नए अपराधिक कानून आज से लागू हुए, जानिए कानून में हुए मुख्य बदलाव
Three New Criminal Laws: 1 जुलाई यानि आज से देश में तीन नए अपराधिक कानून लागू होने जा रहे हैं. कुछ लोगों के अनुसार, अंग्रेजी राज से छुटकारा पाना है, तो कुछ जगहों पर स्वदेशी कानून आने की खुशी है. देश के कुछ भागों में इसका विरोध भी हो रहा है, लोकतंत्र है. लोगों को अपने विचार लोकतांत्रिक पद्धति से प्रदर्शित करने का अधिकार है. आज हम आपको इस कानून की मुख्य बातों को बताएंगे, जिससे आपको नए अपराधिक कानून में हुए बदलाव को समझने में आसानी होगी.
सबसे पहले, तीन नए कानून जो लागू हुए हैं वो भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) हैं, जो इंडियन पीनल कोड, 1860 (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1898 (CrPC) और एविडेंस एक्ट (The Evidence Act) की जगह लेंगे.
भारतीय न्याय संहिता (BNS) में भारतीय दंड संहिता ( IPC) के अधिकांश अपराधों को बरकरार रखा गया है. बीएनएस में सामुदायिक सेवा (Community Service) को भी सज़ा के रूप में शामिल किया गया है.
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राजद्रोह की जगह अब देशद्रोह
राजद्रोह (Sedition) को नए बीएनएस में जगह नहीं दी गई है. इसके बजाय, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए एक नया अपराध बनाया गया है. राजद्रोह की जगह देशद्रोह को नए अपराध के तौर पर शामिल किया गया है.
'आतंकवाद' को किया गया परिभाषित
BNS में आतंकवाद, देश की अखंडता को चुनौती देना व नागरिकों में आतंक पैदा करने के तौर पर, परिभाषित किया गया है.
आतंकवाद की परिभाषा,
"ऐसे कृत्य, जिसका उद्देश्य देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाना है, लोगों में आतंक पैदा करना है, आतंकवाद के तहत अपराध होगा."
Organised Crime पर नियम सख्त
संगठित अपराध को कड़े तौर निपटने के उपाय किए गए हैं. संगठित अपराध में अपहरण, जबरन वसूली और साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं जो किसी अपराध सिंडिकेट की ओर से किए जाते हैं. छोटे-मोटे गुट भी अब संगठित अपराध की श्रेणी आएंगे.
जाति, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास जैसे कुछ पहचान चिह्नों के आधार पर पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा किसी की हत्या करना बड़ा अपराध माना जाएगा. ऐसे अपराधों में सात वर्ष की जेल से लेकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक की कठोर सजा मिलने का प्रावधान है.
मैरिटल रेप अब तक 'अपराध' नहीं बना
भारतीय न्याय संहिता, रेप और बलात्कार के मामलों में IPC के ही नियमों को यथावत रखा है. इस कानून में जस्टिस वर्मा समिति (2013) की रिपोर्ट की सिफारिशों को शामिल नहीं किया गया है, जिसके 'मैरिटल रेप' को अपराध के तौर पर घोषित करने की बात कही गई थी.