जिस कानून के तहत Rahul Gandhi की लोकसभा सदस्यता हुई रद्द, उस कानून को Supreme Court में दी चुनौती
नई दिल्ली: सूरत की अदालत द्वारा मानहानि मामले में दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद लोकसभा से सदस्यता रद्द करने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
Representation of the People Act 1951 की धारा 8(3) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
मलप्पुरम की एक सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन अधिवक्ता दीपक प्रकाश की ओर से यह याचिका दायर की गई है.
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याचिका में कहा गया है कि Representation of the People Act 1951 की धारा 8(3) संविधान के अधिकार से बाहर है क्योंकि यह संसद के एक निर्वाचित सदस्य (सांसद) या विधान सभा के सदस्य (विधायक) के बोलने की स्वतंत्रता को कम करती है.
याचिका में कहा गया है यह धारा कानून निर्माताओं को अपने कर्तव्यों का स्वतंत्र रूप से निर्वहन करने से रोकती है. उनके संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं द्वारा उन पर डाला गया.
याचिका में कहा गया है कि धारा 8 (3) 1951 की धारा 8, धारा 8ए, 9, 9ए, 10 और 10ए और 11 की उप-धारा (1) के विपरीत है.
याचिकाकर्ता ने कहा है कि 1951 के अधिनियम के अध्याय III के तहत अयोग्यता पर विचार करते समय प्रकृति, गंभीरता, भूमिका, नैतिक अधमता और अभियुक्त की भूमिका जैसे कारकों की जांच की जानी चाहिए.
याचिका में कहा गया है कि धारा 8 के उप खंड (1) में स्पष्ट रूप से अपराधों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, सांसदों की अयोग्यता के लिए अपराधों को वर्गीकृत किया गया है.
याचिका में कहा गया है कि धारा के उप-खंड (3) में सजा और कारावास की मात्रा के आधार पर एक स्वत: अयोग्यता का प्रावधान है, जो स्व-विरोधाभासी है और अयोग्यता के लिए उचित प्रक्रिया के रूप में अस्पष्टता पैदा करता है.
याचिका में कहा गया है कि ये प्रावधान गंभीर / जघन्य अपराध करने और ऐसे मामलो में अदालतों द्वारा दोषी ठहराया जाने वाले जनप्रतिनिधियों के खिलाफ तय किए गए है.
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के लिली थॉमस के फैसले, जिसने अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया था, का दुरुपयोग किया जा रहा है और राजनीतिक दलों में व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए खुले तौर पर दुरुपयोग किया जा रहा है.
याचिका में अदालत से यह निर्देश देने की मांग की गई है कि आईपीसी की धारा 499 (जो मानहानि का अपराधीकरण करती है) या दो साल की अधिकतम सजा निर्धारित करने वाला कोई अन्य अपराध किसी भी विधायी निकाय के किसी भी मौजूदा सदस्य को स्वचालित रूप से अयोग्य नहीं ठहराएगा क्योंकि यह स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.