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क्या है अंतरधार्मिक विवाह को लेकर हमारे देश में नियम और कानून

विशेष विवाह अधिनियम विभिन्न धर्मों को मानने वाले युगलों को विवाह की सुविधा प्रदान करने तथा स्वेच्छा से विवाह को प्राथमिकता देने के लिए अधिनियमित किया गया था. हमारे देश में विशेष विवाह अधिनियम का सर्वाधिक प्रयोग 15 से 19 आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा किया जाता है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : December 21, 2022 7:12 AM IST

नई दिल्ली, हमारे देश का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपना साथी चुनने का अधिकार देता है, जिसके साथ वह अपना जीवन व्यतीत करना चाहता है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने के अधिकार के तहत विवाह के अधिकार को बरकरार रखा गया है. इस अधिकार के लिए, 1954 में विशेष विवाह अधिनियम पारित किया गया, जो अंतर-धार्मिक जोड़े को विवाह करने की अनुमति देता है.

क्या है 1954 का विशेष विवाह अधिनियम

यह अधिनियम बिना किसी धार्मिक रीति-रिवाजों के विवाह की अनुमति देता है. यह अधिनियम कानूनी पंजीकरण के माध्यम से विवाह की पुष्टि करता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम को समान नागरिक संहिता की दिशा में एक प्रयत्न के रूप में बताया था.

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संविधान का अनुच्छेद 21 देश के प्रत्येक नागरिक को उसके जीवन या उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता. यह अनुच्छेद प्रत्येक नागरिक को अपनी मर्जी से विवाह करने का भी अधिकार देता है, भले ही उनका धर्म कुछ भी हो यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विवाह के अधिकार को लागू करता है.

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भारत में अंतर-धार्मिक विवाह कानूनी तौर पर पूर्णतया वैध है, जहां वे किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत शादी नहीं करना चाहते हैं तो विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत विवाह और पंजीकरण करा सकते हैं. इस तरह के विवाह के लिए सर्वप्रथम हर जिले मौजूद रजिस्ट्रार कार्यालय में जाकर आवेदन करना होगा जो हर जिले में उपलब्ध होगा. विवाह रजिस्ट्रेशन के आवेदन में  नाम, पता, व्यवसाय और जिस जिले में वे विवाह संपन्न कराना चाहते हैं उसकी पूरी जानकारी देना जरूरी होता है.आवेदन या नोटिस का प्रारूप विशेष विवाह 1954, अनुसूची 1 से डाउनलोड किया जा सकता है.

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विवाह के लिए पहला नियम

अधिनियम के अनुसार विवाह केवल उसी स्थान पर संपन्न किया जा सकता है, जहां दोनों में से एक कम से कम 30 दिनों से रह रहा हो. यह 30 दिन की अवधि नोटिस देने के 30 दिन पहले से गिना जायेगा.

अधिनियम में यह प्रावधान है कि विवाह अधिकारी को विवाह का नोटिस या आवेदन प्राप्त होने के बाद उसे सार्वजनिक रूप से ऐसी सूचना प्रकाशित करनी होगी जिससे कोई भी व्यक्ति, जिसे आपत्ति है वह अपनी आपत्ति विवाह अधिकारी के यहाँ दर्ज कर सकते है. आपत्ति सिर्फ नोटिस सार्वजनिक किए जाने के बाद से केवल 30 दिनों के लिए उठाया जा सकती है.

विशेष विवाह के आवश्यक शर्ते

रजिस्ट्रेशन के समय आवेदनकर्ता जोड़े में किसी एक का व्यक्तिगत रूप से मौजूद होना जरूरी है. आवेदन के समय पुरुष की उम्र 21 वर्ष और महिला की आयु 18 वर्ष होना आवश्यक है. विवाह आवेदन के समय दोनों ही सहमति जरूरी है. दोनो में से कोई एक भी किसी भी प्रकार के मानसिक विकार से पीड़ित ना हो जो उनके विवाह तथा प्रजनन को प्रभावित करें.

इस अधिनियम के अनुसार यदि एक अविभाजित हिंदू परिवार का व्यक्ति विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करता है तो इसका परिणाम परिवार से उस व्यक्ति का विच्छेद माना जाता है-

अपील का अधिकार

विवाह अधिकारी के समक्ष आवेदन के पश्चात विवाह पंजीयन कार्यालय द्वारा 30 दिन का समय लिया जाता है. इस दौरान कोई भी विवाह को लेकर आपत्ति दायर कर सकता है आपत्ति दायर होने पर आवेदनकर्ता को उसका जवाब देना होगा.

विवाह अधिकारी अगर आपत्ति को वैध पाता है, तो विवाह की अनुमति नहीं दी जा सकती है, हालांकि यदि वह आपत्ति से संतुष्ट नहीं है, तो विवाह अधिकारी आपत्तिकर्ता पर 1000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है.

अगर विवाह अधिकारी किसी कारण से या किसी की आपत्ति के चलते विवाह की अनुमति नहीं देता है, तो आवेदनकर्ता जोड़ा जिला अदालत में अपील दायर कर सकता है.