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देश में बदल गया है ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए नजरिया, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बनी है राह

कहा जाता है कि बदलाव में वक्त तो लगता है लेकिन होता जरुर है. कुछ ऐसा ही है हमारा समाज जो धीरे - धीरे ही सही, लेकिन अपने नजरिये को समय के साथ बदल रहा है. बदलाव का ही असर है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति अब खुल कर समाज के सामने आने लगे हैं.

Written By My Lord Team | Published : March 7, 2023 6:01 AM IST

नई दिल्ली: ट्रांसजेंडर व्यक्ति वो लोग होते हैं जिनकी पहचान रूढ़िवादी लिंग मानदंडों (Stereotypical Gender Norms ) से भिन्न होती है, जो केवल पुरुष या महिला के रूप में लिंग की पहचान करते हैं.

कानून की सामान्य भाषा के अनुसार ट्रांसजेंडर व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जोकि न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, अथवा वह महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन है, अथवा न तो महिला है और न ही पुरुष. इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति का लिंग जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाता और जिसमें परा-पुरुष (Trans- Men), परा-स्त्री (Trans- women) और इंटरसेक्स भिन्नताओं एवं लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति भी आते हैं.

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सदियों से हमारा समाज उनकी लिंग पहचान को स्वीकार करने में विफल रहा है, जिसके कारण उन्हें भेदभाव, सामाजिक उत्पीड़न और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है.

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ट्रांसजेंडर लोगों के कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक समूह हैं जिनकी पहचान हिजड़ा, जोगप्पा, सखी, अरधी आदि के रूप में की जाती है और यह ऐसे लोग हैं, जो किसी भी समूह से संबंधित नहीं हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं.

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वर्तमान में हमारे देश में ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता प्राप्त होने का अधिकार है और वो कानून के तहत कानूनी सुरक्षा के भी हकदार हैं.

हमारे देश के संविधान के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति को भी समान रूप से अधिकारों की गारंटी दी गई है, क्योंकि संविधान प्रत्येक भारतीय नागरिक को न्याय और समानता की गारंटी देता है.

सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति को रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में भेदभाव के खिलाफ निषेध प्रदान करने के लिए ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकार का संरक्षण) अधिनियम (ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट) एक्ट), 2019 पारित किया गया.

संविधान में मिले मौलिक अधिकार

अनुच्छेद 14

अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार है और ट्रांसजेंडर सहित हर व्यक्ति के लिए यह समान है. यह अनुच्छेद प्रत्येक ट्रांसजेंडर को कानून के समक्ष समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है. ट्रांसजेंडर होने के कारण कानून द्वारा उनके साथ अलग तरह से व्यवहार नहीं किया जाएगा.

अनुच्छेद 15

अनुच्छेद 15 के अनुसार देश के किसी भी नागरिक को उसके लिंग, नस्ल, रंग, जाति या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. ट्रांसजेंडर को उनके लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.

नवतेज सिंह जौहर बनाम केन्द्र सरकार के ऐतिहासिक फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यौन अभिविन्यास के आधार पर भेदभाव समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

अनुच्छेद 16

संविधान का अनुच्छेद 16 प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर देता है और अब ट्रांसजेंडर को किसी भी अन्य नागरिक के समान सार्वजनिक स्थान पर विस्थापित होने का समान अवसर मिलता है. इसने ट्रांसजेंडरों के लिए ऐसे पदों के लिए आवेदन करने के लिए बहुत सारे दरवाजे खोल दिए हैं और समाज में उनकी समावेशिता और एक समुदाय के रूप में उनके समग्र विकास के लिए एक बड़ा कारक रहा है. इस अधिकार के कारण ही अब हमारे पास पहले ट्रांसजेंडर आईएएस, आईपीएस, निर्वाचित विधायक आदि हैं.

अनुच्छेद 21

अनुच्छेद 21 के अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का अधिकार है और अब ट्रांसजेंडर को न केवल जीवन का अधिकार है बल्कि गरिमा, सम्मान और स्वतंत्रता के साथ स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार है.

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 2019

हमारे देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के मामलों में संरक्षण प्रदान करने के लिए केन्द्र सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिकार का संरक्षण अधिनियम 2019 अधिनियमित किया है.

इस अधिनियम के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए है.

रोजगार का अधिकार

इस अधिनियम की धारा 3 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षण संस्थानों में रोजगार से भेदभाव, किसी भी संस्थान, जगह में रहने, खरीदने या किराए पर लेने में भेदभाव या सार्वजनिक या निजी स्थान पर किसी पद को धारण करने के लिए किसी भी भेदभाव को प्रतिबंधित किया गया है.

लिंग परिवर्तन का अधिकार

इस अधिनियम की धारा 7 के अनुसार किसी भी ट्रांसजेंडर को सर्जरी के माध्यम से अपना जेंडर यानी लिंग बदलने का अधिकार है. लिंग बदलने पर उन्हें पहचान का प्रमाण प्रदान करने की आवश्यकता है कि वे एक ट्रांसजेंडर हैं, जिसके लिए उन्हें धारा 6 के तहत जिला मजिस्ट्रेट को एक आवेदन भेजने होगा, जिसके बाद उन्हें ट्रांसजेंडर का प्रमाण पत्र दिया जाएगा.

शिक्षा का अधिकार

इस अधिनियम की धारा 13 के अनुसार देश के प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान को ये निर्देश देती है कि वह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के विकास के समान अवसरों के साथ एक समावेशी वातावरण में शिक्षा उपलब्ध कराए.

चिकित्सा का अधिकार

इस अधिनियम की धारा 15 के अनुसार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को चिकित्सा संस्थानों में आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है.जैसे कि लिंग-परिवर्तन सर्जरी और सर्जरी के बाद चिकित्सा के लिए और अन्य विशेष उपचार वहां होने चाहिए.

राष्ट्रीय परिषद की स्थापना

इस अधिनियम की धारा 16 के अनुसार केन्द्र सरकार को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिषद की स्थापना करने का प्रावधान करती है.

वही धारा 17 के अनुसार इस परिषद के कार्य तय किए गए है,जैसे- सरकार को नीतियां तैयार करने पर सलाह देने, ट्रांसजेंडर लोगों की शिकायतों का निवारण करने के लिए कानून बनाने, मूल्यांकन और विश्लेषण की व्यवस्था करने आदि.

दण्ड का प्रावधान

इस अधिनियम की धारा 19 के अनुसार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए दंड का प्रावधान किया गया है. इस धारा के अनुसार ट्रांसजेंडर को बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर करते हैं या ट्रांसजेंडर को सार्वजनिक स्थान तक पहुंच से वंचित करते हैं या उन्हें इसका उपयोग करने में बाधा डालते हैं या ट्रांसजेंडर को घर या गांव छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं या मानसिक कारण बनते हुए ट्रांसजेंडर के जीवन या सुरक्षा या स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं या खतरे में डालते हैं और शारीरिक या यौन शोषण करता हैं उनको सजा दी जा सकती है.

इस धारा के अनुसार अपराध के अनुसार आरोपी को 6 माह से 2 साल तक की जेल की सजा दी जा सकती है.

ऐतिहासिक फैसले से अधिकार

देश की सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत सरकार के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते ट्रांसजेंडर लोगों को तीसरा लिंग घोषित किया. साथ ही स्पष्ट करते हुए पुष्टि की कि हमारे देश के संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकार ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर भी समान रूप से लागू होंगे.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भारत में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाता है.