जातिसूचक टिप्पणी से बचें, इस Act के तहत आपके खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है
नई दिल्ली: वो जमाना गया जब कुछ लोग निम्न जाति के लोगों को हीन दृष्टि से देखते थे, उनके साथ मारपीट करते थे, और अपशब्द कहते थे. अत्याचार के बाद भी अत्याचारियों को कोई सजा नहीं मिलती थी, लेकिन अब जातिसूचक टिप्पणी करना सीधे जेल पहुंचा सकता है. आपको बता दे कि जातिसूचक टिप्पणी का मतलब किसी खास जाति के ऊपर ऐसे शब्दों का प्रयोग करना जो की अपमान करने के नीयत से किया जाता है तो यह कानूनी रूप से गलत है और अपराध की श्रेणी में आता है .
जातिसूचक टिप्पणियां
इस तरह के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धाराएं लगाई जाती है. इस अधिनियम की धारा 3(1) के अनुसार, SC या ST वर्ग के किसी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की नीयत से जानबूझकर टिप्पणी करना या धमकी देना अपराध माना जायेगा .
इस एक्ट की धारा 18 A के तहत केस दर्ज होने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं पड़ती. जांच अधिकारी को गिरफ्तारी से पहले किसी की मंजूरी भी नहीं लेनी होती .
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क्या सजा हो सकती है?
SC/ST एक्ट के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति 'सार्वजनिक रूप से SC या ST समुदाय के व्यक्ति को सबके सामने जानबूझकर अपमानित करने के लिए गाली देता है या धमकाता है तो दोषी पाए जाने पर छह महीनों से लेकर 5 साल तक की सजा हो सकती है.
इस ACT की गंभीरता को आप इस मामले से समझ सकते हैं;
लखनऊ में दो डॉक्टरों पर 45 वर्षीय एक दलित महिला मरीज की मौत और उसके पति के खिलाफ अपमानजनक और जातिवादी टिप्पणी करने का मामला दर्ज किया गया है. अलीगंज एसीपी आशुतोष कुमार ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को यह जानकारी दी कि डॉक्टरों के खिलाफ एसटी/एससी एक्ट और अन्य आरोपों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है.
क्या था मामला
आपको बता दें कि यह मामला साल 2022 का है. अदालत के आदेश पर मड़ियांव थाने में महिला के पति ने केस दर्ज कराया था.
दरअसल पेट में तेज दर्द की शिकायत पर 45 वर्षीय श्रीदेवी को शुरू में सीतापुर के लहरपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जांच में पता चला था कि महिला को पित्ताशय की पथरी थी और उसके पति को सर्जरी और इलाज के लिए 50 हजार रुपये जमा करने को कहा गया. इस बीच, मरीज की हालत और बिगड़ गई और सीतापुर अस्पताल के एक डॉक्टर ने उसके पति को उसे लखनऊ के एक अस्पताल में ले जाने की सलाह दी.
महिला को लखनऊ अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया. उसके पति को पिछले साल 27 जुलाई को इलाज पर खर्च के रूप में 1.5 लाख रुपये जमा करने के लिए कहा गया. दोनों डॉक्टरों ने मरीज का ऑपरेशन किया, लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ.
शिकायतकर्ता ने कहा, डॉक्टर ने उसे बताया कि उसे गैस्ट्रोएंटेराइटिस है और उसे डिस्चार्ज कर दिया. बाद में उसने देखा कि टांके से मवाद जैसा तरल पदार्थ निकल रहा है, तो वह अपनी पत्नी को वापस सीतापुर अस्पताल ले गया, जिसने उसे लखनऊ अस्पताल रेफर कर दिया था.
डॉक्टरों ने उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे भर्ती करने से इनकार कर दिया और उसे लखनऊ अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा. शिकायतकर्ता ने डॉक्टरों को यह कहते सुना कि मरीज की हालत गंभीर है. वो सीबीडी (कॉमन बाइल डक्ट) के बारे में बात कर रहे थे. शिकायतकर्ता ने पुलिस में की अपनी शिकायत में कहा, मवाद जैसा पदार्थ वास्तव में पित्त था. शिकायतकर्ता ने यह भी कहा है कि वो वापस लखनऊ अस्पताल आया और अपनी पत्नी को वहां भर्ती करने के लिए कहा, लेकिन डॉक्टर ने उसे गाली देकर बाहर कर दिया.