शिनाख्त परेड से पहले संदिग्धों को गवाह के रूप में दिखाया जाने का साक्ष्य स्वीकार नहीं-सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया हैं कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत शिनाख्त परेड को एक साक्ष्य के रूप में स्वीकार हैं, लेकिन यह एक ठोस सबूत नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका उपयोग मुकदमे के समय अदालत के समक्ष गवाहों द्वारा दिए गए साक्ष्य की पुष्टि करने के लिए किया जा सकता हैं, लेकिन यदि शिनाख्त परेड से पहले ही संदिग्धों को गवाह के रूप में दिखा दिया गया है तो ऐसे साक्ष्य स्वीकार नहीं किये जा सकते.
बदलाव का विरोध
वर्ष 2000 में केरल राज्य की शिक्षा नीति में किए गए बदलाव के खिलाफ राज्यव्यापी प्रदर्शन हुए थे. उसी दौरान 12 जुलाई 2000 को राज्य सचिवालय के बाहर हुए सरकार विरोधी प्रदर्शन के दौरान एक बस कंडक्टर की मौत हो गयी और कई सरकारी वाहनों और बसों को आग के हवाले कर दिया था.बाद में पुलिस ने इस मामले में फोर्ट पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करते हुए हत्या और सार्वजनिक संपति को नुकसान पहुंचाने के मामले में 16 आरोपियों को गिरफतार किया था.
प्रदर्शन के दौरान भीड़ में 1500 से अधिक लोग थे, राजेश की मौत के मामले में केवल कुछ लोगों को ही गिरफ्तार किया गया था और आरोप पत्र दायर किया गया था. जिसके चलते जांच अधिकारी ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए शिनाख्त परेड कराने की अनुमति मांगी.
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कोर्ट की अनुमति के बाद आरोपियों के साथ अन्य लोगों को शामिल कर शिनाख्त परेड आयोजित कराई गई. जिसे आरोपियों ने ये कहते हुए चुनौती दी कि शिनाख्त परेड से पूर्व उनकी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की गयी थी और उनकी पहचान गवाहों के साथ साझा की गयी थी. साथ आरोपियों ने ये भी आरोप लगाया कि जांच अधिकारी ने अपने केबिन से आरोपियों को गवाहों को दिखाया गया था. आरोपियों की ओर से ये महत्वपूर्ण तर्क भी रखा गया कि उनकी गिरफ्तारी से लेकर शिनाख्त परेड की तारीख तक एक ही ड्रेस पहनाए रखा गया था.
जिला अदालत ने सुनाई थी सजा
केरल की जिला अदालत ने आरोपियों की ओर से शिनाख्त परेड को लेकर की गयी शिकायत को दरकिनार करते हुए ट्रायल पूर्ण करते हुए फैसला सुनाया. जिला अदालत ने मई 2005 में इस मामले में फैसला सुनाते हुए अलग अलग आरोपियों को अलग अलग सजा सुनाई. वही दो आरोपियों को कंडक्टर की हत्या के लिए आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.
केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में आरोपियों की अपीलों पर सुनवाई करते हुए हत्या के मामले में आजीवन उम्रकैद की की सजा को दोषसिद्धि को रद्द कर दिया. लेकिन खतरनाक हथियारों से नुकसान पहुंचाने के मामले में हाईकोर्ट ने आरोपियों की सजा को कम करते हुए 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में सभी 16 आरोपियों को 4 वर्ष और 10 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई.हत्या के मामले में सजा कम करने के फैसले के खिलाफ ना ही राज्य और ना ही आरोपियों की ओर से अपील की गयी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए दोषियों को Prevention of Damages to Public Property Act और आईपीसी की धारा 149 के तहत चार साल की कठोर कारावास और 10 हजार के अर्थदंड की सजा सुनाई थी. दोषी आरोपियों की ओर से फैसले के इसी भाग को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी.अपील में शिनाख्त परेड से पूर्व उनकी पहचान जाहिर करने के आधार पर जिला अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गयी.
जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने अपीलों पर सुनवाई करते हुए केरल की जिला अदालत के साथ हाईकोर्ट के फैसले को अपास्त करते हुए स्पष्ट किया शिनाख्त परेड के दौरान पुलिस की मौजूदगी के साथ-साथ, परेड के आचरण ने पूरी प्रक्रिया को खराब किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराने और सजा सुनाने के लिए शिनाख्त परेड के गवाहों के साक्ष्य पर भरोसा करने में गंभीर त्रुटि की है. जिसके आधार पर दी गयी सजा टिकाऊ नहीं है.
पीठ ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 9 के तहत शिनाख्त परेड का साक्ष्य स्वीकार्य हैं, हालांकि, यह एक ठोस सबूत नहीं है. इसके बजाय, इसका उपयोग मुकदमे के समय अदालत के समक्ष गवाहों द्वारा दिए गए सबूतों की पुष्टि करने के लिए किया जाता है. इसलिए किसी मामले में अगर शिनाख्त परेड आयोजित किया गया है तो भी उसे सभी मामलों में भरोसेमंद सबूत के रूप में नहीं माना जा सकता है, जिसके आधार पर किसी आरोपी की सजा बरकरार रखा जा सके.
जांच अधिकारी का कर्तव्य
पीठ ने कहा कि आरोपी और जांच अधिकारी दोनों के लिए ही ये महत्वपूर्ण है कि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद बिना किसी देरी के शिनाख्त परेड आयोजित की जानी चाहिए.पहचान परेड से पूर्व किसी भी माध्यम से आरोपियों को गवाहों को दिखाया नहीं जाना चाहिए. हालांकि, अगर परिस्थितियां नियंत्रण से बाहर हैं और कुछ देरी हो रही है, तो इसे अभियोजन पक्ष के लिए घातक नहीं कहा जा सकता है, लेकिन देरी क्यों हुई, इसका कारण जरूर बताना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां गवाहों को शिनाख्त परेड से पहले आरोपियों को देखने का पर्याप्त मौका मिला है, ऐसे मुकदमें में विपरीत प्रभाव डाला जा सकता है. पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का ये कर्तव्य है कि वह कोर्ट के समक्ष साबित करे कि आरोपी के गिरफतारी के दिन से ही उसे बापर्दा रखा गया है, ताकि पुलिस हिरासत में उनका चेहरा देखे जाने की संभावना से इंकार किया जा सके.
पीठ ने अहम व्यवस्था देते हुए कहा कि यदि गवाहों को शिनाख्त परेड से पहले ही आरोपी को देखने का अवसर मिला, चाहे वह किसी भी रूप में हो, यानी शारीरिक रूप से, तस्वीरों के माध्यम से या मीडिया (समाचार पत्र, टेलीविजन आदि) के माध्यम से ही क्यों ना हो. शिनाख्त परेड का साक्ष्य किसी भी रूप में वैध नहीं माना जाएगा.