएं, तो A को दो महीने पूरे होते ही रिहा कर दिया जाएगा. यदि उन दो महीनों की समाप्ति के समय पांच सौ रुपए चुका दिए जाएं या वसूल किए जाएं,तो भी A को रिहा कर दिया जाएगा.

बीएनएस की धारा 8(7): जुर्माना या उसका कोई भाग, जो न चुकाया गया हो, दण्डादेश पारित होने के पश्चात् छह वर्ष के भीतर किसी भी समय वसूल किया जा सकेगा और यदि दण्डादेश के अधीन अपराधी छह वर्ष से अधिक अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय हो तो उस अवधि की समाप्ति से पूर्व किसी भी समय वसूल किया जा सकेगा; और अपराधी की मृत्यु से कोई सम्पत्ति दायित्व से उन्मुक्त नहीं होती है, जो उसकी मृत्यु के पश्चात उसके ऋणों के लिए वैध रूप से उत्तरदायी होगी अर्थात अपराधी की मृत्यु के मामले में, उनके ऋणों की देयता उनकी मृत्यु के बाद भी वैध रहती है.

बीएनएस की धारा 9: कई अपराधों को मिलाकर एक अपराध होने की सजा की एक लिमिट

बीएनएस की धारा 9(1) : यदि अपराध कई भागों से मिलकर बना है और उसका कोई भाग पृथक अपराध है, तो अपराधी को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक सजा से दण्डित नहीं किया जाएगा, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से कहा न गया हो कि अपराधी को प्रत्येक भाग के लिए दण्डित किया जा सकता है.

बीएनएस की धारा 9(2): जहां--

 (a) : यह प्रावधान तब लागू होता है जब कोई कार्य विभिन्न कानूनों की कई परिभाषाओं के तहत अपराध बनता है. यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब कार्य उस समय लागू अलग-अलग कानूनों की परिभाषाओं के अंतर्गत आता है. ऐसे मामलों में, व्यक्ति पर किसी भी लागू कानून के तहत आरोप लगाया जा सकता है.

(b) : कई कार्य, जिनमें से एक या एक से अधिक कार्य स्वयं अपराध का गठन करते हैं, संयुक्त होने पर एक भिन्न अपराध का गठन करते हैं,

उपलब्ध कराई गई सामग्री कानूनी सिद्धांत पर चर्चा करती है कि जब कई कार्य, जिनमें से प्रत्येक को अपने आप में अपराध माना जा सकता है, को एक अलग अपराध बनाने के लिए जोड़ा जाता है, तो अपराधी को उन व्यक्तिगत अपराधों में से किसी एक के लिए दी जा सकने वाली सज़ा से ज़्यादा सज़ा नहीं मिलनी चाहिए.

इस सिद्धांत को उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया गया है.

(क) A, Z को डंडे से पचास बार मारता है. यहां A ने पूरी पिटाई करके तथा पूरी पिटाई को बनाने वाले प्रत्येक वार से भी Z को स्वेच्छा से चोट पहुंचाने का अपराध किया हो सकता है. यदि क प्रत्येक वार के लिए दण्डनीय होता, तो उसे पचास वर्ष की कैद हो सकती थी.

(ख) किन्तु यदि, जब A, Z को पीट रहा है, Y हस्तक्षेप करता है और A, Y पर जानबूझकर प्रहार करता है, यहां, चूंकि Z  पर किया गया प्रहार उस कार्य का भाग नहीं है जिसके द्वारा A, Z को स्वेच्छा से क्षति पहुंचाता है, अतः Z को स्वेच्छा से क्षति पहुंचाने के लिए A एक दण्ड से दण्डनीय है और Y पर किए गए प्रहार के लिए दूसरे दण्ड से दण्डनीय है.

बीएनएस की धारा 10: कई अपराधों में से किसी एक के लिए दोषी व्यक्ति को दण्ड, जिसमें जजमेंट यह बताता है कि वह अपराध संदिग्ध है

अर्थात, जजमेंट में कई अपराधों में से किसी एक के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति की सज़ा के बारे में बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि यह संदिग्ध है कि कौन सा अपराध है. यह स्थिति यह सवाल उठाती है कि जब विशिष्ट अपराध स्पष्ट नहीं है तो उचित सजा कैसे निर्धारित की जाए.

बीएनएस का चैप्टर ना केवल सजा, बल्कि सजा के प्रकार, जुर्माना और जुर्माना तय करने की परिस्थिति, साथ ही जुर्माना नही भर पाने की स्थिति में क्या सजा होगी, इस बात का जिक्र करती है. साथ ही बीएनएस का चैप्टर 4 एकांत कारावास आदि की चर्चा करता है जिसके बारे में हम अगले भाग में बात करेंगे.