Domestic Violence: घरेलू हिंसा से बचने के उपाय, जाने क्या है कानून
नई दिल्ली : भारत में हर दूसरे घर में महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती रहती है. हमारे समाज में घरेलू हिंसा की नींव एक थप्पड़ से रखी जाती है फिर वही थप्पड़ धीरे - धीरे दर्दनाक मौत की कहानी बन जाती है. घरेलू हिंसा के कुछ मामले पुलिस स्टेशन तक तो पहुंचते हैं और कुछ मामले घर की चारदीवारी में ही कैद हो कर रह जाते है. हमारे देश में घरेलू हिंसा को लेकर सख्त कानून है. फिर भी क्यों ये कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा. इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों में जागरूकता. तो आईए जानते हैं कि इससे जुड़े कानून के बारे में. जिसके बारे में देश की हर महिला के पता होना चाहिए ताकि वो अपनी रक्षा खुद कर सके.
क्या है घरेलू हिंसा (Domestic Violence)
जब किसी महिला को उसके परिवार का ही कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से चोट पहुंचाता है, उसकी गरिमा के साथ खिलवाड़ करता है, उनका अपमान करता है, उन्हे उनका हक नहीं देता या मानसिक रूप से परेशान करता तो ये सभी घरेलू हिंसा कहलाते हैं.
घरेलू हिंसा पर कानून
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) , यह भारत के संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है. इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की घरेलू हिंसा से रक्षा करना और कानूनी सहायता उपलब्ध कराना है.
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इसे 26 अक्टूबर 2006 को लागू किया गया था.
घरेलू हिंसा की कानूनी परिभाषा
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005, इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है. जिसके तहत -“आरोपित(Respondent) पक्ष का कोई बर्ताव, भूल या किसी और को काम करने के लिए नियुक्त करना, घरेलू हिंसा में माना जाएगा .
घरेलू हिंसा के प्रकार
1.किसी महिला को हानि पहुंचाना या जख्मी करना घरेलू हिंसा है. किसी पीड़िता की जिंदगी को, अंगों या हित को मानसिक या शारीरिक रूप से खतरे में डालना या ऐसा करने की नीयत भी अगर आप रखते हैं तो वो घरेलू हिंसा में आता है. इसमें बोलकर, शारीरिक रूप से, यौनिक,उसकी भावना को या आर्थिक रूप से हानि पहुंचाना भी शामिल है.
2.दहेज के लिए महिला या उसके रिश्तेदारों को किसी भी तरह से मजबूर करना.
इस अधिनियम की धाराएं
धारा 4 (Information to Protection Officer and exclusion of liability of informant)- इस तरह के मामले को देखने के लिए एक संरक्षक अधिकारी होते हैं. इस धारा के तहत अगर घरेलू हिंसा किया जा चुका हो या किया जाने वाला है या किया जा रहा है इसकी सूचना कोई भी व्यक्ति संरक्षण अधिकारी को दे सकता है. इसकी सूचना कोई भी कर सकता है. अगर कोई व्यक्ति अच्छे भाव से किसी हिंसा की होने की घटना देता है लेकिन वो नहीं घटी फिर भी उस व्यक्ति पर किसी भी तरह का कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती है.
धारा 5 (Duties of police officers, service providers and Magistrate)- इसके तहत पुलिस अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं और मजिस्ट्रेट के क्या कर्तव्य है उसके बारे में बताया गया है.
जब इनमें से किसी को भी घरेलू हिंसा के बारे पता चलता है तो जो पीड़ित व्यक्ति है उन्हे ये जानकारी ये अधिकारी देते हैं
1. सेवा प्रदाता की सेवा उपलब्धता (इसके तहत पीड़िता को संतुष्टी देना होता है कि उन्हे हर तरह से सहयोग किया जायेगा)
2. संरक्षण प्रदाताओं की सेवाओं की उपलब्धता की जानकारी ( इसके तहत पीड़ित को ये बताया जाता है कि उनकी के मदद लिए केवल सेवा प्रदाता ही नहीं बल्कि संरक्षण अधिकारी और मजिस्ट्रेट भी हैं)
3. मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त करने का (मुकदमा करने के लिए आपको कोई पैसे देने की जरुरत नहीं पड़ेगी, भारत सरकार ने इसके लिए व्यवस्था कर दी है. सरकार की तरफ से आपको वकील भी दिया जायेगा.
भारतीय दंड संहिता धारा 498 (क) के तहत परिवाद( Report) दाखिल किया जाता है.
धारा - 6 ( आश्रय गृह के कर्तव्य)- अगर कोई व्यक्ति या उसकी ओर से कोई संरक्षण अधिकारी या कोई सेवा प्रदाता किसी आश्रय गृह( जैसे कोई आश्रम या पीजी) के मालिक से पीड़ित को रहने की जगह उपलब्ध कराने का अनुरोध करता है, तो वह व्यक्ति पीड़ित को रहने की जगह देता है. ये इसलिए किया जाता है क्योंकि जिस घर में महिला के साथ हिंसा हुए है वहां पीड़िता का रहना सुरक्षित नहीं माना जाता है. तो महिला की सुरक्षा के लिए ये कदम अधिकारियों के द्वारा उठाया जाता है.
धारा -7 - अगर पीड़िता को चोट लगी है तो उसे अधिकारियों द्वारा उन चिकित्सक ( Doctor) के पास इलाज करवाया जाता है.जो इस तरह के पीड़ितों की मदद करते हैं. जिसके लिए पैसे नहीं लिए जाते हैं.
धारा - 8 - इसके तहत राज्य सरकार हर जिले में जरूरत के अनुसार संरक्षण अधिकारी को नियुक्त करती है. कोशिश की जाती है कि अधिकारी कोई महिला ही हो.
धारा - 9- इसके तहत संरक्षण अधिकारियों के कर्तव्य के बारे में जानकारी दी जाती है :-
1. सबसे पहले अधिकारियों के मामले का पता चलेगा.
2. अधिकारी मामले की जांच करेंगे.
3. घरेलू हिंसा की रिपोर्ट दर्ज करेगा.
4.उसके बाद देखा जाता है कि उस क्षेत्र के पुलिस कौन है फिर उन्हे इसकी जानकारी दी जाती है और इस मामले की कॉपी भेजी जाती है.
5. पीड़ित को सारी सुविधा फ्री दी जाती है.
धारा- 10- कोई भी स्वैच्छिक संगठन या कंपनी जो महिलाओं के सुरक्षा या अधिकारों की बात करती है वो राज्य सरकार के पास पंजीकरण करवा सकती है.
धारा- 11 - केंद्र सरकार और राज्य सरकार लोगों को मीडिया के माध्यम से जागरूक करती है.
धारा 12- कोई भी व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या अन्य कोई घरेलू हिंसा से पीड़ित की ओर से इस अधिनियम के तहत मुआवजा या नुकसान के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है.
मजिस्ट्रेट सुनवाई की पहली तारिख न्यायालय द्वारा आवेदन प्राप्ति के 3 दिन के अंदर देगा.
धारा - 13-सुनवाई के दौरान आपको उपस्थित होना है.
धारा 16- पक्षकार ऐसी इच्छा करें तो कार्रवाई बंद कमरे में हो सकेगी.
धारा 18- पीड़िता और मजिस्ट्रेट के सामने आरोपित को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है. जिसके बाद मजिस्ट्रेट अपना आदेश पारित करता है. इसके तहत अगर दो लोगों के अलावा अगर कोई और भी लड़ाई करवाता है तो वो भी सजा के पात्र होगा. इसके अलावा मजिस्ट्रेट आरोपी को कहीं कहीं जाने से रोक देता है.
धारा 20- आवेदन का निपटारा करते समय मजिस्ट्रेट पीड़ित या उसके संतान को घरेलू हिंसा के बाद हुए खर्च एवं हानि की पूर्ति आरोपित से करवाने का आदेश देता है.
धारा 23- अंतरिम और एक पक्षीय आदेश देने का हक मजिस्ट्रेट को होता है.
धारा 27(अधिकारिता) - पीड़िता आरोपी जहां रह रहा है वहीं सुनवाई होती है.
धारा -29 (अपील) - 30 दिन के अंदर ही आपको अपील करनी होगी
धारा - 31 - अगर आोरोपित ने कोर्ट के आदेश को नहीं माना तो ये दंडात्मक होगा.