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अविवाहित बेटी को पिता से शादी का खर्च उठाने का अधिकार है चाहे वह किसी भी धर्म से हो- Kerala High Court

Kerala High Court के समक्ष इस मामले में यह कानूनी बिंदू तय करना था कि क्या कोई कानूनी प्रावधान है जो एक ईसाई बेटी को अपने पिता की अचल संपत्ति या संपत्ति से होने वाले मुनाफे से शादी के खर्च प्राप्त करने का अधिकार देता है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : April 18, 2023 4:53 PM IST

नई दिल्ली: Kerala High Court ने भरण पोषण से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि एक अविवाहित बेटी को पिता से शादी का खर्च उठाने का अधिकार है चाहे वह किसी भी धर्म से हो.

Justice Anil K Narendran और Justice PG Ajithkumar की पीठ ने कहा कि इस अधिकार को कोई धार्मिक रंग नहीं दिया जा सकता है.

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पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह हर अविवाहित बेटी का अधिकार है, भले ही उसका धर्म कुछ भी हो. किसी को भी धर्म के आधार पर इस तरह के अधिकार का दावा करने से भेदभावपूर्ण बहिष्कार नहीं किया जा सकता है.

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फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती

केरल हाईकोर्ट के समक्ष इस मामले में यह कानूनी बिंदू तय करना था कि क्या कोई कानूनी प्रावधान है जो एक ईसाई बेटी को अपने पिता की अचल संपत्ति या संपत्ति से होने वाले मुनाफे से शादी के खर्च प्राप्त करने का अधिकार देता है.

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केरल हाईकोर्ट याचिकाकर्ता दो बेटियों की अपील पर सुनवाई कर रहा था जिसके जरिए फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गयी थी.

फैमिली कोर्ट ने दोनो याचिकाकर्ता बेटियों को विवाह के लिए 7.5 लाख रूपये की राशि तय करते हुए पिता की संपत्ति की कुर्की से उनके हितों को पूर्ण करने के आदेश दिए थे.

बेटियो की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि दोनों के विवाह के खर्च को पूरा करने के लिए फैमिली कोर्ट द्वारा तय की गई 7.5 लाख की राशि कम है और उसे तय करते समय उनकी आर्थिक स्थिती को ध्यान में नहीं रखा गया है.

याचिका में बेटियो ने अदालत से कहा कि वे दोनो अध्ययन कर रही है और उनके पिता ने खर्च के साथ किसी भी तरह से उनकी मदद नही की है.

पिता की दलीलें

बेटियो की ओर से दायर याचिका का विरोध करते हुए पिता ने कहा कि जिस संपंति को लेकर बेटियों ने अधिकार की मांग की है वह संपत्ति और उसमें मौजूद इमारत पूरी तरह से उनकी है और वह अपनी बेटियों को किसी भी राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं.

पिता ने दलीले दी कि बेटियाँ और उनकी मॉ पेंटाकोस्ट ईसाई Pentacost Christians हैं और यह समुदाय गहनों के उपयोग में विश्वास नहीं करता है. इसलिए, आमतौर पर शादियों के लिए सोने के गहनों का खर्च उनकी बेटियों के मामले में लागू नहीं किया जा सकता.

पिता से अलग मां के साथ रह रही बेटिया

मां के साथ रह रही याचिकाकर्ता दो बेटियों ने अपने विवाह के खर्च के लिए पिता से 45.92 लाख रुपये की वसूली के साथ-साथ अपने पिता की निर्धारित संपत्ति पर उक्त राशि के लिए शुल्क बनाने की डिक्री की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में वाद दायर किया गया था.

बेटियो ने अदालत से पिता द्वारा संपत्ति से अलग करने से रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा का भी अनुरोध किया था. बेटियो के अनुसार उक्त संपंति उसके पिता ने उनकी मां और उनके परिवार की वित्तीय मदद से खरीदी गई थी.

इस्माइल बनाम फातिमा

केरल हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए इस ​कानूनी बिंदू पर सुनवाई की कि क्या कोई कानूनी प्रावधान है जो एक ईसाई बेटी को अपने पिता की अचल संपत्ति या संपत्ति से होने वाले मुनाफे से शादी के खर्च प्राप्त करने का अधिकार देता है.

पीठ ने हिंदू बेटी से जुड़े अधिकारों को लेकर तो कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 3(बी) में एक सक्षम वैधानिक प्रावधान है, जिसके जरिए हिंदू अविवाहित बेटी की शादी के उचित खर्चों के भुगतान के संबंध में प्रावधान किए गए है.

पीठ ने मुस्लिम बेटियों के अधिकार के मामले में केरल हाईकोर्ट के ही इस्माइल बनाम फातिमा फैसले की नजीर को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि इस फैसले में केरल हाईकोर्ट ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या एक मुस्लिम पिता का अपनी बेटी की शादी के संबंध में खर्च का भुगतान करने का दायित्व है.

पीठ ने इस फैसले से सहमति जताते हुए का कि हाईकोर्ट ने उस प्रश्न को उसके सामान्य परिप्रेक्ष्य में माना था और कहा था कि केवल एक मुस्लिम पिता ही नहीं, हर पिता का दायित्व चाहे वह किसी भी धर्म का हो, वह अपनी बेटियों के विवाह का खर्च दे.

शुल्क का दावा करने की हकदार

इसके साथ ही अदालत ने संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 39 के अनुसार को भी शामिल करते हुए कहा कि जब किसी व्यक्ति को अचल संपत्ति के मुनाफे से भरण-पोषण, या उन्नति या विवाह के लिए प्रावधान प्राप्त करने का अधिकार है, तो उस दावे को अचल संपत्ति के खिलाफ लागू किया जा सकता है.

सभी कानूनी बिंदूओ पर विचार करने के बाद केरल हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता-बेटियां अपने पिता की अचल संपत्ति पर शुल्क का दावा करने की हकदार हैं.

हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एक बार संपत्ति कुर्क कर ली गई, तो निषेधाज्ञा की समान राहत का दावा करने का कोई औचित्य नहीं है.

सभी पक्षो की बहस और दलीले सुनने के बाद केरल हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं बेटियो के विवाह के खर्च के लिए 15 लाख रूपये की राशि सुरक्षित करने के आदेश दिए है.