कैसे CBI से भी ताकतवर हुआ ED? जानिए अब तक कितने MPs, MLAs के खिलाफ दर्ज हुए मामले और कितनों को हुई सजा
नयी दिल्ली: देश में आए दिन हो रही ED की कार्यवाही और छापेमारी को लेकर विपक्ष ईडी पर सवाल खड़े करता रहा है. बीते कुछ महीनों से बार-बार ये बात विपक्ष और एक तबका दोहरा रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों को केन्द्र सरकार विपक्ष को 'काबू' में करने के लिए इस्तेमाल कर रही है.
यह आरोप नया नहीं है कि केंद्र में बैठी सरकारे अपने मातहत काम करने वाली एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ करती है.
हालाँकि ये भी गौर करने वाली बात है कि यूपीए सरकार के दौरान CBI के लिए भी यहीं कहा जाता था. वर्ष 2013 में यूपीए सरकार के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने तो टिप्पणी करते हुए यहां तक कहा था कि 'सीबीआई सरकार का तोता है.'
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2013 में देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा की गई टिप्पणी के बाद कई महत्वपूर्ण बदलाव सामने आए. आरोप—प्रत्यारोंपो के बीच पिछले एक दशक में सबसे बड़ा बदलाव CBI और ED की ताकत में हुआ है.
CBI की बढती ताकत और बदनामी ने केन्द्र सरकार को ED को मजबूत करने की ओर अग्रसर किया. इसके नतीजे के रूप में कई महत्वपूर्ण कानूनों को लागू करने की जिम्मेदारी ED को मिली.
वर्ष 2005 तक एक जांच एजेंसी के रूप में ED इतना मजबूत नहीं था, जितना की आज है, लेकिन 2005 में इसे PMLA कानून को लागू करने की जिम्मेदारी मिलने के बाद इसकी शक्तियों में इजाफा होता गया.
ऐसे हुई थी स्थापना
प्रवर्तन निदेशालय यानी Enforcement Directorate की स्थापना 1 मई 1956 को देश में आर्थिक अपराधों और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जांच के लिए की गई थी.
प्रारंभ में यह Department of Economic Affairs में एक Enforcement Unit’ के रूप में स्थापित हुई थी. शुरूआत में बॉम्बे और कोलकता में इसकी 2 शाखाएं थी जो वर्ष 1960 में मद्रास में स्थापित शाखा के साथ इनकी संख्या 3 हो गई.
वर्ष 1957 में इस Enforcement Unit’ का नाम बदलकर Enforcement Directorate’ कर दिया गया. साथ ही इसका प्रशासनिक विभाग Department of Economic Affairs से बदलकर Department of Revenue कर दिया गया.
इंदिरा गांधी के समय इस यूनिट को Department of Economic Affairs से हटाकर सरकार के ही Department of Personnel & Administrative Reforms विभाग के अधीन किया गया. जिसे 1977 में फिर से Department of Economic Affairs और बाद में Department of Revenue को स्थानातंरित किया गया.
इस एजेंसी में Director of Enforcement के रूप में Legal Service Officer की नियुक्ति होती है जिन्हे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से प्रतिनियुक्ति पर आए एक अधिकारी और Special Police Establishment के 3 निरीक्षक की सहायता मिलती थी.
वर्तमान में यह जांच एजेंसी Ministry of Finance के Department of Revenue के नियत्रंण में है.
कैसे बनी ताकतवर संस्था
देश में उदारीकरण की शुरूआत के साथ ही FERA एक्ट को समाप्त करते हुए 1 जून 2000 से नया अधिनियम Foreign Exchange Management Act(FEMA) लागू किया गया. Money Laundering पर नियत्रंण के लिए the Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) भी लागू किया.1 जुलाई 2005 को इन दोनो कानूनों की कार्रवाई के लिए ED को प्रवर्तन का कार्य सौप दिया गया.
इन दो कानूनों को लागू करने में ED को कुछ हद तक मिली सफलता ने इसके हाथ में एक नये कानून की भूमिका बना दी.इसी दौरान नवंबर 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले ने भी देश में कई आर्थिक परिवतनों की शुरूआत कर दी थी.
विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक अपराधियों से संबंधित मामलों की बढती संख्या भी सरकार के लिए आलोचना का एक बड़ा कारण बन गया था. देश में बढते दबाव के बीच भारत सरकार ने ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों पर नियत्रंण के लिए देश में Fugitive Economic Offenders Act, 2018 (FEOA) यानी भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ लागू किया.
21 अप्रैल 2018 से इस कानून के प्रवर्तन के लिए भी ED को जिम्मेदारी दी गई.
कानून में बदलाव और ताकतवर हुआ ED
वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने एक नोटिफ़िकेशन के जरिए the Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA) में बड़ा बदलाव करते हुए ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में स्पेशल शक्तियां दे दी.
PMLA Act में इस बड़े बदलाव को सरकार ने मनी बिल की तरह पेश किया था. मनी बिल को राज्यसभा में पेश नहीं करना पड़ता, इसे सीधे राष्ट्रपति की सहमति लेकर लोकसभा में पेश किया जाता है और वहीं से वह कानून बन जाता है.
PMLA Act की धारा 17 की उपधारा 1 में और धारा 18 में बदलाव किया गया. इस बदलाव के जरिए ED को ये शक्ति दी गई वह इस PMLA Act के तहत किसी के आवास पर छापा मार सकती है, सर्च और गिरफ़्तारी कर सकती है.
इससे पहले किसी भी एजेंसी की ओर से दर्ज की गई एफ़आईआर और चार्जशीट में PMLA की धारा लगने पर ही ED जांच कर सकती थी. लेकिन कानून में हुए इस बदलाव ने उसे खुद ही FIR दर्ज करके गिफ़्तार करने की शक्तियां दे दी.
पीएमएलए के इस बदलाव को देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई लेकिन कोर्ट ने इस संशोधन को उचित ठहराया.
सर्वोच्च अदातल से मिली सहमति ED के लिए एक बड़ी जीत थी, जिसे उसने अपनी शक्तियों के इस्तेमाल के लिए अधिक प्रोत्साहित किया.
क्या करता है अब ये संगठन
वर्तमान में Enforcement Directorate एक ऐसा बहु-अनुशासनात्मक संगठन बन गया है जो मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध से लेकर, भगौड़े आर्थिक अपराधियों और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जांच कर रहा हैं.इस एजेंसी के पास अब FEOA कानून,FEMA कानून और PMLA कानून के दायरे में जांच का अधिकार है जिसके चलते यह एजेंसी सीबीआई से भी अधिक ताकतवर हो चुकी हैं.
ED को एक जांच एजेंसी के रूप में FEOA, FEMA और PMLA के तहत आरोपियों को पूछताछ के लिए बुलाने, गिरफ्तार करने, उनकी संपत्ति कुर्क करने और अदालत के समक्ष अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का अधिकार है.
इसके साथ ही उसे निरस्त किए गए The Foreign Exchange Regulation Act, 1973 (FERA) के तहत 31 मई 2002 से पहले जारी किए जा चुके कारण बताओं नोटिसों का निर्णय करने और इस कानून के तहत दर्ज हुए मुकदमों की अदालतों में कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार है.
ED को विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 (COFEPOSA) के तहत फेमा के उल्लंघन के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करते हुए मामलों को प्रायोजित करने का भी अधिकार है.
अलग से मिली शक्तिया,बढता दायरा
शुरूआत में ED आतंकवाद से जुड़े मामलो को छोड़कर मनी लॉन्ड्रिंग की कार्रवाई वहीं कर सकता था जहां मामला 30 लाख या उससे अधिक का हो. एक संशोधन के जरिए सरकार ने वर्ष 2013 में 30 लाख की सीमा समाप्त करते हुए जांच का दायरा बढा दिया.इसलिए 2012 तक मनी लॉन्ड्रिंग के केवल 165 मामले ही दर्ज थे.
वर्ष 2019 में PMLA एक्ट की धारा 45 में एक बड़ा बदलाव करते हुए ईडी के अधिकारियों को ये शक्तियां दी गई कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना वॉरंट गिरफ़्तार कर सकती है.
ग़ैर-क़ानूनी तरीके से हासिल की गई संपंति का क्षेत्र भी बढाते हुए ईडी को ये शक्ति दी गई कि एजेंसी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है अगर उसे लगता है कि "कोई संपत्ति प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ग़ैर-कानूनी तरीके से कमाए गए पैसों से बनाई गई है'
ईडी को समन के लिए यह जानकारी देने की आवश्यक्ता नही है कि उसे क्यों गिरफतार किया गया है.
ईडी की पूछताछ में अधिकारियों के सामने दिये गए बयान को कोर्ट में सबूत के तौर पर रखा जा सकता है. जबकि अन्य मामलों में मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी 164 के तहत रिकॉर्ड बयान को ही सबूत के तौर पर रखा जा सकता है.
ED द्वारा दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग के केस में आरोपी को एफआईआर की कॉपी देने का कोई प्रावधान नहीं है.ED द्वारा चार्जशीट दायर करने पर उसे जानकारी होती है कि उसके खिलाफ कौनसी धाराए लगी है.
ED द्वारा PMLA कानून के तहत दर्ज मामलों में आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने का भार होता है.