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क्या होती है कस्टोडियल डेथ, जाने इसके बारे में 

हिरासत में मौत होने पर पुलिस अधिनियम, 1861 (The Police Act, 1861) की धारा 7 के तहत एक पुलिस अधिकारी को निलंबित किया जा सकता है.

Written By My Lord Team | Published : January 23, 2023 5:25 AM IST

नई दिल्ली: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau -NCRB) के रिपोर्ट के अनुसार पिछले 20 वर्षों में हमारे देश में हिरासत में 1,888 आरोपियों की मौत हुई है. इन मौतों के लिए पुलिस अधिकारी के खिलाफ 893 केस दर्ज किए गए हैं और 358 पुलिस वालों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए गए है, लेकिन इन मामलों में से भी सिर्फ 26 मामलों में पुलिस वालों को दोषी माना गया है.

पुलिस हिरासत, न्यायिक हिरासत, सेना या किसी और जांच एजेंसी की हिरासत में अगर किसी आरोपी या दोषी की मौत होती है तो उसे कस्टोडियल डेथ या हिरासत में मौत होना कहते है. पुलिस या किसी और एजेन्सी द्वारा जानबूझकर केस चलाने के दौरान या केस का निर्णय आने के बाद किए गए कार्य के चलते दोषी की मौत हो सकती है.

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क्या कहता है कानून

अगर पुलिस या किसी और जांच एजेंसी की हिरासत में पुलिस द्वारा किए गए कार्य के चलते किसी व्यक्ति की मौत होती है तो इसके लिए कानून में सख्त प्रावधान किए गए है.

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ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ IPC की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा. IPC की धारा 304 के तहत पुलिस अधिकारी पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज होगा या IPC की धारा 304 A के तहत पुलिस अधिकारी की लापरवाही के लिए मामला दर्ज होगा, धारा 306 आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए मामला दर्ज किया जा सकता है.

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क्या कहती है CrPC

हिरासत में हुई मौत के लिए CrPC में मामले की जांच का प्रावधान किया गया है. CrPC की धारा 176(1) के तहत हिरासत के दौरान अगर किसी की मौत होती है तो उसकी जांच मजिस्ट्रेट द्वारा किए जाने का प्रावधान किया गया है.

हिरासत में मौत होने पर पुलिस अधिनियम, 1861 (The Police Act, 1861) की धारा 7 के तहत एक पुलिस अधिकारी को निलंबित किया जा सकता है. यह धारा लापरवाही के लिए सजा का प्रावधान करती है जिसमें कोई पुलिस अधिकारी लापरवाही करता है तो उनके वरिष्ठ अधिकारी उन्हें निलंबित कर सकते हैं.

अदालत के फैसले

Sunita Kalyan Kute Vs State of Maharashtra केस में, बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा की हिरासत में मौत होना सबसे बदतर अपराधों में से एक है. कोर्ट ने कहा की अपराध को रोकने के लिए पुलिस को शक्ति दी गई है, पुलिस नागरिकों के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं कर सकती.

इस केस में कोर्ट ने सरकार से पुलिस हिरासत में मारे गए 23 वर्षीय युवक की मां को 15 लाख रुपये देने का आदेश दिया था. हिरासत में मारे गए व्यक्ति की मां ने कोर्ट से गुहार लगाते हुए मुआवजे के तौर पर 40 लाख रुपये और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही का अनुरोध किया था.