अविवाहित महिला को भी है गर्भपात का अधिकार
गर्भपात को लेकर हमारे देश में हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं. असुरक्षित गर्भपात की वजह से हर साल देश में बड़ी तादाद में महिलाओं की मौत हो जाती है. आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में असुरक्षित गर्भपात से हर वर्ष 12,000 से ज्यादा महिलाएं अपनी जान गंवाती हैं. लगभग 8 प्रतिशत मातृ मृत्यु असुरक्षित गर्भपात के कारण होती हैं.
जानकारी का अभाव बड़ा कारण
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हमारे देश में गर्भपात के दौरान महिलाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण जानकारी का अभाव होना है. जानकारी के अभाव में महिलाएं सुरक्षित गर्भपात का लाभ नहीं ले पाती है. उन्हें ये जानकारी नहीं होती है कि हमारे देश में गर्भपात कानूनन मान्य है.
गर्भपात से जुड़ी भ्रांतियां और अवधारणाएं हैं जिससे अविवाहित महिलाओं के गर्भपात को समाज द्वारा मान्यता नहीं देने से भी महिलाओं का एक बड़ा वर्ग असुरक्षित गर्भपात का शिकार हो जाता है.
20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह की मान्यता
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (Medical Termination of Permanency ACT) एक्ट के अनुसार हमारे देश में 20 सप्ताह तक के गर्भपात को कानूनी मान्यता थी, जिसे वर्ष 2021 में(मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी विधेयक-2020) संशोधित नए कानून के जरिए विशेष मामलों में 24 सप्ताह की गई है. लेकिन यह मान्यता के अधिकार कुछ विशेष मामलों के लिए ही दिए जाएंगे. अब भी अधिकांश मामलों में 20 सप्ताह से अधिक के गर्भपात के लिए अदालत की मंजूरी लेनी होती है.
कानून के अनुसार मान्यता प्राप्त स्थान पर प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा या किसी मान्यता प्राप्त संस्था द्वारा ही गर्भपात कराया जा सकता है. वयस्क महिला के मामले में गर्भपात के लिए महिला की सहमति आवश्यक है बगैर उसकी सहमति के गैरकानूनी गर्भपात माना जाएगा. किसी प्रशिक्षित व्यक्ति, स्त्री रोग विशेषज्ञ या प्रशिक्षित एम.बी.बी.एस. डॉक्टर या मान्यता प्राप्त संस्था के जरिए कराया गया गर्भपात भी कानूनी अपराध होगा. नाबालिग के मामले में सुरक्षा या माता पिता की सहमति होना आवश्यक है.
अविवाहित महिला का अधिकार
गर्भपात के अधिकारों को लेकर 25 वर्षीय युवती की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2022 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया, चाहें वो विवाहित हों या अविवाहित.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात से रोकना और सिर्फ विवाहित महिलाओं को अनुमति देना संविधान में दिए गए नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन है.
कोर्ट ने कहा कि उक्त कानून के नियम 3 बी के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करना अनुचित है, यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी के समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है.
क्या है सजा का प्रावधान
कानून के किसी भी नियम का पालन नहीं करने पर गर्भपात कराने वाले को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी विधेयक के तहत गिरफ्तार किया जाएगा और उसे 2 से लेकर 7 वर्ष तक की कठोर कारावास यानी जेल की सजा सुनाई जाएगी. साथ ही अदालत भारी भरकम जुर्माना भी लगा सकती है.