पांच False Rape Case करने की आरोपी महिला को Madhya Pradesh High Court से नहीं मिली जमानत, जानिए पूरा वाक्या
Rape Case: हाल ही में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महिला को जमानत देने से इंकार किया है. महिला पर एक व्यक्ति से पैसे वसूलने और उसकी दुकान में तोड़फोड़ करने का आरोप हैं. महिला ने जमानत की मांग भी इसी मामले में की है. साथ ही, इस महिला पर अलग-अलग लोगों के खिलाफ पांच झूठे रेप केस दर्ज कराने का आरोप है. पांच में से दो केस उसने अपने पति के खिलाफ ही कराया है. आइये जानते हैं सुनवाई के दौरान क्या हुआ….
Madhya Pradesh HC ने नहीं दी जमानत
जस्टिस मनिंदर भट्टी की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. बेंच ने केस डायरी को पढ़ा. जस्टिस ने पाया कि केस डायरी महिला के खिलाफ एक्सटॉर्शन (Extortion) के आरोप को सही सिद्ध कर रहे हैं. वहीं, कोर्ट को बताया गया कि महिला ने पांच रेप केस दर्ज कराए हैं, इनमें से दो में, उसका पति ही मुख्य आरोपी हैं.
बेंच ने कहा,
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"...(शिकायतकर्ता) का बयान यह भी दर्शाता है कि धमकी दिए जाने पर उसने आवेदक (महिला) को 1,80,000/- रुपये की राशि दी. यह भी विवादित नहीं है कि वर्तमान आवेदक ने आईपीसी की धारा 376 के तहत 5 मामले भी दर्ज कराए हैं जिसमें एक के खिलाफ दो मामले हैं... जो आवेदक के अनुसार उसका पति है,''
Trial Court से भी नहीं मिली जमानत
महिला के खिलाफ एक प्राथमिकी कराई गई. इस FIR में महिला के खिलाफ एक्सटॉर्शन( Extortion), धमकी (Criminal Intimidation) सहित आईपीसी की अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया है.
महिला ने ट्रायल कोर्ट में बेल के लिए आवेदन दिया जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है. अब ट्रायल कोर्ट के फैसले को उसने हाईकोर्ट में चनौती दी थी. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भी महिला की याचिका को खारिज कर दिया है.
किस आधार पर हुई जमानत की मांग
महिला ने जमानत की मांग करते हुए कहा. उसे शिकायतकर्ता से कोई प्रोपर्टी, मंहगी वस्तु आदि नहीं मिली है. उसके खिलाफ जबरन वसूली का कोई मामला नहीं बनता है.
महिला ने उच्च न्यायालय को बताया. ट्रायल कोर्ट ने उसकी जमानत पुराने केस के फैसले को आधार बनाते हुए दिया है. ट्रायल कोर्ट ने पहले भी ऐसे ही मामले में महिला की जमानत खारिज कर दी थी.
राज्य ने भी जमानत का विरोध किया
राज्य ने भी महिला की जमानत का विरोध किया है. राज्य ने कहा, महिला को झठे केस कराने की आदत है.
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने एवं मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए महिला को राहत देने में असमर्थता जताई है.