दहेज हत्या हेतु IPC की धारा 304 b के तहत क्या है सजा का प्रावधान ?
नई दिल्ली: National Crime Records Bureau(NCRB) के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन दहेज के चलते करीब 20 मौतें होती है. इस आंकड़े से अलग भी देश के दूर दराज क्षेत्रों में होने वाली कई मौतें सामाजिक दबाव और पारिवारिक कारणों से दर्ज तक नहीं होती है.
दहेज की परिभाषा
देश के कानून में दहेज शब्द को दहेज निषेध अधिनियम, 1961 में परिभाषित किया गया है. इस अधिनियम के अनुसार विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह के पहले या विवाह के बाद विवाह की एक आवश्यक शर्त के रूप में संपत्ति या मूल्यवान वस्तु दी हो या देना स्वीकार किया हो. ये दहेज की श्रेणी में आएगा.
इस अधिनियम के तहत दहेज लेना और देना दोनों ही अपराध घोषित किए गए है. इसके बावजूद हमारे देश में लगातार दहेज हत्या के मामलों में कोई कमी नहीं हुई है.
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दहेज हत्या का अर्थ है कि यदि किसी महिला को उसके पति द्वारा दहेज न देने या पर्याप्त दहेज न देने के कारण मार दिया जाता है, तो यह हत्या दहेज हत्या के रूप में दर्ज होगी. दहेज हत्या के मामले को IPC की धारा 304 (बी) में दर्ज किया जाता है.
दहेज हत्या के मामलों से निपटने के लिए IPC की धारा 304 (बी), घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 498A और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B में विशेष प्रावधान किए गए है.
IPC की धारा 304 (बी) के तहत इस अपराध को दहेज हत्या कहा जाता है, जबकि धारा 498A में पति या पति के रिश्तेदार, जो महिला को क्रूरता के अधीन करता है, उनके द्वारा की गयी क्रूरता के अपराध के लिए है.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट) में नई धारा 113-B को जोड़ा गया था. इस धारा के अनुसार किसी महिला की मृत्यु को उसकी मृत्यु से पहले उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया गया हैं, ऐसे मामले में आरोपी व्यक्ति को दहेज़ मृत्यु के लिए दोषी मन जा सकता है.
IPC की धारा 304 (बी)
इस धारा के अनुसार किसी महिला की मृत्यु जलने या शारीरिक चोट या सामान्य परिस्थितियों के अलावा किसी अन्य कारण से हुई है और उसकी शादी को 7 साल से कम वक्त हुआ है. मृतक महिला को उसके पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गयी क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा हो या फिर दहेज की मांग को लेकर मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता या उत्पीड़न किया गया हो. ऐसी मृत्यु को दहेज हत्या/ मृत्यु माना जाएगा.
IPC की धारा 304 (बी) के लिए दोषी व्यक्ति को कम से कम 7 साल से लेकर आजीवन उम्रकैद की सजा तक सुनाई जा सकती हैं.
दहेज हत्या का अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए आसानी से जमानत नहीं दी जा सकती.
शादी के 7 वर्ष बाद
IPC की धारा 304 (बी) में दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज करने के लिए सबसे पहली शर्त विवाह के सात वर्ष के भीतर की अवधि की हैं. अगर मृतक महिला की मौत विवाह के 7 वर्ष के भीतर ना होकर 7 वर्ष के बाद हुई है तो इस धारा के तहत
आरोप नहीं लगाया जा सकता है.
संजय कुमार जैन बनाम दिल्ली राज्य के मामले में यह कहा गया था कि धारा 304 (बी) के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए अदालत द्वारा सात साल की सीमा का पालन किया जाना चाहिए और उन मामलों में जहां मौत सात साल बाद हुई है, पीड़ितों के परिवार अन्य उपचारों का उपयोग कर सकते हैं, जैसे कि धारा 302 जो हत्या के लिए दंड देती है या 498 ए, जहां पति या उसके परिवार द्वारा दहेज के लिए क्रूरता की गई है.
अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी
यह तय होने के बाद की मृत्यु सात साल की सीमा के भीतर हुई है, अभियोजन पक्ष द्वारा यह साबित करना आवश्यक है कि महिला अपनी मृत्यु से पहले अपने पति या परिवार के सदस्यों से क्रूरता से गुजरी थी, जैसा कि भारतीय साक्ष्य की धारा 113-बी में कहा गया है.
फैसलों की नजीर
बैजनाथ और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में, अदालत ने कहा कि केवल तथ्य यह है कि एक महिला की उसके ससुराल में शादी के सात साल के भीतर प्राकृतिक परिस्थितियों में मृत्यु हो जाना अभियुक्त को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त नहीं है, यह आवश्यक है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे साबित करे कि मृतक के साथ उसकी मृत्यु से पहले क्रूरता/उत्पीड़न से पेश आया गया था.
शेषराज मैरियन और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में, यह कहा गया था कि "उत्पीड़न या क्रूरता की उपस्थिति" पर्याप्त आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन यह भी साबित किया जाना चाहिए कि उत्पीड़न और क्रूरता दहेज की मांग में या अपर्याप्त दहेज के कारण हुई थी। यदि अभियोजन इसे साबित करने में विफल रहता है तो उन्हें आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज करना होगा
जबकि धारा की एक अन्य व्याख्या यह है कि, यदि यह साबित हो जाता है कि एक व्यक्ति ने दहेज की मांग के लिए मृतक को परेशान किया या उसके प्रति क्रूर था, तो यह माना जाना चाहिए कि मृत्यु उसी व्यक्ति द्वारा की गई है. शांति बनाम हरियाणा राज्य के मामले में, एक महिला को उसकी शादी के सात साल के भीतर मार दिया गया था, लेकिन उसके मरने के बाद, उसके परिवार को मौत के बारे में ससुराल वालों द्वारा सूचित नहीं किया गया और उन्होंने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया. मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सक्षम था कि क्रूरता हुई थी और इसलिए अभियुक्तों पर दहेज हत्या की धारा 304 (बी) के तहत यह अनुमान लगाया गया था कि मृत्यु उनकी वजह से हुई थी.