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बलवा (Riot) क्या है? जानिए IPC की धाराओं के तहत सज़ा का प्रावधान

बलवे के दौरान सार्वजानिक या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जाता है तो आरोपियों के खिलाफ लोक संपत्ति नुक़सान निवारण अधिनियम, 1984 (Prevention of Damage to Public Property Act) के तहत मुकदमा चलाया जाता है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : December 29, 2022 8:43 AM IST

समाज के विकास के लिए यह बहुत आवश्यक है कि देश में शांति बनी रहे. लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों के कारण समाज में अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है. जो लोग सार्वजनिक शांति को भंग करने का कार्य करते हैं, वे न केवल एक व्यक्ति या उसकी संपत्ति के खिलाफ बल्कि बड़े पैमाने पर पूरे समाज के खिलाफ अपराध को अंजाम देते हैं.

तो आइए जानते हैं, इन अपराधों के बारे में और क्या है इनके विरुद्ध सज़ा के प्रावधान

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बलवा से जुड़े प्रावधान को समझने से पहले, यह समझना आवश्यक है कि कानून के अनुसार "अवैध सभा" (Unlawful Assembly) क्या है.

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भारतीय दंड संहिता की धारा 141 के मुताबिक, पांच या उससे अधिक व्यक्तियों की सभा को "गैरकानूनी" तब नामित किया जाता है, जब उस सभा का उद्देश्य निम्नलिखित 5 में से एक हो: -

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· आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा लोक सेवक, सरकार या विधान मंडल को आतंकित करना

· किसी विधि के, या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का प्रतिरोध करना

· कोई रिष्टि या आपराधिक अतिचार (Criminal Trespass) या अन्य अपराध को अंजाम देना

· आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति पर कब्ज़ा करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग का उपयोग न करने देना या जल का उपभोग करने के अधिकार या किसी अन्य अधिकार से वंचित करना

· आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा, किसी व्यक्ति को कुछ करने के लिए मजबूर करना, जिसे करने के लिए वह करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है या व्यक्ति को कुछ करने से रोकना, जिसके लिए वह कानूनी रूप से बाध्य है।

जो व्यक्ति, ऐसी सभा में भाग लेता है और दोषी पाया जाता है तो उसे धारा 143 के तहत अधिकतम 6 महीने के कारावास या जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। यदि वह व्यक्ति जानलेवा हतियार के साथ सभा में भाग लेता है तो उसे धारा 144 के तहत अधिकतम 2 वर्ष के कारावास या जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है।

बलवा क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 146 के अनुसार, यदि किसी गैरकानूनी/अवैध सभा के द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा, उस सभा के सामान्य उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए बल या हिंसा का इस्तेमाल किया जाता है, तो ऐसी सभा का प्रत्येक सदस्य बल्वे के अपराध का दोषी होता है.

जो व्यक्ति बलवे के अपराध का दोषी पाया जाता है, उसे धारा 147 के तहत अधिकतम 2 वर्ष के कारावास या जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है. यदि वह व्यक्ति जानलेवा हतियार के साथ बल्वे में भाग लेता है तो उसे धारा 148 के तहत अधिकतम 3 वर्ष के कारावास या जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है.

हाल ही में उत्तर प्रदेश विधान सभा की खतौली सीट से विधायक विक्रम सैनी को मुजफ्फरनगर दंगा मामले में दोषी पाया गया. अदालत ने सैनी को धारा 148 के तहत 2 साल की सज़ा और 10,000 रुपये के जुर्माने की सज़ा सुनाई है. सजा के चलते सैनी की विधानसभा की सदस्यता भी रद्द हो गई थी और खतौली में उपचुनाव कराने पड़े थे.

बल्वे से जुड़ा एक अन्य मुख्य और अनूठा प्रावधान है, धारा 149. इस धारा के तहत यदि गैरकानूनी सभा के किसी एक सदस्य द्वारा उस सभा के सामान्य उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए किसी अपराध को अंजाम दिया जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति जो उस समय उसी सभा का सदस्य था, वह उस अपराध का दोषी माना जाता है.

सार्वजानिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने पर सज़ा

बलवे के दौरान सार्वजानिक या सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जाता है तो आरोपियों के खिलाफ लोक संपत्ति नुक़सान निवारण अधिनियम, 1984 (Prevention of Damage to Public Property Act) के तहत मुकदमा चलाया जाता है.

इस अधिनियम की धारा 3 के तहत, अगर कोई व्यक्ति सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को हानि पहुंचाता है और दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा हो सकती है। वहीं धारा 4 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति आग या विस्फोटक द्वारा सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को हानि पहुंचाता है और दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 1 साल की सज़ा, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है.

समाज में अमन और व्यवस्था बनाए रखना सरकार सबसे मुख्य दायित्व है. इसको ध्यान में रखते हुए भारतीय कानून में इसके संबंध में कठोर और सख्त प्रावधान बनाए गए हैं. इन प्रावधानों का मूल उद्देश्य सार्वजनिक शांति बनाए रखना है. इन प्रावधानों ने भारत में दंगों की घटनाओं की संख्या को कम करने में मदद की है, हालांकि, बदलते समय के अनुसार इन प्रावधानों में कुछ सुधार करने की आवश्यकता है.