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Parole क्या है? इसका उद्देश्य क्या है और किन परिस्थितियों में मिलती है कैदी को ये सुविधा

पैरोल क्या है, पैरोल आमतौर पर किनके लिए होता है, क्या इसमें अच्छे व्यवहार को भी ध्यान में रखा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य, इससे जुड़ी सभी तमाम जानकारी आपको यहां मिलेगी.

Written By My Lord Team | Published : January 10, 2023 7:53 AM IST

New Delhi: पैरोल (Parole) आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पहलू है. पैरोल आमतौर पर एक कैदी को दी जाने वाली अस्थायी या स्थायी रिहाई को कहा जाता है, जो कैदी के अच्छे व्यवहार को ध्यान में रख कर दी जाती है. इसका मुख्य उद्देश्य, कैदियों के सामाजिक पुनर्वास में सहायता करना है.

पैरोल की अवधारणा मूल रूप से सैन्य कानून से आती है. इस कानून के तहत युद्धबंदियों (Prisoners of War) को अंतरिम रिहाई प्रदान की जाती थी ताकि वह कुछ समय अपने परिवार के साथ बिता सकें और रिहाई की अवधि समाप्त होने पर दोबारा जेल में लौट जाएं. इससे प्रेरित होकर पैरोल को आपराधिक न्याय प्रणाली में भी शामिल किया गया.
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हालांकि हाल के दिनों में पैरोल का उपयोग शक्तिशाली और धनी लोगों द्वारा अपनी सजा से बचने के लिए किया जाने लगा है क्योंकि उन्हें पैरोल बहुत आसानी से दे दी जाती है, जबकि अन्य कैदियों के पैरोल आवेदन को लंबे समय तक लंबित रखा जाता है.

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अशफाक बनाम राजस्थान राज्य (2017) के मामले में, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पैरोल एक कैदी की सशर्त रिहाई है जो अच्छे व्यवहार और आवश्यकता के आधार पर दी जाती है. यह केवल एक सीमित समय की अवधि के लिए सजा का निलंबन (Suspension) है और इससे सजा की गंभीरता में कोई परिवर्तन नहीं आता है.
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आइए जानते हैं भारत में क्या है पैरोल से सम्बंधित प्रावधान

1894 के जेल अधिनियम (Prison Act) और 1900 के कैदी अधिनियम (Prisoners Act) के अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार भारत में कैदियों को पैरोल दी जाती है. भारत में प्रत्येक राज्य इन अधिनियम के अंतर्गत पैरोल के संदर्भ में दिशानिर्देश पारित करते हैं, जो एक दूसरे से थोड़े अलग होते हैं.

भारत में कैदियों को दो प्रकार की पैरोल दी जाती है

कस्टडी पैरोल (Custody Parole): आम तौर पर आपातकालीन स्थितियों में कैदियों को कस्टडी पैरोल प्रदान की जाती है. विदेशी कैदियों और मृत्युदंड से दंडित किए गए लोगों को छोड़कर, सभी अपराधियों को 14 दिनों के लिए आपातकालीन पैरोल दी जा सकती है.

परिवार के सदस्य की मृत्यु, परिवार के सदस्य की शादी, परिवार के किसी सदस्य की गंभीर बीमारी या किसी अन्य स्थिति जिसमें कैदी की उपस्थिति अनिवार्य है तो इन परिस्थितियों में कस्टडी पैरोल दी जाती है.

नियमित पैरोल (Regular Parole): नियमित पैरोल में कैदी को कुछ नियम और शर्तों के आधार पर रिहा किया जाता है. पैरोल पर रिहा किए जा रहे कैदी को पैरोल आदेश में वर्णित किए गए नियमों का अनिवार्य रूप से पालन करना होता है. इसलिए नियमित पैरोल को विवेकाधीन पैरोल (Discretionary Parole) भी कहा जाता है.

गृह सचिव (कारागार) बनाम एच. निलोफर निशा (2020) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि "छूट या पैरोल देना किसी कैदी को दिया गया अधिकार नहीं है. यह एक विशेषाधिकार है जो कैदी को कुछ मानदंडों को पूरा करने पर ही प्राप्त हो सकता है.

सामान्य रूप से किस आधार पर मिलती है भारत में पैरोल

पैरोल के संबंध में गृह मंत्रालय द्वारा 2010 में पारित किए गए दिशा निर्देशों के मुताबिक निम्नलिखित आधारों पर पैरोल दी जा सकती है:

दोषी कम से कम एक वर्ष की अवधि के लिए कारावास में रहा है.

कैद के दौरान कैदी का व्यवहार समान रूप से अच्छा रहा है.

यदि अपराधी को पहले कभी पैरोल दी गयी है तो उसके द्वारा पैरोल की अवधि के दौरान कोई अपराध नहीं किया होना चाहिए.

दोषी को मिली पिछली रिहाई के समय उसने किसी भी नियम, शर्त या प्रतिबंध को नहीं तोड़ा है.

दोषी को दी गयी पिछली पैरोल की अवधि समाप्त होने के बाद से कम से कम छह महीने का समय बीत चुका है.

 गंभीर और संगीन अपराधों जैसे दुष्कर्म, देशद्रोह, हत्या के मामलों में नहीं दी जाती है आसानी से पैरोल.

कैदी को पैरोल एक सीमित अवधि के लिए ही दी जाती है और इस अवधि को केवल असाधारण मामलों में ही बढ़ाया जा सकता है. भारत निर्वाचन आयोग बनाम मुख्तार अंसारी (2017) के मामले में, माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने घोषित किया था कि कस्टडी पैरोल को जमानत के विकल्प के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और इसे लंबे समय तक या दैनिक यात्राओं के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता है.

आपराधिक न्याय प्रणाली में उपयोग किए जाने वाले सभी पुनर्वास उपायों में पैरोल का अमूल्य स्थान है क्योंकि यह जमानत जैसा एक अधिकार नहीं है, बल्कि अच्छे व्यवहार के वादे के आधार पर दिए जाने वाला सज़ा का निलंबन (Suspension) है. बढ़ते समय के साथ, भारतीय समाज अधिक उदारात्मक और पुनर्वास प्रकार की सजा की ओर बढ़ रहा है. परिणामस्वरूप, पैरोल के संबंध में एक अधिनियम पारित करना अनिवार्य है जिससे पूरे भारत में पैरोल का एक समान उपयोग सुनिश्चित किया जा सके.