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क्या है हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम? जानिये महत्वपूर्ण तथ्य

Hindu Widow Marriage

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के आने के बाद से विधवा महिलाओं के विवाह को न सिर्फ कानूनी मान्यता मिली बल्कि इसके कारण ही इस प्रकार के विवाहों को सामाजिक मान्यता भी मिलने लगी.

Written By My Lord Team | Published : June 15, 2023 2:44 PM IST

नई दिल्ली: भारतीय समाज ही नहीं बल्कि दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति कई सदियों से दयनीय रही है. लेकिन पिछलों कुछ वषों दशकों में हालातों में सुधार हुआ है. भारतीय समाज में भी कई कुरीतियां थी जिन्हें वक़्त से साथ सुधारा गया है. ऐसी ही एक कुरीति विधवाओं को व्याह की इजाजत न देना भी था, लेकिन बाद में भारत में विधवाओं को विवाह की इजाजत भी मिली और इसके लिए कानून भी बनाया गया. आज हम आपको हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम से सम्बंधित कानून के बारे में बताएंगें.

क्या है हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 भारत में हिन्दू विधवा महिलाओं को विवाह की इजाजत देता है इसके साथ ही इस विवाह को कानूनी मान्यता भी प्रदान करता है. हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के आ जाने के बाद से विधवा महिलाओं के विवाह को न सिर्फ कानूनी मान्यता मिली बल्कि इसके कारण ही इस प्रकार के विवाहों को सामाजिक मान्यता भी मिलने लगी.

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हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के तहत विधवा महिलाओं को शादी के अधिकार के साथ ही उन्हें वो सब अधिकार प्रदान होते है तो किसी अन्य महिला को शादी के बाद मिलते हैं. इस कानून में विधवा विवाहों को जायज बताते हुए तर्क दिया गया है कि हिन्दू रीति रिवाज और कानून भी विधवाओं के विवाह का विरोध नहीं करता है.

इस कानून के तहत उन पुरुषों को भी सुरक्षा प्रदान की गयी है, जो विधवा महिलाओं से विवाह करते हैं.इसके साथ ही इस कानून में विधवा महिला को पिछली शादी से मिली विरासत व अधिकार प्राप्त करने का प्रावधान भी किया गया है.

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ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों का असर

भारत में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में लागू हुआ था. इस कानून को लागू कराने के लिए महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों का बड़ा असर रहा.

उन्ही के नेतृत्व में हिन्दू विधवा महिलाओं को विवाह का अधिकार देने के लिए लड़ाई लड़ी गयी. अंततः 16 जुलाई, सन् 1856 को ये कानून पारित हुआ और 26 जुलाई, सन् 1856 से ये क़ानून लागू भी हो गया.

आपको बता दे कि भारत के पहले गवर्नर लॉर्ड कैनिंग ने भारत में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 को इम्प्लीमेंट किया था। इस अधिनियमन के लागू होने के उपरान्त इस तरह का पहला विवाह 7 दिसंबर 1856 को उत्तरी कलकत्ता में सम्पन्न हुआ.

यह अधिनियमन 19वीं शताब्दी में भारत में प्रमुख सामाजिक परिवर्तनों में से एक था, तथा उस समय के बाद से देश में महिलाओं की अखंडता और शील की सुरक्षा के लिए बहुत से कानून बनाए गए ।

कुछ महत्वपूर्ण अदालती फैसले

1- दूसरी शादी के बाद पहले पति की संपत्ति में हक के सम्बन्ध में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में विधवा महिला के दूसरी शादी कर लेने पर पहले पति की संपत्ति पर दावे पर कहा कि भले ही विधवा महिला ने दूसरी शादी कर ली है, लेकिन इससे उसका मृत पति ( पहले पति) की संपत्ति पर हक खत्म नहीं हो जाता।

2- पति की संपत्ति पर हक केसम्बन्ध में, सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. शीर्ष कोर्ट द्वारा महिला के संपत्ति पर सीमित अधिकार को लेकर कहा की यदि पति के जिंदा रहते किसी संपत्ति पर महिला का सीमित अधिकार है और पति के जीवित रहते उस संपत्ति की देखभाल का काम वही महिला कर रही है तो पति की मौत के बाद उस संपत्ति पर उस महिला का पूरा अधिकार हो जाएगा।

इस निर्णय द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने स्पस्ट रूप से कहा कि पति की मौत के साथ ही महिला का संपत्ति पर सीमित अधिकार पूर्ण अधिकार में बदल जाएगा। इस आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार कानून-1956 के सेक्शन 14(1) का हवाला दिया था।