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कानून की भाषा में क्या होता है आपराधिक षडयंत्र, क्या है IPC में इसके लिए सजा का प्रावधान

भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code)1860 की धारा (Section)120A,120B चैप्टर पांच A के अंतर्गत आता है. इस चैप्टर को दो भागों में बाटा गया है. पहली धारा (Section)120A और दूसरी धारा (Section)120B.

Written By My Lord Team | Published : January 9, 2023 7:17 AM IST

नई दिल्ली: षड्यंत्र को लेकर सामान्य परिभाषा "साजिश करते हुए धोखा देने से है". यानी गुप्त रूप से की जाने वाली कार्रवाई के रूप में भी इसे लिया जाता है. भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code) में इस षड्यंत्र को आपराधिक षड्यंत्र के रूप में देखा गया है. IPC की धारा 120A और 120B को चैप्टर 5A के अंतर्गत रखा गया है. इस चैप्टर को दो भागों में बाटा गया है. पहली धारा 120 A और दूसरी धारा 120 B. इन धाराओं में आपराधिक षड्यंत्र और उसके तहत मिलने वाली सजा के बारे में बताया गया है.

IPC की धारा 120A

षड्यंत्र की वास्तविक परिभाषा IPC की धारा 120 A में दी गई है. धारा 120A में षड्यंत्र को आपराधिक षड्यंत्र के रूप में परिभाषित किया गया है इसके अनुसार जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी अवैध कार्य या किसी वैध कार्य को अवैध तरीके से करने या करवाने को सहमत होते हैं तो उसे आपराधिक षड्यंत्र कहते हैं.

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यानी किसी भी षडयन्त्र के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है, कोई अवैध कार्य करना या करवाना या कोई वैध कार्य अवैध साधनों द्वारा करना—करवाना आवश्यक है.

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यानि कि कोई ऐसा काम जो अवैध या गैरकानूनी है नहीं लेकिन जिसको करने में अवैध साधनों का प्रयोग किया गया है यानि किसी गैरकानूनी हथियार या साधन का प्रयोग किया गया है या सहमति जताई गई है. तब उस सहमति को आपराधिक षड्यंत्र कहेंगे.

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लेकिन किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षड्यंत्र तब तक नहीं होगी, जब तक कि षड्यंत्र  किसी अपराध  के लिए न किया जाय. साथ ही उस अपराध को IPC में अपराध बताया गया हो.  इसके अलावा कोई काम साजिश के तहत एक या दो लोगों ने नहीं किया है.

क्या है सजा का प्रावधान

आपराधिक षड्यंत्र के लिए IPC की धारा 120B मिलने वाली सजा के बारे में बात करती है. इस खंड को दो भागों में विभाजित किया गया है. पहली धारा 120B (1) और  दूसरी 120B (2). धारा 120B (1) जघन्य और गंभीर अपराधों के लिए सजा देती है. दूसरी ओर, धारा 120B (2) में छोटे अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है.

IPC की धारा 120B (1)

इस धारा के अनुसार उन अपराधों में सजा का प्रावधान करती है जहां पर कोई षड्यंत्र ऐसे गंभीर अपराध के लिए किया जाता है जिन अपराध की सजा कम से कम दो वर्ष या उससे अधिक सश्रम कारावास की सजा हो, ऐसे अपराध जिनमें आजीवन कारावास की सजा हो और ऐसे अपराध जिनमें मौत की सजा का प्रावधान तक हो.

अगर कोई व्यक्ति ऐसे अपराधों में से किसी भी अपराध के लिए षड्यंत्र करता है, तो ऐसे में जो सजा अपराध करने वाले व्यक्ति को मिलती है इस तरह के अपराध के लिए वही सजा षड्यंत्र करने वाले को भी मिलेगी.

जो कोई दो वर्ष से अधिक अवधि के कठिन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होगा, यदि ऐसे षड्यंत्र के दण्ड के लिए IPC में कोई भी प्रावधान नहीं है तो, वह उसी प्रकार दण्डित किया जाएगा, मानो उसने भी उसी अपराध का दुष्प्रेरण किया है जिसके लिए उसने षड्यंत्र किया है.

IPC की धारा 120B (2)

यह धारा शेष अपराधों की आपराधिक साजिश के लिए सजा देती  है. आम तौर पर, इसमें मामूली अपराधों के लिए सजा मिलती है. दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि यह उन अपराधों की साजिश को कवर करता है जिसकी 2 साल से कम कारावास की सजा है. जिसकी सजा छ: महीने से अधिक अवधि के लिए नही है.

इस धारा के अनुसार ऐसे अपराध के लिए 6 महीने से अधिक की अवधि के लिए कारावास की सजा या जुर्माना या दोनों साथ दी जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2003 के हीरालाल हरिलाल भगवती बनाम सी.बी.आई के फैसले में यह स्पष्ट किया है कि षड्यंत्र के अपराध को भारतीय दण्ड संहिता

की धारा 120B के दायरे में लाने के लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि पक्षकार के बीच विधि विरुद्ध कार्य करने का करार हुआ था तथापि प्रत्यक्ष साक्ष्य से षड्यंत्र को सिद्ध करना कठिन है.

वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने CBI हैदराबाद बनाम नारायण राव के मामले में कहा कि किसी कार्य का करार आपराधिक षड्यंत्र का मूल तत्व है. आपराधिक षड्यंत्र का प्रत्यक्ष साक्ष्य मिलना यदा कदा उपलब्ध होता है यह घटना के पूर्व या बाद की परिस्थितियों के आधार पर सिद्ध किया जाता है. सिद्ध परिस्थितियों को यह स्पष्ट दर्शाना चाहिए कि वे एक करार के आगे जारी रखने के लिए की गयी है.

अवयस्क के मामले में

आपराधिक षड्यंत्र का आधार करार में निहित है लेकिन एक अवयस्क किसी प्रकार से षड्यंत्र में शामिल नहीं हो सकता इसलिए जब एक अवयस्क के साथ कोई व्यक्ति करार करके आपराधिक षड्यंत्र गठित करता है तो वहा पर करार शून्य होने के कारण वह व्यक्ति आपराधिक षड्यंत्र के लिए दायी नहीं होगा लेकिन वह धारा 107 के अधीन एक अवयस्क के दुष्प्रेरण के अपराध के लिए जरूर जिम्मेदार होगा.