भारत में Uniform Civil Code को लेकर क्या हैं अलग-अलग धार्मिक समुदायों के मत? जानिए
नई दिल्ली: भारत विविधता का देश है जिसको 'अनेकता में एकता' पंक्ति से परिभाषित किया जा सकता है; इस देश में अलग-अलग जाति, धर्म और समुदाय के लोग एक साथ साथ रहते हैं। भारत के संविधान के भाग IV, अनुच्छेद 44 (Part IV, Article 44 of The Constitution of India) में 'समान नागरिक संहिता' (Uniform Civil Code) की बात की गई है जो 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत' (Directive Principles of State Policy) के तहत आती है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 37 यह स्पष्ट करता है कि 'राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत' किसी भी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे लेकिन ये देश की शासन-विधि के लिए आधारभूत हैं। ऐसे में इसके तहत आने वाली 'समान नागरिक संहिता' को लागू करना सरकार के ऊपर है।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, भारतीय संविधान में किस तरह हुआ है इसका उल्लेख?
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क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
'समान नागरिक संहिता' का उद्देश्य देश में एक समान कानून लागू करना है जिसका पालन हर धर्म, जाति, लिंग और समुदाय के लोग करेंगे। यह नियम-कानून शादी, तलाक, गोद लेने, बच्चों की विरासत की अभिरक्षा, संपत्ति के उत्तराधिकार, आदि से जुड़े सभी मुद्दों से डील करेंगे; इसका सीधा मतलब यह है कि देश में यदि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाता है, तो इसका असर अलग-अलग धार्मिक समुदायों के पर्सनल लॉ पर पड़ेगा।
पिछले कुछ समय से देश में यूसीसी (UCC) को लेकर हलचल क्यों मची हुई है, क्या भारत में समान नागरिक संहिता लागू होने जा रही है और इसपर अलग-अलग धार्मिक समुदाय क्या सोचते हैं, आइए इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं.
क्यों छिड़ी समान नागरिक संहिता पर बहस?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देश में हाल ही में समान नागरिक संहिता पर डिस्कशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान से शुरू हुई, जो उन्होंने भोपाल में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से बात करते समय छेड़ी. अपने बयान में पीएम मोदी ने कहा, "आप मुझे बताएं, एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून और दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून कैसे हो सकता है? क्या वह घर चल पाएगा? तो फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? हमें याद रखना होगा कि संविधान में भी सभी के लिए समान अधिकार की बात कही गई है.''
प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद देश में 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' को लेकर चर्चा बढ़ गई और यह अनुमान लगाया जाने लगा कि जल्द इसपर सरकर की तरफ से कोई प्रस्ताव आ सकता है। इसी के चलते-चलते अलग-अलग धर्मों के समुदायों ने इसपर अपना मत सामने रखा है।
सरकार ने उठाया ये बड़ा कदम
सरकार की तरफ से समान नागरिक संहिता पर कोई ड्राफ्ट या प्रस्ताव तो नहीं आया है लेकिन इसे देश में लागू करने की ओर एक बड़ा कदम जरूर उठाया गया है। कुछ दिन पहले ही सूत्रों से यह जानकारी मिली है कि देश में यूसीसी को लागू करने को लेकर सभी महत्वपूर्ण पक्षों से और सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के लिए केंद्र सरकार ने फिलहाल अनौपचारिक तौर पर इस जीओएम (GoM) का गठन किया है
समाचार एजेंसी आईएएनएस (IANS) के अनुसार, पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) की अध्यक्षता में गठित किए गए इस अनौपचारिक जीओएम में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी (Smriti Irani), केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (Arjun Ram Meghwal) और जी किशन रेड्डी (G Kishan Reddy) को शामिल कर अहम जिम्मेदारी दी गई है। ये चारों मंत्री समान नागरिक संहिता (UCC) से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करेंगे।
राष्ट्रीय विधि आयोग तैयार कर रहा है रिपोर्ट
बता दें कि न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी (Justice Rituraj Awasthi) की अध्यक्षता वाले देश का विधि आयोग (Law Commission of India) ने इस विषय पर सबसे अपने मन की बात रखने को कहा है, उनके मत को जानकर कमिशन एक रिपोर्ट तैयार करेगा। विधि आयोग ने एक महीने का समय दिया था जिसकी आखिरी तारीख आज यानी 14 जुलाई, 2023 है। बता दें कि अब तक आयोग के पास यूसीसी पर 50 लाख से ज्यादा रिस्पॉन्स आ चुके हैं।
AIMPLB ने किया यूसीसी का विरोध
'समान नागरिक संहिता' पर सबसे पहले 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' (AIMPLB) ने अपना मत रखा है। देश में यूसीसी का विरोध करते हुए एआईएमपीएलबी ने विधि आयोग को अपनी आपत्तियां एक ड्राफ्ट के रूप में भेजी हैं।
बोर्ड का यह कहना है कि देश में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाता है, तो आदिवासियों (Tribals) और धार्मिक अल्पसंख्यकों (Religious Minorities) को इसके क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
मुस्लिम बोर्ड ने कहा है कि उनके पर्सनल लॉ कुरान और इस्लामिक कानूनों से लिए गए हैं और यह उनकी पहचान हैं; देश की विविधता को बरकरार रखने के लिए जरूरी है कि उनके व्यक्तिगत कानूनों का सम्मान किया जाए। उनके हिसाब से यूसीसी का देश में लागू किया जाना अनुच्छेद 25, 26 और 29 का हनन होगा और इसका असर देश के लोकतान्त्रिक ढांचे, लैंगिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता पर भी पड़ेगा।
Sikh Community नहीं कर रहा UCC का विरोध या समर्थन
एआईएमपीएलबी के बाद सिख समुदाय ने भी देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना मत रखा है। कुछ समय पहले गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब, दिल्ली में एक राष्ट्रीय सिख निर्वाचिका सभा (National Sikh Conclave) आयोजित की गई जिसमें ग्यारह सदस्यों की एक समिति का गठन किया गया। यह समिति अपने समुदाय की यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर आपत्तियों और चिंताओं को सरकार के समख रखेगी।
'दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंध समिति' (Delhi Sikh Gurudwara Managing Committee) के अध्यक्ष ने साफ तौर पर कहा है कि फिलहाल वो न यूसीसी का समर्थन कर रहे हैं और न ही उसका विरोध; सरकर के प्रस्ताव के बाद वो फैसला करेंगे कि वो इसके पक्ष में हैं या नहीं।
सिखों के अधिकारों और रीति-रिवाजों पर इसका असर न पड़े, इस बारे में यह समिति सरकार से मिलेगी।
Jamiat Ulama-i-Hind ने सामने रखा अपना मत
बता दें कि 'जमीयत उलमा-ए-हिंद' ने भी विधि आयोग के समक्ष यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना मत रखा है। विधि आयोग से जमीयत ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) पर निशाना साधा जाएगा तो वो बर्दाश्त नहीं करेंगे।
जमीयत ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी पहचान को मिटाने का प्रयास किया जाएगा तो इसका सीधा असर देश की पहचान पर होगा क्योंकि संविधान 'अनेकता में एकता' को प्रोत्साहित करता है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद का ऐसा मानना है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से मुस्लिम महिलाओं के उत्तराधिकार और रखरखाव के अधिकार भी प्रभावित होंगे।
Catholic Community ने UCC पर केंद्र से मांगा जवाब
जहां अलग-अलग धार्मिक समुदाय अपना मत सामने रख रहे हैं वहीं कैथोलिक समुदाय ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगे हैं। समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार मेंगलुरु कैथोलिक सभा केंद्रीय समिति ने केंद्र सरकार से देश में अल्पसंख्यकों और अन्य समुदायों के बीच भ्रम पैदा करने’’ के बजाय समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर एक मसौदा कानून लाने को कहा है।
उन्होंने कहा कि यदि सरकार यूसीसी को लेकर गंभीर है, तो उसे पहले एक मसौदा कानून लाना चाहिए और इसे नागरिकों के बीच प्रसारित करना चाहिए और सुझाव मांगने चाहिए। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार प्रश्नावली प्रसारित करके एकरूपता कैसे लाना चाहती है।
यह भी कहा गया है कि भारत के विधि आयोग द्वारा एक प्रश्नावली प्रसारित करने और उस पर विभिन्न समुदायों के विचार पूछने से यह धारणा बनी है कि सरकार किसी भी तरह सभी समुदायों पर तथाकथित यूसीसी लागू करना चाहती है।