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किसी बच्चे को आत्महत्या के लिए उकसाना एक गंभीर अपराध- IPC के तहत मिलती है ये सजा

आईपीसी की धारा 309 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपनी जान लेने की कोशिश करता है और अगर वो बच जाता है तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी. इसके अलावा अगर कोई किसी को आत्महत्या के लिए बहकाता है तो वो भी अपराध माना जाएगा लेकिन अगर बहकावे में आने वाला व्यक्ति कोई बच्चा हो तो क्या आप जानते हैं कि दोषी को क्या सजा मिलेगी.

Written By My Lord Team | Published : March 13, 2023 6:46 AM IST

नई दिल्ली: हमारे देश में आत्महत्या करना तो एक अपराध है ही साथ ही किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना या प्रेरित करना भी एक गंभीर अपराध माना जाता है खास करके किसी बच्चे को या फिर किसी दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति को. ये लोग आसानी से किसी के भी बहकावे में आकर कोई भी कदम उठा सकते है इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए हमारे देश में सख्त कानून बनाए गए हैं.

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) 1860 की धारा (Section) 305 और धारा 306 में इस अपराध के बारे में और इसके लिए मिलने वाली सजा के बारे में बताया गया है.

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IPC की धारा 305

बच्चे (18 वर्ष से कम उम्र), दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति या अगर कोई व्यक्ति नशे में है, ऐसे व्यक्ति अगर आत्महत्या कर लेते हैं और इस आत्महत्या के लिए अगर उन्हें किसी ने बहकाया है तो बहकाने वाला व्यक्ति को दोषी माना जाएगा. जिसके लिए दोषी को दस साल की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जाएगा.

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IPC की धारा 306

धारा 305 में बताए गए लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाना तो अपराध है ही इसके अलावा IPC की धारा 306 के अनुसार अगर कोई किसी सामान्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाएगा और बहकावे में आकर वह व्यक्ति ऐसा कर लेता है तो बहकाने वाले को इस धारा के अनुसार दस साल के कारावास और जुर्माना से दंडित किया जा सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि किसी ने कह दिया कि जाओ और मर जाओ’ और वह व्यक्ति मर गया तो इसे आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं माना जा सकता. इससे साफ है कि किसी को गुस्से में या झल्लाहट में कुछ कह देना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है.

इस तरह के मामले में किसी आरोपित व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. ऐसे मामले में आरोपी की मंशा देखी जाएगी. इसका सामान्य बर्ताव देखा जाएगा. अगर हमेशा वह इसी तरह के शब्द बोलता रहा हो तो उसे दोषी नहीं माना जाएगा.

आत्महत्या के लिए उकसाने वाले मामले

सुप्रीम कोर्ट ने रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ मामले में 2001 में उकसाने या उत्तेजित करने की व्याख्या की थी. सुप्रीम कोर्ट ने एम. मोहन मामले में 2011 में कहा कि उकसाने में उकसावे की मनोवैज्ञानिक बातचीत या जानबूझकर किसी व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना शामिल होता है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एम आर शाह और कृष्ण मुरारी की बेंच ने मैरियानो मामले में अक्टूबर 2022 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया. इस मामले में दहेज प्रताड़ना के कारण एक महिला ने आत्महत्या कर ली थी. इसमें ससुराल वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था.

सुनवाई के बाद अदालत ने IPC की धारा-306 के आरोप से आरोपित पक्ष को बरी कर दिया था. अदालत ने कहा कि दोषी करार देने के लिए आत्महत्या और उकसाने के बीच सीधा संबंध होना जरूरी है. ऐसे मामलों में आरोप को सिद्ध करने की पूरी जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की है. हर मामले में तथ्य और गुण दोष के आधार पर आरोपी की मंशा के साथ भूमिका का आकलन जरूरी है, जिसकी वजह से किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है.