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उप्र पुलिस अधिकारियों ने किया कैदी का अपहरण और हत्या? दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाई गंभीर सजा

Noida Custodial Death Case Delhi HC Upholds Conviction of Police Officers

नोएडा का एक मामला है जिसमें एक कैदी की हिरासत में ही मौत हो गई। जहां पुलिस ने इसे सुसाइड का नाम दिया, अदालत को ऐसा लगता है कि इसमें पुलिस का ही हाथ था। आईपीसी की धारा 304 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को गंभीर सजा सुनाई है

Written By My Lord Team | Published : June 27, 2023 10:57 AM IST

नई दिल्ली: गौतमबुद्ध नगर के हिरासत में हुई मौत (Custodial Death) के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने उप्र के कुछ पुलिस अधिकारियों को गंभीर सजा सुनाई है। एक कैदी की हुई मौत को जहां पुलिस अधिकारियों ने सुसाइड बताया, कोर्ट के हिसाब से वो एक अपहरण और हत्या थी जिसमें पुलिस का ही हाथ था। मामला क्या था और कोर्ट ने उन्हें क्या सजा सुनाई है, आइए जानते हैं...

पुलिस अधिकारियों को HC ने सुनाई गंभीर सजा

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट (Trial Court) के एक आदेश को मानते हुए उत्तर प्रदेश के पांच पुलिस अधिकारियों को दस साल की जेल की सजा सुनाई है; मामला 26-वर्षीय एक कैदी सोनू से जुड़ा है जिसकी हिरासत में, रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई।

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पुलिस का कहना है कि सोनू की मौत सुसाइड से हुई लेकिन कोर्ट ने यह बात मानने से इनकार कर दिया है।

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दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश मुक्ता गुप्ता और न्यायाधीश अनीश दयाल की खंडपीठ ने इसी मामले में एक इन्स्पेक्टर के खिलाफ जारी किये गए तीन साल की जेल की सजा के ऑर्डर को भी अपहोल्ड किया है।

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उप्र पुलिस अधिकारियों ने किया कैदी का अपहरण और हत्या?

आइए विस्तार से समझतें हैं कि मामला क्या था। आपको बता दें कि 1 सितंबर, 2006 के दिन कुछ पुलिस अधिकारियों ने सिविल कपड़ों में सोनू को अपनी प्राइवेट गाड़ी में बैठाया और उसे नोएडा के सेक्टर 31 की पुलिस चौकी निठारी में ले गए।

अगले दिन उसे लगभग सुबह के 2:25 पर नोएडा के सेक्टर 20 के पुलिस स्टेशन के लॉकर में बंद कर दिया गया।

यह कहा गया कि चोरी के एक मामले में सोनू से पूछताछ के लिए उसे गिरफ्तार किया गया था। इन्वेस्टिगेशन के अंत में यह बताया गया कि जांच के बीच पुलिस ने उसके साथ अत्याचार किया जिसके चलते उसने शारीरिक और मानसिक तनाव में आकर सुबह 5:30 बजे आत्महत्या कर ली।

उच्चतम न्यायालय के आदेश पर इस मामले को गौतमबुद्ध नगर से दिल्ली ट्रांसफर किया गया था ताकि इस मामले में एक सही फैसला सुनाया जा सके क्योंकि उत्तर प्रदेश में ऐसा करना मुश्किल होता; आरोपी इसी राज्य से थे।

अदालत ने फैसले में कही ये बात

इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की इस खंडपीठ ने पुलिस की दलीलों को खारिज करते हुए यह मानने से इनकार कर दिया है कि सोनू की मौत एक आत्महत्या का मामला है। अदालत का यह कहना है कि सोनू के शरीर पर चोट के निशान और रिकॉर्ड्स और जनरल डायरी में हुई हेरा-फेरी और छेड़छाड़ यह साफ तौर पर कह रही है कि मामला सुसाइड का नहीं है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहा है कि कैदी सोनू के साथ उनकी गिरफ़्तारी (अपहरण) के बाद जो हुआ, उसकी जानकारी सभी आरोपियों को थी और उनकी जानकारी के तहत ही यह सब हुआ है।

आरोपियों की तरफ से क्योंकि कोई यकीन करने योग्य स्पष्टीकरण नहीं आया है, अदालत का यह मानना गलत नहीं है कि सोनू के अपहरण, उसको अवैध तरीके से हिरासत में रखने (Illegal detention) और मौत में पुलिस का ही हाथ है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सोनू के पिता ने कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी कि आरोपियों को आईपीसी की धारा 304- 'लापरवाही से मौत' (Death by Negligence) नहीं बल्कि धारा 302- 'खून' (Murder) के तहत सजा सुनाई जाए।

हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि बेशक पुलिस अधिकारियों की वजह से सोनू की मौत हुई है और यह इसलिए हुई है क्योंकि पूछताछ के दौरान पुलिस ने यह जानते हुए सोनू के साथ अत्याचार किया कि उससे उसकी मौत हो सकती है; लेकिन पुलिस ने अत्याचार मारने के उद्देश्य से नहीं किया है।

यही वजह है कि अदालत ने इन पुलिस अधिकारियों को आईपीसी की धारा 304 पार्ट एक के तहत उन्हें दस साल की जेल की सजा सुनाई है।