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जहां जमानत दी जानी चाहिए और वहाँ नहीं दी जाए, तो यह 'बौद्धिक बेईमानी': Supreme Court

High Court जज के लिए विचाराधिन उत्तरप्रदेश के एक न्यायिक अधिकारी के मामले में Supreme Court ने तत्काल सुनवाई से इंकार किया है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : May 16, 2023 3:14 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरप्रदेश के एक न्यायिक अधिकारी की ओर से दायर याचिका पर तत्काल सुनवाई से इंकार करते हुए कहा कि एक न्यायिक अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो के अनुसार जहां जमानत दी जानी चाहिए और वहां नही दी जाए तो यह “बौद्धिक बेईमानी” का कार्य है.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने आगे कहा कि “अगर जमानत देने में बेईमानी एक समस्या है, तो यह भी बेईमानी का एक रूप है कि जिन मामलों में वे देय हैं, वहां जमानत न देना … यह बौद्धिक बेईमानी है”

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सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी उत्तरप्रदेश के एक न्यायिक अधिकारी की याचिका में अधिवक्ता द्वारा तत्काल सुनवाई के लिए मेंशन करने पर की है.

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पीठ ने शीघ्र सुनवाई के आवेदन को खारिज करते हुए न्यायिक अधिकारी के मामले पर पूर्व निर्धारित तिथी के अनुसार 8 अगस्त को सुनवाई करने के निर्देश दिए है.

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कोर्ट की टिप्पणी के बाद तबादला

हाल ही में 2 मई को एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिन लखनऊ के इन न्यायिक अधिकारी के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा ​था कि ऐसे मजिस्ट्रेट जो लोगों को अनावश्यक रूप से हिरासत में भेजते हैं, उनका न्यायिक कार्य वापस लिया जाना चाहिए और उन्हें प्रशिक्षण के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जाना चाहिए.

पीठ ने कहा था कि ऐसे मजिस्ट्रेटों को skills upgrade करने के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जाना चाहिए.

आदेश के बाद तबादला

Justice Sanjay Kishan Kaul, Justice Ahsanuddin Amanullah और Justice Aravind Kumar की पीठ ने सतेंदर कुमार बनाम सीबीआई मामले की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की थी.

पीठ ने कहा था कि इस तरह के आदेश उत्तर प्रदेश की अदालतों द्वारा सबसे अधिक बार पारित किए गए है और इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को सूचित किया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उक्त न्यायिक अधिकारी को न्यायिक अकादमी में तबादला कर दिया था.

हाईकोर्ट जज के लिए विचाराधीन है नाम

सोमवार को न्यायिक अधिकारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने मामले को मेंशन करने हुए पीठ से अनुरोध किया कि “न्यायिक अधिकारी 30 जून को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्ति के लिए भी विचाराधीन हैं।”

अधिवक्ता ने कहा कि न्यायिक अधिकारी ने तीन दशकों से अधिक समय तक न्यायपालिका में सेवा की है.

अधिवक्ता की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “अगर वह 30 साल तक न्यायिक अधिकारी रहे हैं, तो यह बड़ा कारण है कि उन्हें सावधान रहना चाहिए था और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को समझना चाहिए था.

पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर वह कुछ दिनों के लिए अकादमी जाते हैं, तो यह उनके लिए फायदेमंद होगा.

सुनवाई के दौरान न्यायिक अधिकारी की ओर से अधिवक्ता द्वारा बार बार अनुरोध किये जाने के बाद भी पीठ ने राहत देने से इंकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे जहां भी जायेंगे वे ऐसा ही करेंगे. इसलिए उन्हे रणनीति बदलनी चाहिए.

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कई आदेश जारी किए कि यदि अभियुक्तों को जाँच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया, तो उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए. उन्हें तलब किया जाना चाहिए और इस दौरान जमानत दी जानी चाहिए.

पीठ ने कहा कि यदि अभियुक्त सम्मन के बावजूद पेश नहीं होते हैं, तो पहले एक जमानती वारंट जारी किया जाना चाहिए, उसके बाद एक गैर-जमानती वारंट जारी किया जाना चाहिए.

न्यायिक अधिकारी का नाम हाईकोर्ट जज के लिए विचाराधिन होने की बात पर पीठ ने कहा कि विचाराधीन न्यायिक अधिकारी की वरिष्ठता उसके उदार होने से इनकार करने का एक कारक थी.

पीठ ने कहा कि हमने अपने आदेश में यह नहीं कहा कि हाईकोर्ट के लिए उसके नाम पर विचार नहीं किया जाना चाहिए.

ये था मामला

उत्तरप्रदेश के लखनऊ ​में एक वैवाहिक विवाद के मामले में दर्ज केस में लखनऊ सत्र न्यायाधीश ने ​आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था.

मामले में जांच के दौरान पुलिस ने आरोपियों के माता-पिता को गिरफ्तार नहीं किया गया था. इसके बावजूद लखनऊ सत्र न्यायाधीश ने ​एक संदिग्ध आधार का हवाला देते हुए अग्रिम जमानत को खारिज कर दिया था.

लखनऊ सत्र न्यायाधीश के 26 अप्रैल को जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लाए जाने पर 2 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणियों के साथ आदेश जारी किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के कई फैसलो को नजरअंदाज करने पर सख्त ऐतराज जताते हुए आदेश जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने लखनऊ सत्र न्यायाधीश के लिए कहा था कि उन्हें प्रशिक्षण के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जाना चाहिए.

सतेंद्र कुमार अंतिल केस

सुप्रीम कोर्ट सतेंद्र कुमार अंतिल के मामले में पूर्व में दिए अपने जुलाई 2022 के फैसले की पालना से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में सतेन्द्र कुमार के मामले में देशभर की निचली अदालतों को अन्य बातों के अलावा, गिरफ्तारी और मुकदमे में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में देश की सभी हाईकोर्ट को रिप्लाई पेश करने के आदेश दिए थे.

सुप्रीम कोर्ट ने नए फैसले में जमानत को लेकर कई नए प्रावधान करते हुए कहा था कि अदालतों को जमानत याचिकाओं पर दो सप्ताह में फैसला करना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के तहत दिए गए आदेश का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, और इसका पालन न करने पर आरोपी को जमानत मिल जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों और केन्द्र शाषित प्रदेशों को इस मामले में चार माह में जवाब पेश करने का आदेश दिया था.