क्या Arbitration के मामले में भारत बन सकता हैं अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र?
नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि मध्यस्थता के मामले में भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (International Arbitration Center) बन सकता हैं, इसके लिए जरूरी है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर कार्य करें.
कानून मंत्री रविवार को नई दिल्ली में दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर द्वारा आयोजित दिल्ली आर्बिट्रेशन वीकेंड (DAW) को संबोधित कर रहे थे. कानून मंत्री ने कहा कि इसके लिए समान नियमों के साथ-साथ न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों के समर्थन की आवश्यकता होगी.
केन्द्रीय मंत्री ने इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन के मामले में सिंगापुर की सफलता की कहानी का भी हवाला देते हुए बताया कि किस तरह से कुछ ही सालों में सिंगापुर दुनिया का हब बन चुका है.
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कोविड के बाद
कोविड के बाद दुनियाभर में हजारों कंपनियों की कार्यपद्धति में बदलाव आया है, कंपनियों को हुए नुकसान के बाद ऐसे अदालतों की जरूरत महसूस हो रही है जहां दोनों पक्षों के बीच आपसी सामंजस्य से आगे बढा जा सके.
ICC इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों के समाधान के लिए एक संस्था है, यह इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स के तत्वावधान में संचालित होने वाली अंतरराष्ट्रीय अदालत भी कहा जा सकता है. ICC का मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में है.
इस संस्था में दुनियाभर के 90 से अधिक देश में शामिल हैं. यह एक अदालत की तरह कार्य करने की बजाए "मध्यस्थता की कार्यवाही का न्यायिक पर्यवेक्षण करने वाली संस्था के रूप में कार्य करता है.
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन वर्ष 1923 में फ्रांस के पूर्व वित्त मंत्री Étienne Cemental की अध्यक्षता में की गई थी.
इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का मुख्यालय फ्रांस में होने के बावजूद सिंगापुर ने पिछले तीन दशक में अपने प्रयासों से खुद को अघोषित मुख्यालय बना दिया है.
इसके लिए सिंगापुर ने ना केवल खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से परिपूर्ण किया है, बल्कि उसने अपने संपूर्ण सिस्टम को भी आर्बिट्रेशन के स्वर्ग के तौर पर स्वीकार करने में शामिल कर दिया.
यही कारण है दुनिया की अधिकांश बड़ी कंपनियों के बीच हुए विवाद के समाधान के लिए वे सिंगापुर का रूख करती है.
सिंगापुर ने ना केवल अपने बाजार को बल्कि अपने कानूनी क्षेत्र से जुड़े लोगों को भी लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों के समाधान का प्रशिक्षण दिया है.
तीन दशक में बदलते परिदृश्य
सिंगापुर ने इसकी शुरुआत 1970—80 के दशक में की थी और इसके लिए उसने इन्फ्रास्ट्रक्चर में भी बड़ा बदलाव किया.
हमारे देश में अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों के समाधान की शुरुआत 1990 के बाद शुरू हुई है, लेकिन पिछले दो दशक में इस क्षेत्र में हम बहुत तेजी से आगे बढे है.
अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है जिसके चलते लगातार बड़ी कंपनियां यहां आती रही है, लेकिन उन्हे अपने विवादों के समाधान के लिए देश की सर्वोच्च अदालत से सालो इंतजार करना पड़ता रहा है, जिसके चलते ये कंपनियां भी सिंगापुर की तरफ आकर्षित होती रही है.
बढ़ता दायरा
लेकिन 2011 के बाद हमारे देश की न्यायपालिका के साथ सरकारों को भी आर्बिट्रेशन का महत्व समझ आने लगा और हम इस ओर ध्यान देने लगे. वर्तमान में दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र में मध्यस्थता के लिए सूचीबद्ध 6,373 मामले हैं, और 2022 में 4,900 मामलों की सुनवाई हुई है.
केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू इस मामले में भारत के बढते प्रभूत्व का समर्थन कर रहें है. यही बात उन्होने रविवार को आयोजित कार्यक्रम में भी कही.
केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि हमें इस अवसर को जब्त करना होगा, मुझे लगता है कि सिंगापुर की सफलता की कहानी को याद करना आवश्यक है. आज कोई भी दुनिया के किसी भी हिस्से से दिल्ली पहुंच सकता है.
रीजीजू कहते है कि अगर सिंगापुर एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र बन सकता है, तो भारत क्यों नहीं? भारतीयों के अलावा कोई भी भारत को नहीं रोक सकता है.