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क्या है देश में समय पूर्व कैदियों की रिहाई से जुड़ा कानून?

कैदियों की रिहाई को लेकर देश के अलग अलग राज्यों द्वारा अलग अलग जेल मैनुअल (Jail Manual) या जेल नियमावली तय की जाती है जिसके द्वारा दोषियों के अच्छे व्यवहार के लिए हर महीने कुछ दिनों की छूट की अनुमति दी जाती है.केन्द्र इस मामले में केवल दिशा निर्देश दे सकता है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : December 23, 2022 9:42 AM IST

वर्ष 2022 देश में अपराधियों को समय पूर्व रिहा करने के मामले में भी याद किया जाएगा. इस साल देशभर में कई ऐसे अपराधियों को भी रिहा किया गया जिनके रिहा करने पर काफी विवाद भी हुए. देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने से जुड़ा मामला हो या फिर 2002 के गुजरात दंगो के दौरान दुष्कर्म और हत्या से जुड़े कैदियों की रिहाई का मामला. आखिर कैसे इन अपराधियों की सजा पूर्ण होने से पूर्व ही जेल से रिहा किया जा सकता है. आईए जानते है देश में समय पूर्व कैदियों से जुड़े कानूनों के बारे में---

CRPC में क्या है प्रावधान

हमारे देश में कानून का संचालन आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) और आईपीसी के तहत किया गया है. कैदियों की सजा पूर्ण होने से पहले समय पूर्व रिहाई का प्रावधान CRPC में किया गया है.

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CRPC में किसी अपराधी के सजा होने पर जेल की सज़ा में छूट का प्रावधान किया गया है। इन प्रावधानों के अनुसार, अपराधी की पूरी सज़ा या उसका एक हिस्सा रद्द किया जा सकता है. धारा 432 के तहत, 'उपयुक्त सरकार' द्वारा किसी सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से, शर्तों के साथ या शर्तों के बिना निलंबित या माफ किया जा सकता है.

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CRPC की धारा 433 के तहत किसी भी सज़ा को उपयुक्त सरकार द्वारा कम भी किया जा सकता है. यह शक्ति राज्य सरकारों को उपलब्ध है ताकि वे उनके राज्य की जेलों में बंद कैदियों को सज़ा की अवधि पूरी करने से पहले कैदियों को रिहा करने के आदेश पारित कर सके.

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हालांकि CRPC की धारा 433-ए के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को उम्रकैद की सज़ा या मौत की सज़ा को उम्रकैद की सज़ा में बदल दिया गया हो, तो इन मामलों में दोषी को तब तक रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि उसने कम से कम 14 वर्ष की कारावास की सजा न काट ली हो.

इन धाराओं में "उपयुक्त सरकार" से तात्पर्य है कि उस राज्य की सरकार जिस राज्य में उस व्यक्ति को सज़ा दी जाती है या सज़ा के आदेश पारित किए जाते हैं.

नहीं मिलती सज़ा माफ़ी

हमारे देश के कानून के अनुसार कुछ अपराध जिनमें अदालत जिन व्यक्तियों को मौत की सज़ा सुनाती है या मौत सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया है ऐसे मामले में कैदियों को रिहा करने का प्रावधान नहीं है. दूसरे ऐसे कैदी जिन्होंने आजीवन उम्रकैद या प्राकृतिक जीवन के समाप्त होने तक जेल की सजा सुनाई गयी है. ऐसे कैदियों को भी सजा माफी नहीं मिल सकती.

इसके साथ कानून के अनुसार आतंकवादियों को सजा माफी नहीं दी जा सकती. खासतौर से आतंकवादी गतिविधियों में शामिल अपराधी या दोषी व्यक्ति जिन्हे गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम 1967, विस्फोटक अधिनियम 1908, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1982 और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम 1923 आदि जैसे गंभीर कानूनों के तहत सजा दी गयी हो.

कानून के अनुसार दहेज हत्या, जाली नोट, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध संबंधी मामलों में दोषी पाए गए व्यक्ति को भी सजा माफी केवल अदालत की अनुमति से ही दी जा सकती है.

कैसे तय होती है सज़ा माफ़ी

लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत संघ (2000) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में सज़ा माफ़ी के लिए पांच आधार निर्धारित किए थे, जिनको सज़ा माफ़ी के संबंध में निर्णय लेते हुए ध्यान में रखना अनिवार्य है:

· क्या अपराध एक व्यक्तिगत अपराध है, जो समाज को प्रभावित नहीं करता है.

· क्या भविष्य में अपराध को दोबारा अंजाम दिए जाने की संभावना है.

· क्या अपराधी ने अपराध करने की क्षमता खो दी है.

· क्या अपराधी को जेल में रखने से कोई महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरा हो रहा है.

· दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जा सकता है.

क्या है राज्यों के अधिकार

जेल अधिनियम 1894 के अनुसार हमारे देश में केवल राज्य सरकारें ही छूट नीति को निर्धारित करने हेतु नियम बना सकती हैं. केंद्र सरकार के पास केवल छूट नीति के संबंध में गैर-बाध्यकारी जिन्हे एक राज्य का मानना अनिवार्य नहीं है ऐसे दिशा-निर्देश जारी करने का ही अधिकार है.

इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए ही देश के प्रत्येक राज्य ने अपनी छूट नीति (Remission Policy) तैयार की है. जिनमें अलग-अलग अपराधों के संबंध में सज़ा माफ़ी के लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं.

हमारे देश की न्याय प्रणाली प्रतिशोधात्मक न्याय के बजाय सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत पर आधारित है. जिसके चलते राज्यों द्वारा तैयार की गई छूट नीति इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक कदम होता है.हालांकि राज्य को यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि नीति को आकस्मिक और मनमानी तरीके से लागू नहीं किया जाए और हर व्यक्तिगत मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, सज़ा माफ़ी के संबंध में निर्णय लिया जाना चाहिए.

अदालत का रुख

सुप्रीम कोर्ट और देश के कई हाईकोर्ट द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि जेल में कैदियों का बर्ताव भी उनकी सजा कम होने या रिहा होने में भूमिका अदा करता है. जेल में कैदी का आचरण और व्यवहार अच्छा होता है तो उसे इसका फायदा मिलता है. जब वह कैदी सजा में रियायत के लिए आवेदन करता हैं तो उसके द्वारा जेल में बितायी गयी सजा दौरान किए गए अच्छे व्यवहार को भी ध्यान में रखा जाता है.

कैदियों की रिहाई को लेकर देश के अलग अलग राज्यों ने भी अलग अलग जेल मैनुअल (Jail Manual) या जेल नियमावली तय की जाती है जिसके द्वारा दोषियों के अच्छे व्यवहार के लिए हर महीने कुछ दिनों की छूट की अनुमति दी जाती है. कई राज्यों में जेल नियमों के अनुसार कोई कैदी एक माह के 30 दिन तक सभी नियमों का पालन करता है और उसका व्यवहार जेल के अनुसार होता है तो उसे 4 दिन की छूट मिलती है.