सज़ा की माफ़ी पर लगाई गई शर्तों का उल्लंघन महंगा पड़ सकता है, IPC की धारा 227 में जानिए
हमारे देश के कानून के अनुसार कई बार जेल में बंद कैदियों को उनके व्यवहार, अपराध के इतिहास और भविष्य में बदलाव की संभावनाओं को देखते हुए सज़ा की अवधि पूरी करने से पहले ही रिहा कर दिया जाता है. यह सरकारों की सजा माफी यानी परिहार नीति (Remission Policy) के जरिए किया जाता है.
Written By My Lord Team | Published : January 19, 2023 11:15 AM IST
नई दिल्ली: हमारे देश की न्याय प्रणाली प्रतिशोधात्मक न्याय के बजाय सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत पर आधारित है. राज्यों द्वारा तैयार की गई परिहार नीति यानी सजा माफी (Remission Policy) इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक और अहम कदम है।
हमारे देश के कानून के अनुसार कई बार जेल में बंद कैदियों को उनके व्यवहार, अपराध के इतिहास और भविष्य में बदलाव की संभावनाओं को देखते हुए सज़ा की अवधि पूरी करने से पहले ही रिहा कर दिया जाता है. यह सरकारों की सजा माफी यानी परिहार नीति (Remission Policy) के जरिए किया जाता है.
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IPC की धारा 432
आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) के प्रावधानों के तहत जेल की सज़ा के माफ़ी या परिहार के संबंध में प्रावधान बनाए गए हैं. इनके अनुसार, अपराधी की पूरी सज़ा या उसका एक हिस्सा रद्द किया जा सकता है.
IPC की धारा 432 के तहत, राज्य सरकार द्वारा किसी सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से, शर्तों के साथ या शर्तों के बिना निलंबित या माफ किया जा सकता है.
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हालांकि कानून में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि जिस व्यक्ति की सजा माफ कर दी गई है, वह इसका अनुचित लाभ न उठाए और वह लगाई गई शर्तों का पालन करे. परिहार देते समय लगाई गई शर्तों का उल्लंघन करने पर व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाही भी की जाती है। इसके संबंध में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 227 में प्रावधान बनाए गए हैं.
IPC की धारा 227
IPC की धारा 227 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की सज़ा को परिहार नीति के तहत सशर्त कम किया है या रद्द किया है और वह व्यक्ति जानबूझकर शर्त का उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध कार्रवाही की जा सकती है.
दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को दी गई मूल सजा से दंडित किया जाएगा यदि वह उस सजा के लिए अभी तक कारावास में नहीं रहा है और यदि वह पहले दी गई सजा का एक हिस्सा भोग चुका है तो उसे सजा के उतने हिस्से से दंडित किया जाएगा जो उसके द्वारा अभी भी भुगतना बाकी है.
इस तरह के मामले में अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि आरोपी ने सजा की सशर्त माफ़ी (Remission) स्वीकार की थी और फिर भी वह जानबूझकर ऐसी किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है जिसके आधार पर उसको सज़ा में छूट दी गई थी.
अपराध की श्रेणी
IPC की धारा 227 के अंतर्गत दिया गया यह अपराध, एक गैर-जमानती और संज्ञेय है यानी अपराधी को बिना वारंट (Warrant) के गिरफ्तार किया जा सकता है. इस अपराध में समझौता नहीं किया जा सकता है.