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अपराध में प्रयोग हथियार नहीं हुआ बरामद, फिर भी Delhi HC ने हत्यारों को राहत देने से किया इंकार, जानिए क्यों...

वर्ष 2007 में दिल्ली के हौज काजी थाना क्षेत्र के सीताराम बाजार में विजय यादव की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.हत्या के इस मामले में जिस पिस्टल से हत्या की गई थी, वह बरामद नहीं हो पाई.

Written By Nizam Kantaliya | Published : March 6, 2023 6:57 AM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्ष 2007 में हौज काजी थाना क्षेत्र में दिन दहाड़े हुई हत्या के एक मामले में आरोपियों को इस आधार पर राहत देने से इंकार कर दिया किया, कि हत्या के लिए प्रयोग किया गया हथियार पुलिस द्वारा बरामद नहीं किया गया है.

2007 में हुई थी दिनदहाड़े हत्या

29 सितंबर 2007 को हौज काजी थाना क्षेत्र के सीताराम बाजार में मृतक विजय यादव की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हत्या के मामले में पुलिस ने जांच के बाद 11 लोगो को इस हत्या के मामले में आरोपी बनाया.

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इस मामले की ट्रायल से पहले ही हत्या का 11 वां आरोपी डिंपल त्यागी उत्तर प्रदेश पुलिस के एक एनकाउंटर में मारा गया, जिसके चलते कुल 10 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल हुई.

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ट्रायल के बाद दिल्ली की एक अदालत ने हत्या के मामले में 10 में 6 आरोपियों को हत्या का दोषी घोषित करते हुए दीपक चोवड़ा, देशराज, हितेन्द्र सिंह, प्रवीण कोली, किशनपाल और भीष्म को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.

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पिस्टल नहीं हुई थी बरामद

इस मामले की अहम गवाह रही महिला ने दो आरोपियों द्वारा पिस्टल से मृतक विजय यादव की हत्या करने की गवाही थी.

पुलिस ने जांच के बाद प्रथम चार्जशीट के बाद भी दो पूरक चार्जशीट पेश करते हुए कुल 11 आरोपियों को नामजद किया था. पुलिस ने जांच के दौरान आरोपियों से हथियार बरामद करने के लिए उन्हे कई बार रिमांड पर भी लिया गया. इसके बावजूद पुलिस हत्या में प्रयुक्त की गई पिस्टल को बरामद नहीं कर पाई.

आरोपियों ने हथियार बरामद नही होने के इसी तथ्य को अपनी सुरक्षा के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में अपील पेश करते हुए सामने रखा.

दोषी 6 में से 5 आरोपियों ने जिला अदालत के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में अपील के जरिए चुनौती दी.आरोपियों की ओर से तर्क पेश किया गया कि इस मामले में जिस पिस्टल से हत्या करने का दावा किया गया है, वह जांच के दौरान पुलिस द्वारा बरामद नहीं किया गया है.

क्या कहा हाईकोर्ट ने

दिल्ली हाईकोर्ट ने हत्या के इन पांचो आरोपियों की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि चश्मदीद गवाहों के रूप में प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध होने पर अपराध में प्रयोग किए गए हथियार के बरामद नहीं होने का लाभ नहीं दिया जा सकता.

जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस अनिष दयाल की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के Phukan Vs. State of Assam के फैसले में यह स्थिति स्पष्ट है कि किसी भी अपराध में अगर एक भी चश्मदीद गवाह मौजूद है तो उसकी गवाही पर भरोसा किया जाना चाहिए.

पीठ ने किसी अपराध के उद्देश्य को लेकर भी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि आपराधिक मुकदमों में मकसद होना जरूरी नहीं है, हालांकि अगर स्थापित हो जाता है, तो अभियोजन पक्ष को इसे साबित करने में मदद मिल सकती है.

पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए अभियोजन के मामले को साबित नहीं किया जा सकता है, कि अपराध करने का मकसद साबित नहीं हुआ है, ऐसा नहीं किया जा सकता.

हत्या के इस मामले में जिस पिस्टल से हत्या की गई थी, वह बरामद नहीं हो पाई थी, इसके बावजूद पीठ ने कहा कि हालांकि वर्तमान मामले में अपराध का हथियार यानी पिस्टल बरामद नहीं किया गया है, इसके बावजूद अपीलकर्ताओं को इस तथ्य से कोई लाभ नहीं मिल सकता, जब प्रत्यक्ष साक्ष्य के रूप में दो चश्मदीद गवाह उपलब्ध है.

अपील खारिज

इस मामले में दो चश्मदीद गवाहों को लेकर भी आरोपियों की ओर से तर्क दिया गया कि एक गवाह मृतक के भाई के मकान में किराएदार थी तो वही दूसरा गवाह पड़ोसी और पारिवारिक मित्र है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपियों को इस तर्क को भी सिरे से खारिज करते हुए किसी तरह से राहत देने से इंकार किया है.

हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दोषी घोषित किए गए इन आरोपियों की अपीलों को भी खारिज कर दिया है.