माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव की दया याचिका खारिज, यूपी प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोबेशन एक्ट के तहत सरकार से मांगी थी राहत, जानें क्या है ये कानून
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव की रिहाई की मांग को मानने से इंकार कर दिया है. माफिया डॉन की रिहाई मांग से लखनऊ के डीएम और डीसीपी ने भी अनुंशसा नहीं की थी, जिसे ध्यान में रखकर राज्यपाल ने राहत देने से इंकार कर दिया है. बता दें कि माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव ने यूपी प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोबेशन एक्ट (UP Prisoners' Release on Probation Rules, 1938) की धारा 2 के तहत जेल से रिहा होने के लिए गुहार लगाई थी. आइये जानते हैं कि क्या है यूपी प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोबेशन एक्ट और इसके तहत राहत की मांग करने की प्रक्रिया क्या है...
कस्टम कलेक्टर की हत्या के मामले में उम्रकैद
माफिया बबलू श्रीवास्तव 24 मार्च 1993 के दिन कस्टम कलेक्टर एलडी अरोड़ा की उनके घर के पास हत्या करने में मामले में दोषी है. साल 2008 में टाडा कोर्ट ने आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई है. वहीं साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को यथावत रखा है. मौजूदा रिपोर्ट के अनुसार, माफिया बबलू श्रीवास्तव ने 10 फरवरी 2022 तक 26 साल 9 महीने और 20 दिन की अपरिहार सजा और 31 वर्ष 3 महीने तीन दिन की सपरिहार सजा काट चुके हैं.
अपरिहार और सपरिहार सजा
अपरिहार और सपरिहार सजा को लेकर आपके मन में दुविधा होगी, तो हम आपको बताते चलते हैं. जेल प्रशासन कैदियों को सजा से आंशिक छूट देता है, अर्थ हुआ कि अगर कैदी का आचरण अच्छा रहा तो जेल प्रशासन साल में उसे बाहर जाने की मांग में अपनी सहमति देता है, हालांकि यह एक साल में केवल तीन महीने के लिए ही दी जा सकती है. यानि अगर किसी ने सजा बाहर जाने की छूट के साथ पूरी की है तो इसे सपरिहार सजा और बिना किसी छूट के सजा पूरी करने को अपरिहार सजा कहते हैं.
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क्या है यूपी प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोबेशन एक्ट?
सबसे पहले, संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार जेल प्रशासन से संबंधित कानून बनाने की शक्ति राज्य को दी गई है. इसलिए हर राज्य में जैल मैनुअल, फरलो और पैरोल आदि देने से संबंधित नियम अलग-अलग होते हैं. यूपी प्रिजनर्स रिलीज ऑन प्रोबेशन कानून उम्रकैद सहित अन्य सजा काट रहे कैदियों को रिहाई देने को लेकर नियम बनाता है. यह कानून इस बात को स्पष्ट करता है कैदी कब रिहाई की मांग कर सकते हैं, कैदी कब रिहाई की मांग कर सकते हैं, आदि आदि.
रिहाई का पात्र- इस अधिनियम के अनुसार उम्रकैद की सजा काट रहा व्यक्ति अगर 14 वर्ष जेल में बिता चुका है, तो वह अपने रिहाई की मांग करने के योग्य है.
सजा की अवधि को कैसे काउंट किया जाएगा?
इस कानून के अनुसार रिहाई के लिए मान्य सजा की अवधि को काउंट करने के चार तरीके बताए गए हैं,
- अगर व्यक्ति को दो मामलों में सजा मिली है और दोनों मामले में एक साथ सजा चलाने का आदेश दिया गया हो तब कैदी द्वारा जेल में बिताई गई सबसे ज्यादा समय को सजा की अवधि माना जाएगा.
- कैदी द्वारा जेल में बिताए कुल समय को कारावास की अवधि माना जाएगा,
- कैदी को बाहर जाने की पहले मिली छूट को सजा के रूप में गिना जाएगा,
- आजीवन कारावास की सजा को 20 वर्ष के कारावास की सजा माना जाएगा.
रिहाई की मांग के लिए आवेदन करने का प्रोसेस
- अधिनियम की धारा 2 के तहत कोई भी कैदी रिहाई के लिए फार्म-ए (Form A) में आवेदन करेगा. यह फॉर्म सरकार अपनी लागत से उपलब्ध करवाएगा.
- आवेदन भरे जाने के बाद देल अधीक्षक यह चेक करेगा कि कैदी और उसके अभिभावक ने आवेदन को विधिवत भराहै या नहीं, फॉर्म सही से भरे जाने पर इसे वह जिला मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा.
- जिला मजिस्ट्रेट(DM) फॉर्म-सी में एक रजिस्टर बनाए रखेगा, जिसमें उपनियम (2) के तहत अधीक्षक से प्राप्त सभी आवेदनों को विधिवत दर्ज करेगा.
- जिला मजिस्ट्रेट अब इस मामले को आदेश के लिए सरकार को रिपोर्ट किया जाएगा. जिले से प्राप्त आवेदन पर एक बोर्ड द्वारा विचार करेगी, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के गृह सचिव आदि अधिकारी शामिल होंगे. बोर्ड की सिफारिश मिलने के बाद राज्य सरकार उस मांग पर अपना फैसला सुनाएगी.
माफिया डॉन बबलू श्रीवास्तव ने रिहाई की मांग की थी, लेकिन डीएम और डीजीपी ने उसकी मांग की संसुस्ति नहीं की, जिसे ध्यान में रखते हुए राज्यपाल ने उसकी याचिका खारिज कर दी.