'We are worried': कॉलेजियम की सिफारिशों पर केंद्र के रवैये को लेकर Supreme Court ने जताई चिंता
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देश की हायर ज्यूडिशरी में जजों की नियुक्ति के लिए की गई सिफारिशों पर केंद्र सरकार के रवैये को लेकर चिंता जताई है. जस्टिस एस के कौल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस अरविंद कुमार की तीन सदस्य पीठ ने इस मामले पर केन्द्र के रवैये के प्रति ऐतराज जताया हैं.
जस्टिस संजय किशन कौल ने सिफारिशों के प्रति केंद्र के रवैये को लेकर कहा कि हम इससे चिंतित है.
सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्य पीठ हायर ज्यूडिशरी में जजों की नियुक्ति में केंद्र द्वारा की जा रही देरी को लेकर Advocates Association Bengaluru की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पैरवी करते हुए पीठ से कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशों में से कुछ नियुक्तियों को चुनिंदा रूप से अधिसूचित किया जा रहा है और ये अंतहीन नहीं चल सकता है.
अधिवक्ता भूषण के इस तथ्य पर जस्टिस कौल ने कहा कि कुछ मुद्दो पर वे भी चिंतित है. उन्होने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम अधिक नहीं तो समान रूप से चिंतित हैं.
अटॉर्नी जनरल नही आए
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल की गैरमौजूदगी के चलते मामले को टालने का अनुरोध किया गया. जिसके बाद पीठ ने इस मामले की सुनवाई मार्च के दूसरे सप्ताह में तय करने के निर्देश दिए.
गौरतलब है कि पिछले कुछ समय कॉलेजियम की सिफारिशों को लेकर केंद्र और कॉलेजियम के बीच विवाद गहराता जा रहा है. इसकी शुरुआत उड़ीसा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस मुरलीधर और मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस टी राजा के तबादले के बाद शुरू हुआ था.
सितंबर से बढ़ता विवाद
सितंबर में की गई इन सिफारिशों को केन्द्र सरकार ने अब तक मंजूरी नहीं दी है. जिसके बाद नवंबर माह में इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने विधि मंत्रालय के अधिकारियों को नोटिस जारी किया था. पीठ ने कॉलेजियम की सिफारिशों के मामले में निर्धारित कानून का पालन करने को कहा था.
यहां तक की सुप्रीम कोर्ट के लिए 5 जजों की नियुक्ति की सिफारिश को भी केन्द्र द्वारा एक माह से भी अधिक समय तक मंजूर नहीं किया गया. जिसके बाद पीठ ने फटकार लगाते हुए 10 दिन का समय दिया था. जिसके चलते केन्द्र ने पिछले सप्ताह कई सिफारिशों को मंजूर किया.
पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों पर काम न करके न्यायिक नियुक्तियों को रोक रही है.