दहेज लेना और देना क्या दोनो ही है अपराध, जानिए कितनी है सजा
दहेज एक रूढ़िवादी प्रथा है जिसका मुख्य रूप से भारत में सदियों से चलन प्रचलित रहा है. दहेज का मूल रूप से मतलब है विवाह के लिए जब एक व्यक्ति को संपत्ति, धन या किसी दूसरी संपत्ति को स्थानांतरित करने के लिए दूसरे पक्ष द्वारा मजबूर किया जाता है.
कई बार लोग इन मांगों को पूरा करने के लिए आर्थिक स्थिति में नहीं होते हैं और उन्हें विभिन्न समस्याओं से गुजरना पड़ता है. इसलिए दहेज को प्रतिबंधित किया गया है भले ही किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति दहेज़ पूरा करने की हो, लेकिन यह महत्वहीन नहीं है कि किसी व्यक्ति के पास इसे पूरा करने के लिए वित्तीय साधन हैं, इसे अपराध मानने के लिए काफी है की दहेज़ माँगा गया था.
हालांकि अधिनियम में विशेष रूप से कहा गया है कि मुस्लिम कानून के तहत दुल्हन को दिए जाने वाले महर को अपराध नहीं माना जाएगा.
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देश में सख्त कानून और अदालतों के फैसलों के बाद भी दहेज के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं.राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017-2021 के बीच लगभग 34,000 दहेज हत्याएं हुई हैं.
क्या कहता है कानून
दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 2 में दहेज को एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को या माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई "संपत्ति" या "बहुमूल्य सुरक्षा" के रूप में समझाया गया है. यह शादी से पहले या बाद में या शादी के दौरान दिया जा सकता है.
1961 से दहेज प्रतिषेध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) को पारित करते हुए दहेज लेने या देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके अलावा भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 304(बी) और 498(ए) का इस्तेमाल दहेज के मामलों में किया जाता है, जहां मौत या उत्पीड़न शामिल है.
धारा 3— अधिनियम की इस धारा के अनुसार, इस अधिनियम के तहत किसी भी व्यक्ति को न केवल दहेज लेने बल्कि दहेज देने के लिए भी दंडित किया जा सकता है. बल्कि दहेज देने या लेने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाने वाले को भी इस धारा के अतरिक्त सज़ा हो सकती है. इस धारा के तहत दोषी ठहराए गए लोगों को से कम पांच साल की कैद, पंद्रह के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। हजार रुपये या जुर्माना जो दहेज के बराबर होगा।
धारा 4— इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो दूल्हा या दुल्हन या उनके माता-पिता या किसी अन्य रिश्तेदार से दहेज की मांग करता है और मांगता है, उसे कम से कम छह महीने की कैद की सजा दी जा सकती है, जो दो साल तक बढ़ सकती है, जिसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता है जो अधिकतम दस हजार रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
धारा 6— इसमें कहा गया है कि जब दहेज किसी और पत्नी को दिया जाता है, तो उस व्यक्ति की यह जिम्मेदारी होती है कि वह दहेज शादी के तीन महीने बाद महिला को हस्तांतरित करें, अगर शादी से पहले प्राप्त हुआ है और यदि शादी के बाद या उसके दौरान प्राप्त हुआ है। की तुलना में यह उस व्यक्ति को दहेज प्राप्त करने की तारीख से तीन महीने के भीतर वापस किया जाना चाहिए। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दहेज का अपराध अभी भी गठित किया जाएगा.
हालांकि यदि कोई व्यक्ति निर्धारित समय सीमा में इसे स्थानांतरित करने में विफल रहता है, तो उसे कम से कम छह महीने की कैद हो सकती है जो दो साल तक बढ़ सकती है और जुर्माना या कम से कम पांच हजार रुपये का जुर्माना हो सकता है, जिसे दस हजार तक बढ़ाया जा सकता है.
धारा 8 — इस धारा में कहा गया है कि रस्म के अनुसार परिवार को दिया गया कोई भी उपहार दहेज नहीं माना जाएगा. इसके अलावा अधिनियम की के अनुसार कुछ मामलों में संज्ञेय होना चाहिए और इसके तहत प्रत्येक अपराध गैर-जमानती(non bailable) और गैर-समाधान(non-compoundable) योग्य होगा (जहां मामला वापस नहीं लिया जा सकता है).
धारा 8(ए)— अधिनियम की धारा 8(ए) के अनुसार अभियुक्त पर यह साबित करने का भार है कि उसने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत अपराध माना जाता है.
दहेज मृत्यु होने पर
IPC की धारा 304 (बी) में दहेज मृत्यु से निपटा गया है, जिसमें कहा गया है कि अगर कोई महिला, जो शादी के बाद पति या उसके किसी रिश्तेदार द्वारा दहेज या किसी भी दहेज संबंधित चीज के लिए मजबूर करने के लिए उत्पीड़न या क्रूरता का सामना करती है, जिसके परिणामस्वरूप पति या उसके किसी रिश्तेदार द्वारा शारीरिक चोट या जलने या किसी भी संदिग्ध परिस्थितियों में शादी के सात साल के भीतर उसकी मृत्यु हो जाती है, तो उसे दहेज मृत्यु माना जाएगा.
इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने के लिए यह साबित करना आवश्यक है कि महिला को शादी के बाद अपने पति या ससुराल वालों या पति की ओर से अन्य रिश्तेदारों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और वह भी दहेज के लिए इस तथ्य के अलावा कि उसको मारा गया.
दहेज क्रूरता
भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) विवाहित महिला को किसी भी प्रकार की क्रूर हिंसा या पति या पति की तरफ से किसी रिश्तेदार द्वारा शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के उत्पीड़न से बचाती है, जिससे महिला को गंभीर चोट लगती है या आत्महत्या करना या किसी महिला को संपत्ति हस्तांतरित करने के लिए मजबूर करती है. वही इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने के लिए यह साबित करने की जरूरत है कि महिला को "क्रूरता" का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप महिला को चोट लगी या उसने खुद को मार डाला.
न्यायालय के निर्णयों के अनुसार, ससुराल द्वारा महिला को लगातार इस हद तक ताने देना कि यह उसके मानसिक आघात का जब कारण बन जाता है , तो उसे भी क्रूरता में हे शामिल माना जाएगा. हालांकि "क्रूरता" शब्द व्यक्तिपरक है, यह तय करना अदालत पर है कि क्या कुछ कार्य इस खंड के दायरे में होंगे और क्या उसे "क्रूरता" माना जा सकता है.
दहेज से संबंधित मौत के लिए जहां महिला ने खुद को मार डाला, अभियोजन पक्ष को यह साबित करने की आवश्यकता है कि महिला को खुद को मारने से पहले दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था और सिर्फ दहेज मांगने को क्रूरता में नहीं माना जाएगा.