क्या है राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, और क्या हैं देश में Legal Services Authorities की भूमिका?
देश की न्यायपालिका में 1980 से 1990 का दशक बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योकि यही वक्त था जब देश की न्यायपालिका में आम जनता से जुड़े मुद्दो की सुनवाई को लेकर आवाजे उठने लगी. गरीब और वंचित वर्ग की पहुंच न्याय तक बनाने के लिए देश के विधिवेताओं ने एक नए कानून की ओर कदम बढाया, जो Legal Services Authorities Act, 1987 के रूप में सामने आया.
Written By My Lord Team | Published : January 11, 2023 5:41 AM IST
नई दिल्ली: देश की बढती आबादी के अनुपात में अदालतों के विकास नहीं होने के चलते 1990 के बाद देशभर में पेडिंग मुकदमों की संख्या बहुत तेजी से बढी. बढते मुकदमों के चलते मुकदमों की सुनवाई में भी देरी होने लगी तो वही इसके दूष्परिणाम के रूप में आम जनता और गरीब तबके लिए न्याय पाना बेहद मुश्किल हो गया.
देश की न्यायपालिका में 1980 से 1990 का दशक बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योकि यही वक्त था जब देश की न्यायपालिका में आम जनता से जुड़े मुद्दो की सुनवाई को लेकर आवाजे उठने लगी. गरीब और वंचित वर्ग की पहुंच न्याय तक बनाने के लिए देश के विधिवेताओं ने एक नए कानून की ओर कदम बढाया, जो Legal Services Authorities Act, 1987 के रूप में सामने आया.
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इस अधिनियम के तहत देशभर में विधिक सेवा प्राधिकरण स्थापित किये जाने का प्रावधान किया गया. विधिक सेवा प्राधिकरण को तीन स्तर में विभाजित किया गया जिन्हे बाद में विस्तार देते हुए चौथा स्तर भी बनाया गया. देश में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण National Legal Service Authority, राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण State Legal Service Authority, जिला स्तर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण और तालुका या ब्लाक स्तर पर तालुका विधिक सेवा समिति स्थापित किए गए.
लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ का काम समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सेवाएं देना, लोक अदालत लगाना, जेल अदालत और मुकदमों में आपसी समझाईश से मध्यस्था करना है. किसी भी ज़रूरतमंद व्यक्ति को मुफ़्त में अधिवक्ता मुहैया कराने का काम भी लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ का ही हैं.
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डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी
डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी का गठन लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 (Legal Services Authorities Act, 1987) के धारा 9 के तहत किया गया हैं। डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के धारा 2 के तहत डिस्ट्रिक्ट जज (District Judge) इसके चेयरमैन होंगे और धारा 3 के तहत सिवल जज (Civil Judge) पद के या इनसे बड़े पद के कोई कानूनी अधिकारी (State Legal Service Authority) इसके सेक्रेटरी यानी सचिव होंगे।
डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी के पास मीडीएशन के लिए केस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और उससे निचले स्तर के कोर्ट से आते हैं। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में और जिला के जेल में जेल अदालत लगाने का काम भी डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी करती है, जो महीने में एक से दो बार लगाए जाते हैं।
स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी
State Legal Service Authority का गठन लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 (Legal Services Authorities Act, 1987) की धारा 6 के तहत किया गया हैं। स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी की धारा 6(2)(a) के तहत हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस इसके मुख्य संरक्षक होते हैं, धारा 6(2)(b) के तहत हाई कोर्ट के जज या पूर्व जज इनके कार्यकारी अध्यक्ष (Executive Chairman) होते हैं और धारा 6(3) के तहत डिस्ट्रिक्ट जज या इनसे बड़े पद के कानूनी अधिकारी मेम्बर सेक्रेटेरी होते हैं।
लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 के धारा 7(2)(b) के तहत हाई कोर्ट के केस के लिए लोक अदालत स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी लगाते हैं.
नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी
नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (National Legal Service Authority -NALSA) का गठन लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 (Legal Services Authorities Act, 1987) की धारा 3 के तहत किया गया हैं. NALSA के धारा 3(2)(a) के तहत सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस इनके इसके मुख्य संरक्षक होंगे, धारा 3(2)(b) के तहत सप्रीम कोर्ट के जज या पूर्व जज इनके कार्यकारी अध्यक्ष (Executive Chairman) होंगे जिनको चीफ़ जस्टिस के सिफ़ारिश करने के बाद राष्ट्रपति नियुक्त करेगे.
नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी ही सम्पूर्ण देश में लोक अदालतो का आयोजन करवाता है.
क्या होती है लोक अदालत
लोक अदालत एक ऐसी जगह है जहां विवाद या अदालत में लंबित मामलों का निपटारा या समझौता किया जाता है. इस प्रणाली के माध्यम से छोटे छोटे पुराने केस का फ़ैसला होता है. इस अदालत को स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी और डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी की सहायता से नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी आयोजित करता हैं.
लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 की धारा 19(2)(a) के तहत इस अदालत में जज कानूनी अधिकारी या पूर्व कानूनी अधिकारी हो सकते है और धारा 19(2)(b) के तहत कोई और व्यक्ति भी जज हो सकता हैं.
लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 के धारा 21(1) के तहत लोक अदालत को सिवल कोर्ट के बराबर की स्थिति प्राप्त है। लोक अदालत में जब भी कोई फ़ैसला होगा तो उसका अवार्ड बनता हैं जिसके ख़िलाफ़ कोई भी व्यक्ति ऊपरी अदालत में अर्जी नहीं दे सकता.
क्या होती है स्थायी लोक अदालत
आपसी समझाईश के आधार पर मुकदमों का निस्तारण करने के लिए कई राज्य नियमित रूप से लोक अदालत के लिए विशेष अदालत स्थापित करती है जिसे स्थायी लोक अदालत कहा जाता है.
स्थायी लोक अदालत में विवाद का कोई भी पक्ष किसी भी न्यायालय में मामले को भेजने से पहले किसी मुद्दे या मामले को हल करने के लिए आवेदन कर सकता है.
स्थायी लोक अदालत लोक अदालत को लीगल सर्विस अथॉरिटीज़ एक्ट, 1987 के धारा 22B के तहत स्थापित किया गया हैं और धारा 22B(2)(b) के तहत ऐसे व्यक्ति स्थायी लोक अदालत में जज होंगे जो डिस्ट्रिक्ट जज या एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज रहे हैं या डिस्ट्रिक्ट जज के बराबर पद का कानूनी अधिकारी रहे हैं।