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Arbitration Vs Mediation: 'माध्यस्थम' और 'मध्यस्थता' के बीच क्या है अंतर, देश में इनसे जुड़े क्या हैं कानून? जानिए

Arbitration vs Mediation

न्यायिक व्यवस्था की एक ही श्रेणी में आने वाले ये दोनों कॉन्सेप्ट्स एक दूसरे से किस तरह से अलग हैं और इन्हें देश में किन कानूनों के तहत प्रैक्टिस किया जाता है, आइए जानते हैं.

Written By Ananya Srivastava | Published : August 8, 2023 6:00 PM IST

नई दिल्ली: भारत देश की न्यायिक व्यवस्था दुनिया की सबसे पुरातन न्यायिक व्यवस्थाओं में से एक है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के तीन स्तंभों में से एक न्यायपालिका (Judiciary) है और इसके तहत निचली अदालत, राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय (High Courts) और उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) का प्रावधान है जिनके माध्यम से देश के नागरिकों को न्याय मिल पाता है।

इन न्यायिक संस्थानों के भार को बांटने के लिए देश में 'वैकल्पिक विवाद समाधान' (Alternative Dispute Resolution) का भी ऑप्शन है जिसके तहत कुछ ऐसे विकल्प हैं, जिन्हें कानून से मान्यता प्राप्त है और बिना अदालत जाए, इनके जरिए जनता न्याय पा सकती है; एडीआर (ADR) के तहत आने वाली प्रक्रियाओं के तहत लिए गए फैसले भी उसी तरह बाध्य होते हैं जैसे अदालत के फैसले। इनमें 'माध्यस्थम' और 'मध्यस्थता' शामिल हैं।

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'माध्यस्थम' और 'मध्यस्थता' की परिभाषा क्या है, इन्हें किन कानूनों के तहत लागू किया जाता है, इनकी प्रक्रिया क्या होती है और ये दोनों वैकल्पिक विवाद समाधान के अंतर्गत आते हुए भी एक दूसरे से अलग कैसे हैं, आइए विस्तार से समझते हैं.

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Arbitration क्या है?

'माध्यस्थम' यानी आर्बिट्रैशन (Arbitration) में विवाद में फंसे दोनों पक्षों के लोग मिलकर, आपसी सहमति से, एक मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) को चुनते हैं और वही उनके डिस्प्यूट को सुलझाता है. बता दें कि आर्बिट्रेशन की सुनवाई सार्वजनिक रिकॉर्ड की बात नहीं होती।

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आमतौर पर बिजनेस अग्रीमेंट्स में यह क्लॉज होता है कि अगर दोनों पक्षकारों के बीच किसी विषय पर विवाद होगा तो उसका निपटारा या समाधान माध्यस्थम उर्फ आर्बिट्रेशन के जरिये निकाला जाएगा।

भारत में आर्बिट्रेशन को लेकर कई कानून पारित हुए लेकिन अब जिस कानून के तहत देश में माध्यस्थम की प्रक्रिया पूरी की जाती है, वो 'माध्यस्थम और सुलह अधिनियम, 1996' (The Arbitration and Conciliation Act, 1996) है। इस कानून को पहली बार 1996 में पारित किया गया था जिसके बाद कुल मिलाकर इसे चार बार संशोधित किया जा चुका है- 2003, 2015, 2019 और 2021।

'माध्यस्थम' की प्रक्रिया

  • किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए माध्यस्थम की प्रक्रिया की शुरुआत एक अधिसूचना से होती है जो माध्यस्थम केंद्र द्वारा दोनों पक्षकारों को दी जाती है कि उनका मामला दर्ज हो चुका है; इसके साथ-साथ पक्षकारों को यह भी बताया जाता है कि प्रक्रिया कैसे होगी, जवाब दायर करने की आखिरी तारीख क्या है और प्रक्रिया को शुरू करने के लिए कौन से दस्तावेजों की जरूरत है और अगर कोई फीस देनी है।
  • नियमों के अनुसार मध्यस्थ मामले से जुड़े सभी दस्तावेजों को पढ़ते-समझते हैं, विवाद के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त करते हैं और फिर साइन किया हुआ शपथ दस्तावेज वापस भेज देते हैं। पक्षकारों को मध्यस्थ कि नियुक्ति की सूचना दी जाती है और उन्हें मौका दिया जाता है कि वो नियुक्ति पर सवाल उठा सकते हैं। मध्यस्थ को हटाया जाता है तो उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया दोबारा होती है वरना मामला आगे बढ़ जाता है।
  • मध्यस्थ के कन्फर्म होने के बाद एक प्रारम्भिक मीटिंग रखी जाती है जिसमें दोनों पक्षकार और सभी मध्यस्थ मौजूद होते हैं; इस मीटिंग में दोनों पक्षकारों के मुद्दे डिस्कस किये जाते हैं, जानकारी का आदान-प्रदान होता है और सुनवाई की टाईख तय की जाती है।
  • मध्यस्थ के समक्ष पक्षकार अपना पक्ष रखते हैं और जब दोनों पक्षकारों की सभी बातें मध्यस्थ सुन लेते हैं तो सुनवाई समाप्त हो आती है और फैसले के ऐलान हेतु एक तारीख राय कर दी जाती है। निश्चित तारीख पर मध्यस्थ लिखित रूप में अपना फैसला सुना देते हैं और मामला वहीं बंद कर दिया जाता है।

Mediation क्या है?

'मध्यस्थता' यानी मीडिएशन (Mediation) भी 'वैकल्पिक विवाद समाधान' के तहत आने वाला एक विकल्प है जिसके माध्यम से विवादों को सुलझाया जाता है। ये एक स्वैच्छिक, बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष और तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्षों को समझौते पर पहुंचने में मदद करता है।

एक मध्यस्थ कोई समाधान नहीं थोपता बल्कि एक अनुकूल वातावरण बनाता है जिसमें विवादित पक्ष अपने सभी विवादों को सुलझा सकते हैं।

'उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019' (Consumer Protection Act, 2019), 'कंपनी मध्यस्थता नियम, 2016' (Companies Mediation Rules, 2016), 'वाणिज्यिक न्यायालय (संस्था-पूर्व मध्यस्थता और निपटान) नियम, 2018' (The Commercial Courts (Pre-Institution Mediation and Settlement) Rules, 2018) और 'वाणिज्यिक न्यायालय, वाणिज्यिक प्रभाग और उच्च न्यायालयों के वाणिज्यिक अपीलीय प्रभाग (संशोधन) अधिनियम, 2018' (Commercial Courts, Commercial Division and Commercial Appellate Division of High Courts (Amendment) Act, 2018) में विवादों का समाधान निकालने के लिए मध्यस्थता एक विकल्प है।

माध्यस्थम के मुकाबले मध्यस्थता को कम गंभीरता से लिया जाता है क्योंकि फिलहाल इसे लेकर कोई एकीकृत विधान (Unified Legislation) नहीं है। बता दें कि संसद के इस साल के मॉनसून सत्र में मध्यस्थता विधेयक, 2021 (The Mediation Bill, 2021) लोक सभा और राज्यसभा, दोनों सदन में पारित कर दिया गया है।

'मध्यस्थता' की प्रक्रिया

  • मध्यस्थता की प्रक्रिया की शुरुआत तब होती है जब कोई एक पक्षकार मध्यस्थता केंद्र में अपना विवाद सबमिट करे और मध्यस्थता प्रक्रिया हेतु अनुरोध करे; इस सबमिशन में विवाद की डिटेल्स और दोनों पक्षकारों की जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए।
  • अनुरोध के बाद मध्यस्थता केंद्र एक मध्यस्थ को नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू करेगा जिसकी नियुक्ति दोनों पक्षकारों की सहमति से होगी। नियुक्ति के बाद मध्यस्थ प्रक्रिया के शिड्यूल को दोनों पक्षकारों से कन्फर्म कैगा और उनसे विवाद से जुड़े सभी दस्तावेजों की मांग करेगा; ये दस्तावेज पहली मीटिंग से पहले मध्यस्थ के पास सबमिट किये जाने होंगे।
  • पहली मीटिंग में मध्यस्थ सभी का एक दूसरे से परिचय कराएगा और मीटिंग का उद्देश्य बताते हुए उन नियमों की जानकारी देगा जिनका पालन पूरी प्रक्रिया के दौरान किया जाना होगा। मध्यस्थ पक्षकारों को आपस में बात करके विवाद को सुलझाने का सुझाव भी देगा, फिर दोनों पक्षकारों को अपना-अपना पक्ष सामने रखना होगा और यह भी बताना होगा कि इसका उनपर क्या असर होने वाला है।
  • मध्यस्थ पक्षकारों को प्रोत्साहित करेगा कि वो एक दूसरे के सवालों का जवाब दें और अपने-अपने पॉइंट्स को स्पष्टता से सामने रखें। इसके बाद एक प्राइवेट मीटिंग होगी जिससे पक्षकारों को मौका मिलेगा कि वो मध्यस्थ से अलग-अलग मिलें और अपनी बात को खुलकर बता सकें।
  • प्राइवेट मीटिंग के बाद आमतौर पर मध्यस्थ दोनों पक्षकारों को आमने-सामने तब लेकर आता है जब कोई फैसला ले लिया गया हो; इस प्रक्रिया के लिए एक समय भी निर्धारित किया जाता है। एक फैसले पर पहुँचने के बाद मध्यस्थ इस अंतिम फैसले को लिखित रूप में दे देता है जिसे दोनों पक्षकारों को साइन करना होता है।
  • इस फैसले से अगर दोनों पार्टियां खुश नहीं हैं तो मध्यस्थ दोनों को ऑप्शन देता है कि वो एक बार फिर डिस्कशन करें वरना विवाद समाधान के किसी दूसरे तरीके का इस्तेमाल करें।

Arbitration और Mediation के बीच अंतर

आर्थिक रूप से देखें तो 'मीडिएशन' 'आर्बिट्रेशन' से ज्यादा सस्ती प्रक्रिया है, इसका पूरा प्रोसेस भी काफी अनौपचारिक है और पक्षकार मध्यस्थ की मौजूदगी में आपस में बातचीत कर सकते हैं. साथ ही लोग इस प्रक्रिया को इसलिए भी चुनते हैं क्योंकि इनका प्रोसेस और फैसले ज्यादा लचीले होते हैं।

'माध्यस्थम' ज्यादा महंगा प्रोसेस है, इसकी प्रोसीडिंग कानून के तहत पूरी की जाती हैं इसलिए लचीली नहीं हैं और ये औपचारिक रूप से पूरी की जाती हैं, इस प्रक्रिया के माध्यम से जिस फैसले पर पहुंचते हैं, वो उसी तरह बाध्य होता है जैसे किसी अदालत का फैसला हो और इसमें पक्षकार आपस में बातचीत नहीं करते हैं।