तेलंगाना हाईकोर्ट ने दो जाति समूहों को भूमि आवंटन पर रोक लगाई, अगली सुनवाई 2 अगस्त को
हैदराबाद: तेलंगाना उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा दो जाति समूहों, वेलामा और कम्मा को सामुदायिक भवन बनाने के लिए भूमि आवंटन पर रोक लगा दी. एक अंतरिम आदेश में, अदालत ने 2021 में जारी सरकारी आदेश (जीओ 47) पर रोक लगा दी, जिसमें दो जाति समूहों को 5-5 एकड़ के दो भूमि पार्सल आवंटित किए गए थे.
समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन तुकारामजी की खंडपीठ ने बुधवार को फैसला सुनाया कि जीओ पर अगले आदेश तक रोक रहेगी और आदेश दिया कि उक्त भूमि पर कोई काम जारी न रखा जाए और सुनवाई 2 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी गई.
पीठ काकतीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ए विनायक रेड्डी द्वारा भूमि आवंटन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
Also Read
- AI-Video बनाकर दुष्प्रचार फैलाया जा रहा... 400 एकड़ की जमीन विवाद मामले में तेलंगाना सरकार पहुंची हाई कोर्ट
- भले ही जजों को पसंद ना आए लेकिन... कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बोलने-व्यक्त करने के अधिकार पर कहा
- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के गृह सचिव को लगाई फटकार, कहा 'जब तक सरकार को अवमानना का नोटिस नहीं हो, तब तक वे एक्शन में नहीं आते'
क्या था मामला
सरकार ने ऑल इंडिया वेलामा एसोसिएशन को हाईटेक सिटी रोड से सटा हुआ और खानमेट गांव में नेशनल एकेडमी ऑफ कंस्ट्रक्शन (एनएसी) रोड से सटा हुआ एक प्लॉट आवंटित किया था और अय्यप्पा सोसाइटी से कम्मा वारी सेवा संघला समाक्या तक जाने वाली सड़क से सटी एक अन्य साइट आवंटित की थी.
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये दोनों समुदाय राज्य के सबसे धनी समुदायों में से हैं. उनके वकील ने अदालत को बताया कि आवंटित भूमि का बाजार मूल्य असाधारण रूप से अधिक है. उन्होंने तर्क दिया कि जबकि सरकार ने एक एकड़ की कीमत 50 करोड़ रुपये आंकी है, बाजार मूल्य इससे कहीं अधिक है.
पीठ ने कहा कि प्रमुख जाति समूहों को जाति से मुक्त भूमि प्रदान करने का कोई औचित्य नहीं है. इसमें पाया गया कि जाति समूहों को भूमि का आवंटन सुप्रीम कोर्ट द्वारा अतीत में जारी आदेशों के खिलाफ था.
न्यायालय का विचार था कि गरीबों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों को भूमि आवंटित की जा सकती है लेकिन शक्तिशाली जाति समूहों को मुफ्त में भूमि आवंटित करने का कोई औचित्य नहीं है. इसमें पाया गया कि इस तरह का आवंटन एक तरह का अतिक्रमण है.