धर्मांतरण का उद्देश्य आरक्षण नहीं, असली आस्था होनी चाहिए! जानें पुडुचेरी महिला की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि अगर कोई धर्मांतरण सिर्फ आरक्षण का फायदा लेने के लिए कर रहा है तो उसे इसकी आड़ में इसका फायदा उठाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियमित तौर पर चर्च जाने और ईसाई धर्म की परंपरा का पालन करने वाला अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने पुडुचेरी की महिला की अर्जी खारिज करते हुए टिप्पणी की. उसने नौकरी में अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का लाभ हासिल करने के लिए याचिका दायर की थी.
धर्मांतरण के नाम पर आरक्षण का लाभ नहीं!
जस्टिस पंकज मिथल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. संविधान के आर्टिकल 25 के तहत देश के हर नागरिक को अपनी मर्जी से किसी धर्म को चुनने और उसके परंपराओं का पालन करने की स्वतंत्रता है. कोई अपना धर्म तब बदलता है, जब असल में वो किसी दूसरे धर्म के सिद्धांतों ,परंपराओं से प्रभावित हो. हालांकि अगर कोई धर्मांतरण सिर्फ दूसरे धर्म के तहत मिलने वाले आरक्षण का फायदा लेने के लिए हो रहा है तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. ऐसा करना आरक्षण की नीति के सामाजिक सरोकार को धता बताना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहाँ तक इस महिला का सवाल है ,वो ईसाई धर्म की परंपरा का पालन करती है, वो नियमित तौर पर चर्च जाती है. इसके बावजूद वो ख़ुद को हिंदू बताते हुए नौकरी के मकसद से शेड्यूल कास्ट को मिलने वाले आरक्षण का फायदा उठाना चाहती है. इस महिला का दोहरा दावा अस्वीकार्य है. 'बापटिज्म' के बाद वो ख़ुद हिंदू होने का दावा नहीं कर सकती. ऐसे में महिला को अनुसूचित जाति के तहत मिलने वाले आरक्षण का फायदा नहीं दिया जा सकता.
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