Advertisement

Amicus Curiae को किस तरह परिभाषित किया जा सकता है, अदालत में इनकी क्या भूमिका होती है? जानिए

Amicus Curiae

अदालत में मामलों को सुलझाते समय कई बार 'Amicus Curiae' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इस शब्द का क्या मतलब है, इसको किस तरह परिभाषित किया जा सकता है और अदालत में एक एमिकस क्यूरे की क्या भूमिका होती है, आइए जानते हैं...

Written By Ananya Srivastava | Published : August 9, 2023 6:16 PM IST

नई दिल्ली:'एमिकस क्यूरे' (Amicus Curiae) एक लैटिन शब्द है जिसका सीधा अर्थ 'अदालत का दोस्त' (Friend of the Court) होता है। एमिकस क्यूरे वो शख्स है जो एक विशिष्ट मामले का पक्षकार नहीं है लेकिन उसे अदालत द्वारा अनुमति होती है कि वो मामले में अपनी सलाह दे सके और अदालत के 'दोस्त' की तरह सही नतीजे तक पहुँचने में उनकी मदद कर सके।

परंपरागत ज्ञान यह मानता है कि एमिकस क्यूरे द्वारा प्रस्तुत संक्षिप्त विवरण अदालत को नई जानकारी प्रदान करता है जिसे वे वादियों के माध्यम से उजागर नहीं करते हैं और मामले का फैसला करने में मदद करते हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि एमिकस क्यूरे हमेशा स्वयंसेवा करने वाला व्यक्ति होता है, या अदालत द्वारा नियुक्त किया गया होता है जिसकी मामले के नतीजे या मामले द्वारा स्थापित कानून के शासन में कोई दिलचस्पी नहीं है।

Advertisement

भारत में एमिकस क्यूरे को किस तरह परिभाषित किया गया है और अदालत में इनकी भूमिका क्या है, आइए विस्तार से समझते हैं.

Also Read

More News

भारत में Amicus Curiae

एमिकस क्यूरे को भारत में अदालत द्वारा परिभाषित किया गया है। बता दें कि उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में 'अगर कोई याचिका जेल से मिली है या किसी अन्य आपराधिक मामले में दायर की गई है और आरोपी का अदालत में कोई प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है, तो कोर्ट एक अधिवक्ता को 'एमिकस क्यूरे' के रूप में नियुक्त करती है; यह एमिकस क्यूरे आरोपी को डिफेंड करता है और उसकी तरफ से मुकदमा लड़ता है।

Advertisement

बता दें कि सिविल मामलों में भी अगर कोर्ट को जरूरत लगे तो वो एक एमिकस क्यूरे को नियुक्त कर सकते हैं; सार्वजनिक हित वाले मामलों में भी एमिकस क्यूरे को अपॉइन्ट किया जा सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने भी एमिकस क्यूरे को अपने अनुसार परिभाषित किया है। दिल्ली हाईकोर्ट के हिसाब से एमिकस क्यूरे वो अधिवक्ता है जो अदालत में तब पेश होता है जब कोर्ट को उसकी मदद चाहिए होती है या फिर जब वो कोर्ट को स्वयंसेवी सेवाएँ दे रहा हो।

अदालत में इनकी भूमिका

मुख्य रूप से एमिकस क्यूरे की अदालत में तीन भूमिकाएं होती हैं-

  • एमिकस क्यूरे किसी मामले में अधिवक्ता नियुक्त किये जा सकते हैं

    मोहम्मद सुकूर अली बनाम असम राज्य (Md Sukur Ali vs State of Assam) मामले में किन्ही कारणों से आरोपी के अधिवक्ता कोर्ट में मौजूद नहीं थे इसके चलते संविधान के अनुच्छेद 21 और 22(1) को ध्यान में रखते हुए आरोपी के प्रतिनिधित्व के लिए अदालत ने एक एमिकस क्यूरे को नियुक्त किया जिन्होंने उनकी तरफ से मुकदमा लड़ा। यहां एमिकस क्यूरे को इसलिए नियुक्त किया गया कि एक अधिवक्ता की गलती आरोपी को न भुगतनी पड़े और अदालत में उसका पक्ष रखने वाला कोई हो।

  • किसी मामले में फैसला सुनाने हेतु मदद करने के लिए एमिकस क्यूरे

    'अली इब्राहिम बनाम केरल राज्य' (Ali Ibrahim vs State of Kerala) मामले में एक एमिकस क्यूरे को नियुक्त किया गया जिन्हें मामले से जुड़े अहम बिंदु बताकर उनसे मदद मांगी गई कि इस मामले में जांच किस तरह की जानी चाहिए। एमिकस क्यूरे के सभी पॉइंट्स को अदालत द्वारा मंजूर किया गया था और उन्होंने फैसला लेने में अदालत की मदद की थी।

  • सार्वजनिक हित वाले मामलों में एमिकस क्यूरे

    'मनोज नरूला बनाम भारत संघ और अन्य' (Manoj Narula v Union of India and ors.) एक मामला है जो सार्वजनिक हित को लेकर है, निर्भया मामला (Nirbhaya Case) भी सार्वजनिक हित से जुड़ा मामला है- इनमें एक एमिकस क्यूरे को नियुक्त किया गया था जिसने कोर्ट को असिस्ट किया था।